-आर्यिका चंदनामती
तर्ज—पंखिड़ा तू उड़के जाना…..
वंदना करूँ मैं णमोकार धाम की।
पंचपरमदेव महामंत्र नाम की।।
वंदना……..वंदना….।।टेक.।।
जैसे जैनधर्म विश्व में अनादिनिधन है।
महामंत्र णमोकार भी अनादिनिधन है।।
मन से जपो तन से जपो प्रभू नाम ही।
पंचपरमदेव महामंत्र नाम की।।
वंदना……..वंदना….।।१।।
पाँच पद तथा पैंतीस अक्षरों का मंत्र है।
इसमें राजतीं परमेष्ठियों की मूर्ति पंच हैं।।
मन से जपो तन से जपो प्रभू नाम ही।
पंचपरमदेव महामंत्र नाम की।।
वंदना……..वंदना….।।२।।
गणिनी ज्ञानमती माताजी से योजना मिली।
पीठाधीश मोतीसागर जी की प्रेरणा मिली।।
मन से जपो तन से जपो प्रभू नाम ही।
पंचपरमदेव महामंत्र नाम की।।
वंदना……..वंदना….।।३।।
णमोकार धाम नामके इस तीर्थ को नमन।
‘चन्दनामती’ करो प्रभू की कीर्ति को नमन।।
मन से जपो तन से जपो प्रभू नाम ही।
पंचपरमदेव महामंत्र नाम की।।
वंदना……..वंदना….।।४।।