-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
-दोहा-
परमसिद्ध परमात्मा, पार्श्वनाथ भगवान।
तीर्थंकर तेईसवें, करें जगत कल्याण।।१।।
पार्श्वनाथ के नाम का, चालीसा सुखकार।
पढ़ें भव्य जो भाव से, पावें सुख भण्डार।।२।।
-चौपाई-
जय जय पार्श्वनाथ जिनवर जी, जय जय तेईसवें प्रभुवर जी।।१।।
जय जय नाथ त्रिजग के अधिपति, जय जय सिद्धशिला पर स्थित।।२।।
काशी देश बनारस नगरी, धनदरचित वह अनुपम नगरी।।३।।
नौ मंजिल का महल बनाया, वैजयंत था नाम कहाया।।४।।
अश्वसेन राजा रहते थे, राज्य बनारस में करते थे।।५।।
रानी वामादेवी न्यारी, रूपवती सुन्दर अति प्यारी।।६।।
सोलह सुपने देखे जिनने, फल सुन पति से खुश थीं मन में।।७।।
थी वैशाख कृष्ण दुतिया तिथि, गर्भकल्याणक उत्सव की तिथि।।८।।
पौष कृष्ण ग्यारस को जनमे, धन्य मात पितु सभी धन्य थे।।९।।
पन्द्रह मास रतन बरसे थे, जिन्हें प्राप्तकर सब हरषे थे।।१०।।
शैशव बाल युवावस्था में, प्रभु की दिव्य प्रभा थी सबमें।।११।।
नहीं रचाया ब्याह प्रभू ने, चले वनों में दीक्षा लेने।।१२।।
जन्मतिथ में दीक्षा धार, पौष वदी एकादशि प्यारी।।१३।।
तप कर केवलज्ञान उपाया, अहिच्छत्र तब तीर्थ बनाया।।१४।।
कृष्णा चैत्र चतुर्थी के दिन, समवसरण लक्ष्मी पाया जिन।।१५।।
दिव्यध्वनि से अलख जगाया, जन-जन का अज्ञान नशाया।।१६।।
गिरि सम्मेदशिखर पर जाकर, स्वर्णभद्र पर ध्यान लगाकर।।१७।।
श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन, मोक्षधाम पाया पारस जिन।।१८।।
पंचकल्याणक अधिपति स्वामी, पारसनाथ जिनेश्वर नामी।।१९।।
इनका बहुत प्रसिद्ध कथानक, ग्रंथ जिनागम में है वर्णित।।२०।।
कमठ ने इनको बहुत सताया, नौ भव तक भी वैर निभाया।।२१।।
जब पारस प्रभु बने तीर्थकर, संवर देव बना कमठाचर।।२२।।
किया बहुत उपसर्ग प्रभू पर, पर न चला प्रभु पर उसका बस।।२३।।
आखिर हार मान ली उसने, बैठ गया दिव्यध्वनि सुनने।।२४।।
उसका भी तब जीवन बदला, प्रवचन सुन सम्यग्दृष्टि बना।।२५।।
सुना कथानक नाग युगल का, पारस प्रभु के सम्बोधन का।।२६।।
नाग बना धरणेन्द्र भी वैâसे, नागिन पद्मावति के पद में।।२७।।
उनने निज कर्तव्य निभाया, संवरदेव को मार भगाया।।२८।।
शासन देव-देवि ये प्रभु के, कहलाते हैं सारे जग में।।२९।।
ये निश्चित सम्यग्दृष्टी हैं, ग्रंथों में महिमा वर्णित है।।३०।।
पार्श्वनाथ के तीर्थ बहुत हैं, संकटमोचन पारसप्रभु हैं।।३१।।
केतूग्रह के शान्तीकारक, कालसर्प का योग निवारक।।३२।।
चिन्तामणि पारस कहलाए, सबका बेड़ा पार लगाएं।।३३।।
शिरड़ी में इक ज्ञानतीर्थ है, कहता पारसनाथ कीर्ति है।।३४।।
इस तीरथ की महिमा न्यारी, पार्श्वनाथ का अतिशय भारी।।३५।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमति माता, इनसे जुड़ा तीर्थ का नाता।।३६।।
उनकी एक प्रेरणा पाकर, पारसनाथ प्रभू पधराकर।।३७।।
कमल जिनालय बने बताया, भक्तों ने यह तीर्थ बनाया।।३८।।
ज्ञानतीर्थ की जय जय बोलो, अंतर्मन का कल्मष धो लो।।३९।।
मन-वच-तन पावन हो जावे, पार्श्वनाथ दर्शन मिल जावे।।४०।।
-दोहा-
वीर संवत् पच्चीस सौ, उनतालिस का वर्ष।
पार्श्वनाथ की गर्भ तिथि, रचा पाठ अति हर्ष।।१।।
ज्ञानमती गणिनीप्रमुख, की शिष्या अज्ञान।
लिया चन्दनामति सुखद, पार्श्वनाथ का नाम।।२।।
चालीसा प्रभु पार्श्व का, कर लो चालिस बार।
पार्श्वनाथ के नाम से, भरो सुगुण भण्डार।।३।।