मंगलं शांतिनाथोऽर्हन्, कुंथुनाथोऽस्तु मंगलम्।
मंगलमरनाथोऽपि, जन्मभूमिश्च मंगलम्।।१।।
-बसंततिलका छंद (१४ अक्षरी)-
श्रीविश्वसेननृपजो भुवि शांतिकारी। शांत्यैषिणां वितनुते किल पूर्णशांतिं।।
ऐरावती सुतवती भुवनैकमाता। देवैर्नुता जगति मंगलमातनोतु।।२।।
या सप्तमीतिथिरभूदसिते नभस्ये१। गर्भागमो जगति मंगलकृच्च तस्यां।।
ज्येष्ठेऽसिते तिथिरभूत् सुचतुर्दशी सा। तस्यां जनिश्च जिनलिंगधरोऽपि भगवान्।।३।।
पौषे सिते सकलबोधरवि: दशम्यां। धर्मामृतैर्भविजनानभिषिक्तवान् य:।।
दीक्षातिथौ शिवरमां परिपूर्णसौख्यां। सम्मेदशैलशिखरे स्वयमाप्नुतेऽसौ।।४।।
-असंबाधा छंद (१४ अक्षरी)-
शांतीश: कुर्यात्, त्रिभुवनजनतायै शम्।
वाणी ते पुष्यात्, कलिमलहरिणी भव्यान्।।
लोकांतं व्याप्तं तव धवलयश: स्वामिन्!।
शांतीश: कुर्यात् मम मनसि सदा शांतिं।।५।।
-मालिनी छंद (१५ अक्षरी)-
अतुलसुखयुतोऽयं कुंथुनाथस्त्रिलोक्यां।
प्रथितसुखकरीयं हस्तिनापू: पृथिव्यां।।
जिनवरजनकोऽयं सूरसेन: प्रसिद्ध:।
मम भवतु सदायं मुक्तिलक्ष्म्यै जिनेश:।।६।।
-मणिगुणनिकर छंद (१५ अक्षरी)-
अर जिनवर! तव, पदयुगकमलं। वसतु मनसि मम, कलिमलदलनं।।
सुरनरमुनिगण-कृतबहुशरणम्। प्रभवति जिन! तव, शमदमसुवृष:।।७।।
-उपजाति छंद (११ अक्षरी)-
श्रीशांतिनाथाय नमोऽस्तु तुभ्यम्। श्रीकुंथुनाथाय सदा नमोऽस्तु।।
नमोऽस्तु स्वामिन् अरनाथ! तुभ्यम्। सज्ज्ञानमत्या सह त्वद्गुणाप्त्यै।।८।।
तीर्थकृच्चक्रभृत्काम – देव – त्रिपदधारिण:।
शांतिकुंथ्वर-तीर्थेशा, भवद्भ्योऽनन्तशो नम:।।९।।