द्वे साम्यस्य स्तुतेश्चादौ शरीरनमनान्नती ।
वन्दनाद्यन्तयो: केश्रीन्निविश्य नमनान्मते ।।१७।।
अर्थात्-सामायिकदण्डक और स्तुतिदण्डक के पहले भूमिस्पर्शरूप पंचांगप्रणाम करने से दो नति की जाती हैं। कोई-कोई आचार्य वन्दना के पहले और पीछे बैठकर प्रणाम करने से दो नती मानते हैें।
भावार्थ-सामायिकदण्डक के पहले और चतुर्विंशतिस्तवदण्डक के पहले दो बार पंचांगप्रणाम किया जाता है इसलिये दो नती होती हैंं। स्वामि समन्तभद्रादिक का मत है कि वन्दना के प्रारम्भ में एक और समाप्ति में एक ऐसे दो प्रणाम बैठकर करना चाहिये इसलिये उनके मत से ये दो नती होती हैं।।१७।।
इति कृतिकर्म