उपर्युक्त स्थविरकल्पी के लक्षण के अनुसार आजकल के मुनि हीन संहनन वाले होने से स्थविरकल्पी ही होते हैं, अत: जिनागम की आज्ञा के अनुसार ये ग्राम, नगर आदि के मंदिरों में या वसतिकाओं में वर्षायोग की स्थापना करते हैं और रहते हैं। कोई-कोई मुनि अपने को जिनकल्पी समझकर संघ में रहने वाले साधुओं की या संघ की व्यवस्था संभालने वाले आचार्य की अवहेलना और निंदा भी करते हैं तथा कोई-कोई श्रावक भी संघ के आचार्य की निंदा किया करते हैं जो कि आगम की ही अवहेलना करते हैं, ऐसा स्पष्ट हो जाता है।