जैन धर्म का मूलमंत्र
णमो अरिहंताणं , णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।
धर्म की शाष्वत सत्ताµ प्राकृतिक सृष्टि व्यवस्था के अनुसार धर्म की शाष्वत सत्ता मानी गई है। विष्वभर के अनेक धर्मों में जैनधर्म अत्यन्त प्राचीन होते हुए भी इसका कोई संस्थापक नहीं है। जैनधर्म प्राकृतिक धर्म है क्योंकि इसका न कोई आदि है और न अंत, इसीलिए यह अनादिनिधनरूप में माना जाता है। समय-समय पर महापुरुषों ने भारत की धरती पर जन्म लेकर इस धर्म को प्रकाषित किया है। वैदिक पुराण एवं वेदों में भी जैनधर्म को वेदों से पूर्व का स्वीकार किया गया है और उनके अनुसार इसे ‘‘निग्र्रन्थ’’ धर्म के नाम से जाना गया है।जैनधर्म की तीर्थंकर परम्पराµ सर्वप्रथम जैनधर्म की व्याख्या जानने की आवष्यकता है कि ‘‘कर्मारातीन् जयतीति जिनः’’ अर्थात् कर्मों को जीतने वाले ‘जिन’ कहलाते हैं तथा ‘‘जिनोदेवता यस्यासौ जैनः’’ अर्थात् उन जिन को जो अपना देवता मानते हैं वे जैन कहे जाते हैं। इस कथनानुसार जैनधर्म किसी व्यक्ति या सम्प्रदायविषेष का न होकर प्राणिमात्र का धर्म है। वैसे तो इस जैनधर्म में असंख्य उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी (वष्द्धि-Ðास) कालों में असंख्य तीर्थंकर महापुरुषों ने जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त किया, फिर भी वर्तमान कर्मयुग में जो चैबीस तीर्थंकर हुए हैं उनके नाम इस प्रकार हैं
1. ऋषभनाथ 2. अजितनाथ 3. संभवनाथ 4. अभिनंदननाथ
5. सुमतिनाथ 6. पद्मप्रभ 7. सुपाष्र्वनाथ 8. चन्द्रप्रभु 9. पुष्पदन्तनाथ
10. शीतलनाथ 11. श्रेयांसनाथ 12. वासुपूज्यनाथ 13. विमलनाथ
14. अनंतनाथ 15. धर्मनाथ 16.शांतिनाथ 17. कुंथुनाथ 18. अरहनाथ 19. मल्लिनाथ 20. मुनिसुव्रतनाथ 21. नमिनाथ 22. नेमिनाथ
23. पाष्र्वनाथ 24. महावीर स्वामी।
इन चैबीस तीर्थंकरों में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने आज से असंख्यात वर्ष पूर्व (एक कोड़ाकोड़ी सागर वर्ष पूर्व) अयोध्या नगरी में जन्म लेकर समस्त प्रजा को असि, मसि, कष्षि, विद्या, वाणिज्य और षिल्प इन षट्क्रियाओं के द्वारा जीवन जीने की कला सिखाई थी। उन्होंने सर्वप्रथम अपनी ब्राह्मी-सुन्दरी पुत्रियों को लिपि एवं अंकविद्या सिखाकर साक्षरता अभियान का शुभारंभ किया था। इसी प्रकार ऋषभदेव ने अपने भरत-बाहुबली, वष्षभसेन, अनन्तवीर्य आदि सभी 101 पुत्रों को शस्त्र विद्या आदि सिखाकर आत्मरक्षा के साथ परिवार, समाज, देष एवं धर्मरक्षा का संदेष दिया था।महावीर का चुम्बकीय व्यक्तित्वµजैनधर्म के चैबीसवें तीर्थंकर के रूप में पहचाने जाने वाले भगवान महावीर का जन्म आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व बिहार प्रान्त की ‘‘कुण्डलपुर’’ नगरी में चैत्रशुक्ला त्रयोदषी के दिन हुआ था। कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ एवं रानी त्रिषला के एकमात्र पुत्र महावीर को वर्धमान, वीर, सन्मति, अतिवीर और महावीर इन पांच नामों से जाना जाता है।
ज्ञान, पराक्रम, सुख एवं सौन्दर्य में अद्वितीय प्रतिभा के धनी महावीर ने अखण्डब्रह्मचर्यव्रत को स्वीकार करके 30 वर्ष की युवावस्था में दिगम्बर दीक्षा ग्रहण की थी पुनः 12 वर्ष की तपस्या के पष्चात् उन्हें केवलज्ञान प्राप्त होने पर धनकुबेर ने आकाष में उनका समवसरण बनाया था अतः 30 वर्ष तक अपनी दिव्यध्वनि के द्वारा असंख्य प्राणियों को लाभान्वित कर 72 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी ने बिहार प्रान्त की पावापुरी के जलमन्दिर से समस्त कर्म नाष करके निर्वाणधाम को प्राप्त किया था। तब से आज तक वह दिवस दीपावली पर्व के रूप में मनाया जाता है।जन्मकल्याणक से पावन सुमेरूपर्वत की एकमात्र प्रतिकष्ति हस्तिनापुर में!भगवान महावीर के जन्मकल्याणक को इन्द्रों ने जिस सुमेरु पर्वत पर जन्माभिषेक महोत्सव के रूप में मनाया था, उस 1 लाख योजन ऊँचे सुमेरुपर्वत की एकमात्र प्रतिकष्ति (101 फुट उत्तंुग) आज हस्तिनापुर की धरा पर जम्बूद्वीप के बीचोंबीच में विद्यमान है। सन् 1974 में भगवान महावीर के 2500वें निर्वाणमहोत्सव के अवसर पर पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से इस विष्वप्रसिद्ध रचना का निर्माण प्रारम्भ हुआ। सन् 1985 में वह रचना बनकर पूर्ण हुई, तब विषाल राष्ट्रीय आयोजन के साथ उत्तरप्रदेष के तात्कालिक मुख्यमंत्री द्वारा उसका लोकार्पण किया गया। तीर्थंकरों के जन्माभिषेक से पवित्र इस सुमेरुपर्वत का महत्त्व जानकर प्रत्येक श्रद्धालु को उसका दर्षन अवष्य करना चाहिए।
तीर्थंकर महावीर के अमूल्य सिद्धान्तजैनधर्म के शाष्वत नियमानुसार तीर्थंकर महावीर ने प्राणीमात्र के कल्याण हेतु अनेक अमूल्य सिद्धांत बताए, उनमें से कुछ सिद्धांतों का संक्षिप्तरूप यहां प्रस्तुत कियाजा रहा हैअणुव्रतहिंसा, झूठ, चोरी, कुषील और परिग्रह इन पांचों पापों के अणु अर्थात् एकदेष त्याग को अणुव्रत कहते हैं। वह पांच प्रकार का है
1. अहिंसाणुव्रत-मन, वचन, काय और कष्त, कारित, अनुमोदना से संकल्पपूर्वक (इरादापूर्वक) किसी त्रसजीव को नहीं मारना तथा प्राणीमात्र के प्रति दया की भावना रखना।
2. सत्याणुव्रत-स्वयं झूठ न बोले, न दूसरों से बुलवाए और ऐसा सच भी नहीं बोले कि जिससे धर्म आदि पर संकट आ जावे।
3. अचैर्याणुव्रत-किसी का रखा हुआ, पड़ा हुआ, भूला हुआ अथवा बिना दिया हुआ धन-पैसा आदि द्रव्य नहीं लेना और न उठाकर किसी को देना।
4. ब्रह्मचर्याणुव्रत-अपनी विवाहित स्त्री/पुरुष के अतिरिक्त अन्य स्त्री/पुरुष के साथ कामसेवन नहीं करना, उन्हें गलत दृष्टि से नहीं देखना।
5. परिग्रह परिमाण अणुव्रत-धन, धान्य मकान आदि वस्तुओं का जीवन भर के लिए परिमाण कर लेना, आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह नहीं करना।
निरतिचार (बिना दोष लगाए) पालन किए गये ये अणुव्रत नियम से स्वर्ग को प्राप्त कराते हैं। इनका आंशिकरूप से पालन श्रावक करते हैं तथा दिगम्बर जैन साधु-साध्वी इनका पूर्णरूप से त्यागकर महाव्रती कहलाते हैं।
इन पांचों व्रतों के विपरीत पांच पाप होते हैं जो इस प्रकार है-
1. हिंसा-प्रमाद से अपने या दूसरों के प्राणों का घात करना।
2. झूठ- जिस बात या जिस चीज को जैसा देखा या सुना हो वैसा नहीं कहना तथा जिन वचनोें से धर्म, धर्मात्मा या किसी भी जीव के प्राणों का घात हो ऐसा सत्य वचन भी झूठ है।
3. चोरी-बिना दिये किसी की गिरी, पड़ी, रखी या भूली हुई वस्तु को ग्रहण करना अथवा किसी को दे देना।
4. कुशील-पराई स्त्री के साथ या परपुरुष के साथ रमण करना या उसकी इच्छा करना।
5. परिग्रह-जमीन, मकान, धन, धान्य, गाय, बैल इत्यादि से मोह रखना तथा इन्हीं भौतिक चीजों को एकत्रित करने की इच्छा करना, उन्हें इकट्ठा करना । ये पांचों पाप प्रत्येक प्राणी के लिए अहितकर और त्यागने योग्य हैं।
इसी प्रकार से सात व्यसन हैं जिनके नाम हैं- जुआ खेलना, मांस खाना, मदिरा (शराब) पीना, वेश्यासेवन करना, चोरी करना, शिकार करना और परस्त्रीसेवन करना।
क्रोध, मान (घमण्ड), माया और लोभ ये चार कषाय हैं। इन चारों कषायों का भी सर्वथा त्याग कर देना चाहिए और अपने जीवन को पापों, कषायों एवं व्यसनों से मुक्त बनाना चाहिए क्योंकि इनके सेवन से नरक आदि दुख की प्राप्ति होती है।
जैन धर्म में अनेक सिद्धान्तों में अहिंसा पालन की दृष्टि से रात्रि भोजन का त्याग और जल छानकर पीने का वैज्ञानिक तरीका भी बताया गया है क्योंकि उसमें जीवहिंसा के बचाव के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ भी होता है।
जैनधर्म के शाश्वत नियमानुसार तीर्थंकर महावीर ने प्राणीमात्र के कल्याण हेतु अनेक अमूल्य सिद्धान्त बताए, उनमें से कुछ सिद्धान्तों का संक्षिप्तरूप यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है-
1. अहिंसा-प्राणिमात्र के प्रति दया की भावना।
2. अपरिग्रह-अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना।
3. अनेकान्तवाद-समन्वयवादी भावनाओं के साथ वस्तुतत्त्व का कथन करना।
वर्तमान के लिए हितकर वीर वाणी-
भगवान महावीर द्वारा कहे गए सिद्धान्त इस युग के लिए सर्वथा प्रासंगिक हैं उनके कुछ अनमोल वचन यहाँ प्रस्तुत हैं-
1. पेड़-पौधे, जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी सभी में जीवन है अतः इनकी व्यर्थ में हिंसा नहीं करनी चाहिए।
2. प्रत्येक प्राणीमात्र की आत्मा शक्तिरूप में भगवान परमात्मा है अतः सबको अपने समान समझो।
3. जो व्यवहार तुम्हें दूसरों के द्वारा प्रतिकूल लगता है वैसा व्यवहार तुम दूसरों के प्रति मत करो।
4. ईश्वर जगत् का कत्र्ता नहीं है वह परमवीतराग है।
5. ईश्वर का संसार में पुनर्जन्म नहीं होता वह जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
6. हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पांचों पापों का त्याग करो।
7. चैरासी लाख योनियों में भ्रमण करते हुए प्राणियों के लिए मात्र धर्म ही सहारा है।
8. आवश्यकता से अधिक परिग्रह संचय मत करो।
9. जैसे शरीर के लिए भोजन आवश्यक है, वैसे ही आत्मा के लिए प्रभुभक्ति आवश्यक है।
इत्यादि वचनों का जीवन में पालन करना चाहिए।
एक स्वर्णिम अवसर- भारत सरकार द्वारा 6 अप्रैल 2001 को चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन भगवान महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक महोत्सव का उद्घाटन किया गया था जो राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रांतीय सरकारों एवं जैन समाजों द्वारा विविध आयामों के साथ मनाया गया। इस स्वर्णिम अवसर को प्राप्त कर हम सभी ने संगठित होकर अप्रैल 2002 तक भगवान महावीर के सर्वोदयी सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया जिसके फलस्वरूप हम जैनधर्म की व्यापकता एवं तीर्थंकर महापुरुषों की वाणी से विश्वशांति, पर्यावरणशुद्धि, पारस्परिक सौहार्द, विश्वमैत्री का संदेश दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचा पाने में सफल हो सके।
भगवान महावीर की ये अमूल्य शिक्षाएँ सभी के जीवन में सुख-शांति की वृद्धि करें, यही मंगल कामना है।
प्रश्न-1. भगवान महावीर का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर- बिहार प्रान्त के कुण्डलपुर नगर में (वर्तमान में नालन्दा जिले में है)।
प्रश्न-2. भगवान महावीर का जन्म कब हुआ था?
उत्तर- ईसा से 600 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को।
प्रश्न-3. उनकी माता का नाम क्या था ?
उत्तर- महारानी त्रिशला देवी।
प्रश्न-4. उनके पिता का नाम बताओ?
उत्तर- महाराजा सिद्धार्थ।
प्रश्न-5. महावीर के बाबा का नाम क्या था ?
उत्तर- महाराज सर्वार्थ।
प्रश्न-6. महावीर स्वामी के कितने नाम प्रसिद्ध हैं?
उत्तर- पाँच-वीर, अतिवीर, महावीर, सन्मति, वर्धमान।
प्रश्न-7. प्रभु महावीर की वीरता की पहली परीक्षा किसने ली थी?
उत्तर- संगम देव ने सर्प बनकर परीक्षा ली थी।
प्रश्न-8. कितने वर्ष की उम्र में तीर्थंकर महावीर ने दीक्षा ली थी?
उत्तर- 30 वर्ष की उम्र में।
प्रश्न-9. भगवान महावीर ने मोक्ष कहाँ प्राप्त किया था?
उत्तर- बिहार प्रांत की पावापुरी नगरी में।
प्रश्न-10. महावीर स्वामी की आयु कुल कितने वर्ष की थी?
उत्तर- 72 वर्ष।
प्रश्न-11. भगवान महावीर का चिन्ह क्या है?
उत्तर- शेर।
प्रश्न-12. महावीर स्वामी के एक विशेष आहार के समय किसकी बेड़ियां टूटी थीं?
उत्तर- महासती चन्दना की।
प्रश्न-13. चंदना का महावीर से क्या संबंध था?
उत्तर- चन्दना महावीर स्वामी की सबसे छोटी मौसी थीं।
प्रश्न-14. तीर्थंकर किसे कहते है?
उतर- जो धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करते हैं वे तीर्थंकर कहलाते हैं।
प्रश्न-15. तीर्थंकर के जन्म की क्या विशेषता है?
उत्तर- जिनके जन्म से 15 महीने पहले तक रत्नों की वर्षा होती है।
प्रश्न-16. तीर्थंकर कितने होते हैं?
उत्तर. चैबीस (24)।
प्रश्न-17. सुमेरु पर्वत की महिमा क्या है?
उत्तर- इस पर जन्मजात तीर्थंकर बालक का इन्द्रों द्वारा जन्माभिषेक किया जाता है इसलिए इसकी महिमा विशेष है।
प्रश्न-18. जन्माभिषेक क्या है?
उत्तर- जन्मजात तीर्थंकर बालक का 1008 कलशों से अभिषेक करना (स्नान कराना) जन्माभिषेक कहलाता है।
प्रश्न-19. वह सुमेरुपर्वत कहाँ है?
उत्तर- जम्बूद्वीप के बीचोंबीच में सुमेरु पर्वत है।
प्रश्न-20. वर्तमान में ऐसा सुमेरु पर्वत बड़े रूप में कहाँ बना है?
उत्तर- हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप रचना के बीच मेें 101 फुट ऊँचा सुमेरू पर्वत बना है।
प्रश्न-21. पहले तीर्थंकर का नाम बताओ?
उत्तर- तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी।
प्रश्न-22. ऋषभदेव का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर- अयोध्या नगरी में।
प्रश्न-23. उनकी माता का नाम क्या था?
उत्तर- महारानी मरुदेवी जी।
प्रश्न-24. उनके पिता का क्या नाम था?
उत्तर- महाराजा नाभिराय जी।
प्रश्न-25. अयोध्या में अन्य किन महापुरुष का जन्म हुआ था?
उत्तर- मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी का।
प्रश्न-26. श्री रामचन्द्र का जन्म किस दिन हुआ था?
उत्तर- चैत्र शुक्ला नवमी तिथि को।
प्रश्न-27. उस तिथि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर- उस तिथि को रामनवमी के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न-28. धर्म किसे कहते हैं?
उत्तर- जो उत्तम सुख को प्राप्त करावे वह धर्म है।
प्रश्न-29. जैन धर्म की स्थापना किसने की?
उत्तर- किसी ने नहीं, क्योंकि वह शाश्वत धर्म है।
प्रश्न-30. महावीर की निर्वाण तिथि क्या है?
उत्तर- कार्तिक कृष्णा अमावस।
प्रश्न-31. उसे किस पर्व के रूप में मनाया जाता है?
उत्तर- वीर निर्वाण दिवस जैन धर्मानुसार दीपावली पर्व के रूप में मनाया जाता है।
प्रश्न-32. महावीर के नाम पर सरकारी छुट्टी कब होती है?
उत्तर- महावीर जयन्ती को, चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन महावीर भगवान के जन्म दिन के उपलक्ष्य में यह छुट्टी होती है।
प्रश्न-33. व्यसन किसे कहते हैं?
उत्तर- बुरी आदत को व्यसन कहतेे हैं।
प्रश्न-34. व्यसन कितने होते हैं?
उत्तर- सात।
प्रश्न-35. सात व्यसनों के नाम बताओ?
उत्तर- 1.जुआ खेलना 2. मांस खाना 3. शराब पीना 4.वेश्या सेवन
5. शिकार खेलना 6. चोरी करना 7. परस्त्री सेवन करना।
प्रश्न-36. पांडवों को किस व्यसन के कारण जंगल में जाना पड़ा?
उत्तर- जुआ खेलने के कारण।
प्रश्न-37. रावण को किस व्यसन के कारण नरक जाना पड़ा?
उत्तर- परस्त्री सेवन की भावनामात्र से, क्योंकि उसने सीता का हरण किया था उससे बलात्कार नहीं किया था।
प्रश्न-38. शराब पीने से क्या हानि होती है?
उत्तर- पैसा, स्वास्थ्य एवं परिवार की बर्बादी होती है। इस लोक में निंदा एवं अगले भव में नरक के दुख भोगना पड़ता है।
प्रश्न-39. शिकार खेलना बुरा क्यों है?
उत्तर- इससे निरपराध जीवों की हिंसा होती है और इनकी हिंसा से नरक में जाना पड़ता है।
प्रश्न-40. सातों व्यसनों में कौन सा व्यसन अच्छा है?
उत्तर- कोई भी नहीं।
प्रश्न-41. सत्य बोलने में कौन सा राजा लोकव्यवहार में प्रसिद्ध हुआ है?
उत्तर- राजा हरिश्चन्द्र।
प्रश्न-42. श्री रामचन्द्र जी की प्रसिद्धि क्यों हुई?
उत्तर- पिता की आज्ञापालन करने के कारण।
प्रश्न-43. पाप किसे कहते हैं?
उत्तर- बुरे कार्यों को करना पाप कहलाता है।
प्रश्न-44. पाप कितने होते हैं? उनके नाम बताओ?
उत्तर- पाँच-1. हिंसा 2. झूठ 3. चोरी 4. कुशील 5.परिग्रह
प्रश्न-45. हिंसा किसे कहते हैं?
उत्तर- किसी भी छोटे-बड़ेे प्राणी को मारना हिंसा है।
प्रश्न-46. झूठ किसे कहते हैं?
उत्तर- अपनी देखी सुनी बात को गलत रूप में बताना झूठ है।
प्रश्न-47. चोरी किसे कहते हैं?
उत्तर- किसी की गिरी, पड़ी या भूली चीजों को उससे पूछे बिना उठा लेना चोरी है।
प्रश्न-48. कुशील किसे कहतेे हैं?
उत्तर- पुरुषों के द्वारा किसी महिला को बुरी नजर से देखना और महिलाओं के द्वारा किसी पुरुष के प्रति बुरी दृष्टि रखना कुशील पाप है।
प्रश्न-49. परिग्रह किसे कहते हैं?
उत्तर- आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह करने को परिग्रह कहते हैं।
प्रश्न-50. पापों का त्याग कौन कर सकते हैं?
उत्तर- मनुष्य एवं पशु भी पापों का त्याग कर सकते हैं।
प्रश्न-51. अणुव्रत किसे कहते हैं?
उत्तर- जिन व्रतों को छोटे रूप में-आंशिक रूप में पालन किया जाता है वे अणुव्रत कहलाते हैं।
प्रश्न-52. अणुव्रतों का पालन कौन करते हैं?
उत्तर- गृहस्थ स्त्री-पुरुष अणुव्रतों का पालन करते हैं।
प्रश्न-53. महाव्रत किसे कहते हैं?
उत्तर- पूर्णरूप से पांचों पापों का त्याग करने को महाव्रत कहते हैं।
प्रश्न-54. महाव्रत कितने होते हैं? उनके नाम बताओ।
उत्तर- पांच-1. अहिंसा महाव्रत 2. सत्य महाव्रत 3. अचैर्य महाव्रत
4. ब्रह्मचर्य महाव्रत 5. अपरिग्रह महाव्रत।
प्रश्न-55. बच्चों का सबसे बड़ा क्या कत्र्तव्य है?
उत्तर- माता-पिता, गुरु, मित्र, भाई-बहन और परिवार के प्रति विनय करना, उद्दण्डता नहीं करना।
प्रश्न-56. माता-पिता के प्रति आपके क्या कर्तव्य हैं?
उत्तर- उनकी आज्ञा का पालन करना।
प्रश्न-57. गुरू के प्रति विद्यार्थी के क्या कर्तव्य हैं?
उत्तर- गुरू की विनय करना, उनकी आज्ञा का पालन करना और उनकी गलती नहीं देखना।
प्रश्न-58. भगवान किसे कहते हैं?
उत्तर- जो कर्मों से छूटकर फिर कभी संसार में जन्म न लंे उन्हें भगवान कहते हैं।
प्रश्न-59. इंसान की क्या पहचान है?
उत्तर- जो अपने समान दूसरों को भी समझकर किसी को कष्ट न दे उसे इंसान कहते हैं।
प्रश्न-60. अंडा शाकाहार है या मांसाहार?
उत्तर- मांसाहार, क्योंकि उसमें किसी माँ का बच्चा ही होता है।
प्रश्न-61. शाकाहारी वस्तुओं की उत्पत्ति कैसे होती है?
उत्तर- पेेड़ों से और खेती द्वारा उत्पन्न वस्तु शाकाहारी होती है। जैसे-अनाज, फल, मेवा, सब्जी।
प्रश्न-62. मांसाहारी चीजें कहाँ से उत्पन्न होती हैं?
उत्तर- जीवों के पेट से पैदा होने वाले अंडे और जीवों के हड्डी, खून, मांस आदि से बनने वाली चीजें मांसाहारी होती हंै।
प्रश्न-63. मत्स्य पालन केन्द्र धर्म है या अधर्म?
उत्तर- अधर्म है क्योंकि इसमें मछलियों को मारने के लिए पाला जाता है अतः यह मत्स्यमारण है।
प्रश्न-64. भारतीय संस्कृति की जड़ क्या है?
उत्तर- अहिंसा और स्त्रियों का पातिव्रत्यधर्म।
प्रश्न-65. हिंसा के कितने भेद हैं?
उत्तर- चार भेद हंै-1. संकल्पी 3. आरंभी 3. उद्योगी 4. विरोधी।
प्रश्न-66. संकल्पी हिंसा किसे कहते हैं?
उत्तर- जानबूझकर किसी भी छोटे-बड़े जीव को मारना संकल्पी हिंसा है।
प्रश्न-67. आरंभी हिंसा का क्या अर्थ है?
उत्तर- खाना पकाने, पानी भरने, कपड़ा धोने आदि कार्यों में आरंभी हिंसा होती है।
प्रश्न-68. उद्योगी हिंसा किस-किस कार्य में होती है?
उत्तर- व्यापार, खेती आदि में उद्योगी हिंसा होती है।
प्रश्न-69. विरोधी हिंसा का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- अपने परिवार, समाज, देश तथा सत्य की रक्षा हेतु विरोधियों से लड़ना विरोधी हिंसा है। जैसेµरामचन्द्रजी ने नारी अत्याचार के विरोध में रावण के साथ युद्ध किया था।
प्रश्न 70. इन चारों हिंसाओं में गृहस्थ किससे बच सकते हैं?
उत्तर- संकल्पी हिंसा से, क्योंकि यह सर्वथा त्याज्य है एवं शेष तीन का त्याग गृहस्थ जीवन में असंभव है।
प्रश्न-71. युुद्ध मेें होने वाली हिंसा का क्या नाम है?
उत्तर- अपनी देशरक्षा के लिए किये जाने वाले युद्ध में होने वाली हिंसा का नाम है-विरोधी हिंसा।
प्रश्न-72. देश रक्षा में मरने वाले सैनिक के मरण का नाम क्या है?
उत्तर- वीरमरण।
प्रश्न-73. हमारे देश का नाम किस राजा के नाम पर पड़ा है?
उत्तर- भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा है।
प्रश्न-74. जैन धर्म का मूलमंत्र क्या है?
उत्तर- णमोकार मंत्र-णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।
प्रश्न-75. णमोकार मंत्र का क्या मतलब है?
उत्तर- इसमें पांच प्रकार के महापुरुषों को नमस्कार किया गया है, इसलिए इसे पंच-नमस्कार मंत्र भी कहते हैं।
प्रश्न-76. वे पांच महापुरुष कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर- अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु। ये पाँचपरमेष्ठी होते है।
प्रश्न-77. परमेष्ठी किसे कहते हैं?
उत्तर- जो परम अर्थात् मनुष्यों में सबसे अधिक पूज्य पद में स्थित होते हैं उन्हें परमेष्ठी कहते हैं।
प्रश्न-78. वर्तमान में जैन धर्म के कितने भेद हंै?
उत्तर- दो भेद हंै-1. दिगम्बर धर्म 2. श्वेतांबर धर्म।
प्रश्न-79. जैन साधु के वर्तमान में कितने भेद हंै?
उत्तर- दो भेद हंै-दिगम्बर जैन साधु और श्वेताम्बर जैन साधु।
प्रश्न-80. दिगम्बर जैन साधुओं की क्या पहचान है?
उत्तर- वे नग्न होते हैं, उनके हाथ में मोरपंख की पिच्छी और लकड़ी का कमंडलु होता है।
प्रश्न-81. इन साधुओं को क्या कहा जाता है?
उत्तर- मुनि महाराज जी।
प्रश्न-82. दिगम्बर साधु पूरे नग्न क्योें रहते हैं?
उत्तर- क्योंकि उनका मन पूर्ण शुद्ध-पवित्र होता है, बच्चे के समान वे निर्विकारी होते हंै।
प्रश्न-83. दिगम्बर जैन धर्म में साध्वियों की क्या पहचान है?
उत्तर- दिगम्बर जैन साध्वी एक सफेद साड़ी पहनती हैं और उनके हाथ में भी मोरपंख की पिच्छी एवं लकड़ी का कमण्डलु होता है।
प्रश्न-84. इन साध्वियों को क्या कहा जाता है?
उत्तर- आर्यिका माताजी।
प्रश्न-85. ये साधु-साध्वी मोरपंख की पिच्छी क्यों रखते हैं?
उत्तर- यह इनकी पहचान है क्योंकि उठते, बैठते, सोते आदि सभी समय ये मोरपंख की पिच्छी से स्थान को परिमार्जित कर (जीव जन्तु बचाकर) बैठते हंै ताकि कोई छोटा सा भी जीव मरने न पावे।
प्रश्न-86. साधु-साध्वी कमंडलु क्यों साथ रखते हैं?
उत्तर- इसमें शरीर शुद्धि के लिए गरम जल रखते हैं।
प्रश्न-87. उस जल का जैन मुनिगण क्या प्रयोग करते हैं?
उत्तर- दीर्घशंका, लघुशंका जाने में शुद्धि के लिए उस जल का प्रयोग करते हैं उसे वे कभी भी पीते नहीं हंै।
प्रश्न-88. जैन धर्म के मूल सिद्धान्त क्या हैं?
उत्तर- अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त ये जैन धर्म के मूल सिद्धान्त हैं।
प्रश्न-89. भारतीय मुद्रा पर कौन सी सूक्ति लिखी होती है?
उत्तर- सत्यमेव जयते।
प्रश्न-90. जैनधर्म के प्रसिद्ध पांच तीर्थों के नाम बताओ?
उत्तर- अयोध्या, सम्मेदशिखर, हस्तिनापुर, कुण्डलपुर, पावापुर।
प्रश्न-91. हस्तिनापुर का नाम विशेष प्रसिद्ध किस कारण से हुआ?
उत्तर- कौरव-पांडव की राजधानी के कारण।
प्रश्न-92. हस्तिनापुर में विशेष दर्शनीय स्थल क्या है?
उत्तर- जम्बूद्वीप रचना।
प्रश्न-93. जम्बूद्वीप क्या है?
उत्तर- जैन भूगोल का ज्ञान कराने वाला पृथ्वी का स्वरूप जम्बूद्वीप है।
प्रश्न-94. जम्बूद्वीप की रचना किसकी प्रेरणा से बनी है?
उत्तर- जैन साध्वी पूज्य गणिनीप्रमुख (आचार्या) श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से।
प्रश्न-95. पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने कितने शास्त्र लिखे हैं?
उत्तर- दो सौ पचास (250)।
प्रश्न-96. गति किसे कहते हैं?
उत्तर- एक जन्म से दूसरे जन्म को धारण करने का नाम गति है।
प्रश्न-97. गतियाँ कितनी होती हैं?
उत्तर- चारµनरकगति, तिर्य॰चगति, (पशुगति) मनुष्यगति, देवगति।
प्रश्न-98. कैसे कर्म करने से देवगति मिलती है?
उत्तर- दूसरों का उपकार करने से, सदाचार का पालन करने से तथा भगवान की उपासना से देवगति मिलती है।
प्रश्न-99. नरकगति में कौन से दुख होते हैं?
उत्तर- संसार के सारे दुख नरक में होते हैं। जैसेµमार-काट, अग्नि में पकाना, आरे से चीरना आदि।
प्रश्न-100. कौन से जीवों को मरकर नरक में जाना पड़ता है?
उत्तर- हिंसा करने वालेे, शराब पीने वाले, जुआ खेलने आदि पाप करने वाले लोग मरकर नरक में जाते हैं।
प्रश्न-101. किन कर्मों से पशु पर्याय मिलती है?
उत्तर- दूसरों के साथ विश्वासघात करने से, ठगने से पशु पर्याय में जाना पड़ता है।
प्रश्न-102. गुरू की विनय करने से क्या लाभ है?
उत्तर- इस जन्म में खूब विद्या प्राप्त होती है और अगले जन्म में मनुष्य या देव जैसी अच्छी योनि में जन्म होता है।
प्रश्न-103. सच्चे जैन श्रावक (गृहस्थ) की मुख्य पहचान क्या है?
उत्तर- पानी छानकर पीना, रात्रि में भोजन नहीं करना और प्रतिदिन भगवान के दर्शन करना।
प्रश्न-104. जैन साधु-साध्वी हमेशा पैदल विहार क्यों करते हैं?
उत्तर- अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए और अपने उपदेशों से जनकल्याण करने हेतु वे सदैव पैदल विहार करते हैं।
प्रश्न-105. दिगम्बर जैन साधु-साध्वियों की मुख्य तीन पहचान क्या हैं?
उत्तर- करपात्र में दिन में एक बार भोजन लेना, केशलोंच करना (अपने हाथों से अपने सिर, दाढ़ी, मूछ के बाल उखाड़ना) पैदल विहार करना।
प्रश्न-106. कषाय किसे कहते हैं?
उत्तर- जिन भावों से आत्मा कसी जाती है अर्थात् आत्मा को दुख मिलता है उसे कषाय कहते हैं।
प्रश्न-107. कषाय कितने प्रकार की होती है?
उत्तर- चारµक्रोध, मान, माया, लोभ।
प्रश्न-108. इनमें सबसे ज्यादा बुरी कौन सी कषाय है?
उत्तर- क्रोध कषाय, क्योंकि क्रोध में आकर लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं।
प्रश्न-109. समस्त अनर्थों का मूल कौन सी कषाय है?
उत्तर- लोभ। इसलिए लोभ को पाप का बाप कहा गया है।
प्रश्न-110. सामान्य रूप से सभी मनुष्यों में कितनी कषाय होती है?
उत्तर- चारों कषाय सामान्य रूप से सभी में पाई जाती है।
प्रश्न-111. पूर्णरूप से कषाय रहित कौन होते हैं।
उत्तर- भगवान, जिन्होंने सभी कर्मों को जीत लिया है।