सिद्धं चेद्धेतुत: सर्वं न प्रत्यक्षादितो गति:।
सिद्धं चेदागमात्सर्वं विरुद्धार्थमतान्यपि।।७६।।
यदी हेतु से सभी तत्त्व की, सिद्धी मानी जाए सही।
तब प्रत्यक्ष अनुमान आदि से, वस्तुस्थिति अरु ज्ञान नहीं।।
यदि आगम से सभी तत्त्व को, सच्चे सिद्ध कोई करते।
तब विरुद्ध मत वाले आगम, से विरुद्ध मत सच होंगे।।७६।।
अन्वयार्थ-(हेतुत: सर्वं सिद्धं चेत् प्रत्यक्षादित: गति: न) यदि सभी तत्त्व हेतु से सिद्ध हैं तब तो प्रत्यक्षादि प्रमाण से किसी वस्तु का ज्ञान नहीं हो सकेगा (आगमात् सर्वं सिद्धं चेत् विरुद्धार्थमतानि अपि) यदि आगम से सभी तत्त्व सिद्ध माने जावेंगे, तब तो विरुद्ध अर्थ को कहने वाले आगम भी प्रमाण हो जावेंगे।
कारिकार्थ-यदि सभी तत्त्व एकांत से हेतु से ही सिद्ध होते हैं तब तो प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से किसी तत्त्व की सिद्धि नहीं हो सकेगी। यदि सभी तत्त्व आगम से ही सिद्ध माने जायेंगे, तब तो विरुद्ध अर्थ के प्रतिपादन करने वाले मत भी आगम से सिद्ध हो जावेंगे।
विरोधान्नोभयैकात्म्यं, स्याद्वादन्यायविद्विषाम्।
अवाच्यतैकान्तेऽप्युक्तिर्नावाच्यमिति युज्यते।।७७।।
हेतू-आगम दोनों का, एकात्म्य बने नहिं परमत में।
स्याद्वाद विद्वेषी जन के, दिखे विरोध परस्पर में।।
यदि दोनों का ‘अवक्तव्य’ है, यह एकांत लिया जावे।
तब तो ‘अवक्तव्य’ पर से भी, क्यों वक्तव्य किया जावे।।७७।।
अन्वयार्थ-(स्याद्वादन्यायविद्विषां उभयैकात्म्यं न) स्याद्वाद न्याय के विद्वेषियों के यहाँ हेतु और आगम के उभय का एकात्म्य भी नहीं हो सकता है (अवाच्यतैकांते अपि अवाच्यं इति उक्ति: न युज्यते) यदि इन उभय तत्त्व को सर्वथा अवाच्य कहा जाये, तो ‘अवाच्य’ यह कथन भी नहीं किया जा सकता है।
कारिकार्थ-स्याद्वादन्याय के द्वेषी जनों के यहाँ हेतुवाद और आगमवादरूप उभयैकात्म्य भी नहीं बन सकता है क्योंकि परस्पर में विरोध आता है तथा इन दोनों के अवक्तव्यैकांत को स्वीकार करने पर तो ‘अवाच्य’ इस प्रकार का शब्द प्रयोग भी नहीं किया जा सकता है।
वक्तर्यनाप्ते यद्धेतो: साध्यं तद्धेतुसाधितम्।
आप्ते वक्तरि तद्वाक्यात्साध्यमागमसाधितम्।।७८।।
वक्ता आप्त नहीं होने से, हेतू से जो सिद्ध हुआ।
युक्तसिद्ध वह तत्त्व सदा ही, हेतू साधित कहा गया।।
वक्ता आप्त यही होवे तो, उनके वचनों से साधित।
सभी तत्त्व निर्बाधरूप से, कहलाते आगम साधित।।७८।।
अन्वयार्थ-(अनाप्ते वक्तरि हेतो: यत् साध्यं तत् हेतु साधितम्) यदि वक्ता आप्त नहीं है तब हेतु से जो साध्य है वह हेतु साधित कहलाता है (आप्ते वक्तरि तत् वाक्यात् साध्यं आगमसाधितं) यदि वक्ता आप्त है तब उनके वचनों से जो तत्त्व सिद्ध होते हैं वे आगम साधित कहलाते हैं।
कारिकार्थ-वक्ता के आप्त न होने पर जो हेतु से साध्य होता है, वह हेतु साधित है और वक्ता जब आप्त होता है, तब उसके वाक्य से जो सिद्ध होता है, वह आगम साधित है।
।। इति षष्ठ: परिच्छेद:।।