प्रश्न-क्या चतुर्थकाल में मुनि ग्राम, उद्यान, मंदिर या वसतिकाओं में रहते थे?
उत्तर-हाँ! ग्राम, उद्यान आदि में रहते भी थे, वर्षायोग भी करते थे और वे साधारण मुनि न होकर महामुनि थे। आगम के उदाहरण देखिए।
‘‘एक१ समय गुणधराचार्य (जो कि सुकुमाल के मामा थे) सुकुमाल की आयु थोड़ी समझकर उज्जयिनी नगरी में आकर सुकुमाल कुमार के महल के निकट उन्हीं के उद्यान में ठहर गये और वहीं वर्षायोग स्थापन कर लिया। यह जानकर सुकुमाल की माता यशोभद्रा ने आकर मुनिराज से प्रार्थना की कि हे मुनिवर! आप चातुर्मास में उच्च स्वर से स्वाध्याय आदि का पाठ नहीं करें। तदनुसार मुनिराज ने वैसा ही किया। अनंतर वर्षायोग की समाप्ति पर मुनिराज ने रात्रि में वर्षायोग निष्ठापन क्रिया करके उच्च स्वर से ऊर्ध्वलोक प्रज्ञप्ति का पाठ करना शुरू कर दिया जिसको सुनकर सुकुमाल को जातिस्मरण हो गया और उन्होंने वहाँ आकर गुरू को नमस्कार करके उपदेश श्रवण कर तथा अपनी आयु तीन दिन की जानकर जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर ली।१”
इस प्रकार से महामुनि गुणधर आचार्य ने महल के उद्यान में वर्षायोग व्यतीत किया था और वे अपने भानजे सुकुमाल के आत्महित में निमित्त बने थे। जब तक मुनियों की सराग चर्या रहती है, आहार-विहार आदि प्रवृत्ति करते हैं तब तक परोपकर को भी अपना मुख्य कर्तव्य समझते हैं।