-आर्यिका चन्दनामती
‘‘तीर्यते संसारसागरो येन असौ तीर्थ:’’ अर्थात् जिसके द्वारा संसाररूपी महासमुद्र को तिरा जाता है, पार किया जाता है, उसे तीर्थ कहते हैं। इस परिभाषा के अनुसार जिनधर्म सबसे उत्तम तीर्थ है और जिनधर्म का मूलमंत्र है-णमोकार महामंत्र। इस महामंत्र के नाम से निर्मित तीर्थ का यहाँ संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है।मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में इंदौर-सनावद रोड पर बने इस तीर्थ का नाम है-‘‘णमोकार धाम तीर्थ’’। सन् १९९६ में परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी का ससंघ मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र की ओर विहार करते हुए ‘‘सनावद’’ नगर में मंगल पदार्पण हुआ। उनके संघ में सन् १९६७ से (ब्र. मोतीचंद के रूप में) साधनारत क्षुल्लक मोतीसागर महाराज (सन् १९८७ में दीक्षित हुए) की प्रबल भावना थी कि मेरी जन्मभूमि सनावद में किसी धार्मिक रचना का निर्माण हो, सनावद पहुँचने पर उन्होंने पूज्य माताजी से भावना व्यक्त की अत: माताजी ने चिन्तन करके पंचपरमेष्ठी भगवन्तों की प्रतिमा और णमोकार मंत्र के ३५ अक्षरों से समन्वित एक पवित्र योजना ‘‘णमोकार धाम’’ तीर्थ के नाम से वहाँ साकार करने के लिए समाज को निर्देश दिया। आनन-फानन में योजना बनी और तीर्थ के लिए भूमि प्रदान करने का पुण्य प्राप्त किया क्षुल्लक मोतीसागर महाराज के गृहस्थावस्था के लघु भ्राता श्री प्रकाशचंद जैन सराफ ने। अत: दिनाँक ३१ मार्च १९९६, चैत्र शुक्ला द्वादशी, रविवार को संघ सान्निध्य में तीर्थ का शिलान्यास हो गया।
पुन: इस निर्माणाधीन तीर्थ परिसर में सर्वप्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान की सवा सात फुट पद्मासन प्रतिमा विराजमान होते ही तीर्थयात्रियों का आवागमन प्रारंभ हो गया। तीर्थ के प्रमुख स्तंभ श्रावकरत्न श्री प्रकाशचंद जी द्वारा अभिसिंचित सुन्दर बाग-बगीचे वाले इस उपवन में क्रमश: एक चैत्यालय, वुँâआ, कुछ कमरे और ‘णमोकार धाम मंदिर’ का निर्माण भी हो गया।पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी ने योजना शिल्पी के रूप में इस मंदिर के अंदर णमोकार मंत्र के पाँच पदों को साकार करने हेतु पंचपरमेष्ठी भगवन्तों की पाँच प्रतिमाएँ और उनके नीचे मंत्र पद (पच्चीकारी वाले) लिखवाकर तीर्थ को एक अनूठा स्वरूप प्रदान कर दिया है। इन पंचपरमेष्ठी की पाँचों प्रतिमाओं की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सन् २०१०, फाल्गुन शु. पंचमी को जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में सम्पन्न हो चुकी है। पुन: सन् २०१२ में फाल्गुन शु. तृतीया, २४ फरवरी को ये प्रतिमाएँ णमोकार धाम मंदिर में विराजमान हो रही हैं।
जो भी भक्त इन प्रतिमाओं का अभिषेक करेंगे, वे परमेष्ठियों के पवित्र गंधोदक के साथ-साथ अनादिनिधन-अपराजित णमोकार महामंत्र के ३५ अक्षरों के मंत्रित जल से भी अपने तन-मन को पावन, सुरक्षित और स्वस्थ करने का अभूतपूर्व लाभ प्राप्त करेंगे। इस तीर्थ पर सदैव आर्ष परम्परानुसार तथा बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्र्ती श्री शांतिसागर मुनि महाराज की मान्यतानुसार बीसपंथ आम्नाय (पंचामृत अभिषेक, स्त्रियों द्वारा अभिषेक, फल-फूल चढ़ाने की परम्परा, शासन देव-देवी की पूजा) चल रही है और आगे भी सदैव यही परम्परा चलेगी। आने वाले दिगम्बर जैन तीर्थयात्री और भक्तगण अपनी इच्छानुसार बीसपंथ और तेरहपंथ दोनों परम्परा से अभिषेक-पूजन कर सकते हैं। इसमें कोई विवाद की स्थिति इस तीर्थ पर नहीं रखी गई है। यह अत्यन्त बुद्धिमत्ता और पारस्परिक सौहार्द का परिचायक है।यह तीर्थ युग-युग तक संसार को महामंत्र णमोकार की महिमा से परिचित कराता रहे और तीर्थ की प्रबंधकारिणी कमेटी के समस्त कार्यकर्ता भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ तीर्थ के सच्चे अर्थ को जीवन में साकार करें, यही मंगलकामना है।
-२८ जनवरी २०१२, बसंत पंचमी