गुरुभक्त्या वयं सार्ध-द्वीपद्वितयवर्तिन: ।
वन्दामहे त्रिसंख्योन-नवकोटि मुनीश्वरान् ।।
णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं।
आचार्य, उपाध्याय और साधुओं की वंदना करते समय ‘गुरुवंदना’ पढ़कर नमोऽस्तु करें।
आर्यिकाओं को वंदामि तथा ऐलक, क्षुल्लक व क्षुल्लिका को इच्छामि कहकर नमस्कार करें।