-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—रोम-रोम से निकले……
रोम-रोम से निकले माता नाम तुम्हारा! हाँ नाम तुम्हारा।।
ऐसा दो वरदान कि पाऊं, निश दिन दर्श तुम्हारा।। रोम……।।टेक.।।
ज्ञानमती माता के पद में, जग ने तुमको पाया।
एक सूर्य सम पूर्व दिशा ने, मानो तुम्हें उगाया।।
पैâला दो आलोक ज्ञान का, यही तुम्हारा नारा।। रोम………।।१।।
श्री चारित्र चक्रवर्ती ने, जैसे मुनिपथ बतलाया।
उसी तरह क्वाँरी कन्याओं, को तुमने पथ दर्शाया।।
सदी बीसवीं लेकर आयी, ज्ञानमती जयकारा।। रोम………।।२।।
श्री चारित्र चन्द्रिका माँ के, चरणों में वन्दन है।
युग की पहली ज्ञानमती, माता को अभिवन्दन है।।
अवध प्रान्त की अद्भुत मणि से, आलोकित जग सारा।। रोम…….।।३।।
सरस्वती की प्रतिमूर्ति, ब्राह्मी सम त्याग तुम्हारा।
तभी ‘चन्दनामती’ जगत ने, तुमको गुरु स्वीकारा।।
गणिनी ज्ञानमती माता के, चरणों नमन हमारा।। रोम………।।४।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—फूलों सा चेहरा तेरा……
इस युग की माँ शारदे, तू धर्म की प्राण है।
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।टेक.।।
महावीर प्रभु के शासन में अब तक,
कोई भी नारी न ऐसी हुई।
साहित्य लेखन करने की शक्ति,
तुझमें न जाने वैâसे हुई।।
शास्त्र पुराणों में, भक्ति विधानों में, तेरा प्रथम नाम है विश्व में-२
कलियुग की माँ भारती, पूनो का तू चांद है,
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।
इस युग…।।१।।
तीर्थंकरों की जन्मभूमि का,
उत्थान माता तुमने किया।
हस्तिनापुरी में जंबूद्वीप को,
साकार माता तुमने किया।।
तीर्थ अयोध्या की, कीर्ति प्रसारित की, मस्तकाभिषेक आदिनाथ का हुआ-२
तू जग की वागीश्वरी, धरती का सम्मान है,
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।
इस युग…।।२।।
गणिनी शिरोमणि तेरी तपस्या,
का लाभ इस वसुधा को मिला।
चारित्र चक्री गुरु के सदृश ही,
‘‘चंदना’’ इक पुष्प जग में खिला।
पुष्प महकता है, चाँद चमकता है, ज्ञानमती माता के रूप में-२
युग युग तू जीती रहे, हम सबके अरमान हैं,
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।
इस युग…।।३।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—मनिहारों का रूप……
शारद माता का रूप दिखाया,
ज्ञान का तूने अलख जगाया।। टेक.।।
दीक्षा लेती न थीं क्वांरी कन्या यहाँ,
बीसवीं सदि में तुमने प्रथम पद लिया।
ज्ञानमति नाम तब तूने पाया, ज्ञान का तूने अलख जगाया।
।।शारद…।।१।।
कोई साहित्य रचना न की साध्वी ने,
सैकड़ों ग्रन्थ अब रच दिए मात ने।
कुन्दकुन्द का पथ दरशाया, ज्ञान का तूने अलख जगाया।
।।शारद…।।२।।
जैन भूगोल रचना नहीं थी कहीं,
मात्र प्राचीन ग्रन्थों में वह थी कही।
जम्बूद्वीप का रूपक दिखाया, ज्ञान का तूने अलख जगाया।
।।शारद…।।३।।
जिनवरों की जनमभूमि विकसित न थीं,
प्रेरणा उनके उद्धार की माँ ने दी।
ऋषभ महावीर नाम गुंजाया, ज्ञान का तूने अलख जगाया।
।।शारद…।।४।।
जैन संस्कृति की तू इक धरोहर है मां,
युग युगों तक जिए तू कहें ‘‘चन्दना”।
धरती चाहे सदा तेरी छाया, ज्ञान का तूने अलख जगाया।
।।शारद…।।५।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज-चलो मिल सब……………..
चलो सब मिल यात्रा कर लो, तीर्थयात्रा का फल वर लो।
चौबिस तीर्थंकर की सोलह, जन्मभूमि नम लो।। चलो.।।
ऋषभ अजित अभिनंदन सुमती अरु अनंत जिनवर।
नगरि अयोध्या में जन्मे जो तीरथ है शाश्वत।।
अयोध्या को वंदन कर लो,
ऋषभदेव की जन्मभूमि का रूप नया लख लो।। चलो.।।१।।
श्रावस्ती में संभव कौशाम्बी में पद्मप्रभू।
वाराणसि में श्री सुपार्श्व पारस प्रभु को वंदूँ।।
चन्द्रपुरि तीरथ को नम लो,
जहाँ चन्द्रप्रभु जी जन्मे वह रज सिर पर धर लो।।चलो.।।२।।
पुष्पदन्त काकन्दी शीतल भद्दिलपुर जन्मे।
श्री श्रेयांसनाथ तीर्थंकर सिंहपुरी जन्मे।।
तीर्थ चम्पापुर को नम लो,
वासुपूज्य की पंचकल्याणक भूमि इसे समझो।।चलो.।।३।।
कम्पिल जी में विमलनाथ, प्रभु धर्म रतनपुरि में।
हस्तिनापुर में शांति कुंथु अर, तीर्थंकर जन्मे।।
चलो मिथिलापुरि को नम लो
मल्लिनाथ नमिनाथ जन्मभूमि वंदन कर लो।। चलो.।।४।।
राजगृही में मुनिसुव्रत नेमी शौरीपुर में।
कुण्डलपुर में चौबिसवें महावीर प्रभू जन्मे।।
तीर्थ से भवसागर तिर लो,
जिनवर जन्मभूमि दर्शन कर जन्म सफल कर लो।। चलो.।।५।।
गणिनी ज्ञानमती जी की, प्रेरणा मिली भक्तों।
सभी जन्मभूमी जिनवर की, जल्दी विकसित हों।।
पुण्य का कोष सभी भर लो,
तीर्थ वंदना से ही ‘‘चन्दनामती’’ सिद्धि वर लो।। चलो.।।६।।