—नरेन्द्र छंद—
विजयमेरु ईशानदिशा में वृक्ष धातकी सोहे।
नैऋत दिश में वृक्ष शाल्मलि सुरगण का मन मोहे।।
इक इक के परिवार तरु दो, लाख सहस अस्सी हैं।
दोसौ अड़तीस इतने सब में, प्रतिमा शाश्वतकी हैं।।१।।
—नाराच छंद—
जिनेश बिंब एक सौ सुआठ सर्व वृक्ष में।
प्रमुख्यता धरे महान एक ही तरु इमें।।
नमो नमो जिनेश तोहि धर्म के स्वरूप हो।
कलंक पंक क्षालने सदा सुतीर्थ रूप हो।।२।।
अनादि हो अनन्त हो प्रसिद्ध सिद्ध रूप हो।
दयाल धर्मपाल तीन काल एक रूप हो।।
नमो नमो जिनेश तोहि धर्म के स्वरूप हो।
कलंक पंक क्षालने सदा सुतीर्थ रूप हो।।३।।
अलोक लोक में प्रधान तीन लोक नाथ हो।
अनेक रिद्धि के धनी सुभक्त के सनाथ हो।।
नमो नमो जिनेश तोहि धर्म के स्वरूप हो।
कलंक पंक क्षालने सदा सुतीर्थ रूप हो।।४।।
महान दीप्तिमान मोहशत्रु को कृपान हो।
प्रसन्न सौम्य आस्य१ हो पवित्र हो पुमान हो ।।
नमो नमो जिनेश तोहि धर्म के स्वरूप हो।
कलंक पंक क्षालने सदा सुतीर्थ रूप हो।।५।।
दिनेश२ तें विशेष तेज की महान राशि हो।
कुमोदनी भवीक हेतु तुम सुधानिवास३ हो।।
नमो नमो जिनेश तोहि धर्म के स्वरूप हो।
कलंक पंक क्षालने सदा सुतीर्थ रूप हो।।६।।
भवाब्धि डूबते तिन्हें तुम्हीं सुकर्णधार हो।
गुणौघ१ रत्न के समुद्र सार में सु सार हो।।
नमो नमो जिनेश तोहि धर्म के स्वरूप हो।
कलंक पंक क्षालने सदा सुतीर्थ रूप हो।।७।।
—दोहा—
तुम गुण गण मणि अगम हैं, को गण पावे पार।
ज्ञानमती गुण लव पढ़े, सो उतरे भव पार।।८।।