तर्ज—सारे जग का तू सरताज …………..
सारे जग में तेरी धूम-बाबा हो बाबा, सारे जग में तेरी धूम-बाबा हो बाबा।
सबसे ऊँची तेरी प्रतिमा, मांगीतुंगी तीर्थ की महिमा,
बढ़ गई ज्ञानमती की गरिमा।।सारे.।।
तीर्थंकर प्रथम इस धरा के हो तुम।
कर्मयुग के प्रभो आदिब्रह्मा हो तुम।।
तुमने मोक्षमार्ग बतलाया, जग को जीवनकला सिखाया,
आदिब्रह्मा तू कहलाया।।सारे.।।१।।
मांगीतुंगी में प्रतिमा तेरी बन गई।
ज्ञानमति माता की प्रेरणा मिल गई।।
दुनिया भर में सबसे ऊँची, मूरति देखो बनी अनूठी,
इनसे सुन्दर छवी न दूजी।।सारे.।।२।।
बड़ी प्रतिमा की सब ओर जयकार है।
नाभिनन्दन को मेरा नमस्कार है।।
बढ़ गई जिनशासन की कीरत, धन्य है मांगीतुंगी तीरथ,
बन गई तेरी सुंदर मूरत।।सारे.।।३।।
युग युगों तक अमर जैनशासन हुआ।
‘चन्दनामती’ अमर जैन आगम हुआ।।
आगम का प्रमाण दरशाया, मूर्ति सांगोपांग बनाया,
जैनीध्वज नभ में लहराया।।सारे.।।४।।
तर्ज-देख तेरे संसार…………
विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा बनी है आलीशान,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।टेक.।।
मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र में।
पर्वत के पाषाण खण्ड में।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माता की प्रेरणा महान,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।१।।
ऋषभदेव प्रतिमा प्रगटी है।
गुरुमाता की तपशक्ती है।।
उनका गौरवमय ससंघ सानिध्य मिला है महान,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।२।।
इक सौ अठ फुट की यह प्रतिमा।
जिनशासन की अद्भुत गरिमा।।
यह आश्चर्य प्रथम है जग में जैनधरम की शान,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।३।।
यह है आयडॅल ऑफ अहिंसा।
भारत की पहचान अहिंसा।।
इसे ‘‘चन्दनामती’’ हृदय से कर लो सभी प्रणाम,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।४।।
श्री रवीन्द्रकीर्ति का समर्पण।
भक्तों का अर्थाञ्जलि अर्पण।।
अमर रहेगा युग युग तक सबका तन मन धन दान,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।५।।