जिनमुद्रान्तरं कृत्वा पादयोश्चतुरङ्गुलम् । ऊर्ध्वजानोरवस्थानं प्रलम्बितभुजद्वयम् ।।८।।
अर्थात्-दोनों पैरों का चार अंगुलप्रमाण अन्तर (फासला) रखकर और दोनों भुजाओं को नीचे लटका कर कायोत्सर्ग रूप से खड़ा होना सो जिनमुद्रा है।।८।।