तिसु तेरं दस मिस्से सत्तसु णव छट्ठयम्मि एक्कारा।
जोगिम्हि सत्तजोगा अजोगिठाणं हवे सुण्णं।।२२।।
त्रिषु त्रयोदश दश मिश्रे सप्तसु नव षष्ठे एकादश।
योगिनि सप्तयोगा अयोगिस्थानं भवेच्छून्यं।।
तीन गुणस्थानों में १३-१३, मिश्र में १०, सात गुणस्थानों में ९-९ एवं छठे में ११, सयोगी में ७, अयोगी में शून्य होते हैं अर्थात् प्रथम गुणस्थान में १३, द्वितीय में १३, तृतीय में १०, चतुर्थ में १३, पंचम में ९, छठे में ११, सातवें में ९, आठवें में ९, नवमें में ९, दसवें में ९, ग्यारहवें में ९, बारहवें में ९, तेरहवें में ७ और चौदहवें में शून्य है।।२२।।
दुसु दुसु पणइगिवीसं सत्तरसं देससंजदे तत्तो।
तिसु तेरं णवमे सग सुहमेगं होंति हु कसाया।।२३।।
१द्वयो: २द्वयो: पंचैकिंवशति: सप्तदश देशसंयते तत:।
त्रिषु त्रयोदश नवमे सप्त सूक्ष्मे एक: भवन्ति हि कषाया:।।
दो गुणस्थानों में २५, दो गुणस्थानों में २१, देशसंयत में १७, आगे तीन गुणस्थानों में १३, नवमें गुणस्थान में ७, दसवें में १ कषाय होती है।।२३।।
इस प्रकार से गुणस्थान में त्रिभंगी समाप्त हुई।