तर्ज—सज धज कर इक दिन………….
शिरडी के पारस बाबा को मिलकर मनाएँगे।
हम ज्ञानतीर्थ पर पुष्पों का उपवन महकाएँगे।।टेक.।।
पारसप्रभू चिंतामणी चिंतित फल देते हैं।
निज भक्त के सब कष्ट दुख को वे हर लेते हैं।।
उनका दर्शन-वन्दन करके कुछ पुण्य कमाएँगे।
हम ज्ञानतीर्थ पर पुष्पों का उपवन महकाएँगे।।१।।
जब मानसिक या वाचनिक कायिक व्यथा होवे।
प्रभु के चरण मन में रहें सो सब व्यथा खोवे।।
भक्ति करके हम भी इकदिन भगवन बन जाएँगे।
हम ज्ञानतीर्थ पर पुष्पों का उपवन महकाएँगे।।२।।
इस तीर्थ के कण-कण में गणिनी ज्ञानमति जी हैं।
उनके शुभाशीषों से नवनिर्मित कृती यह है।।
‘‘चन्दनामती’’ हम कालसर्प का योग हटाएँगे।
हम ज्ञानतीर्थ पर पुष्पों का उपवन महकाएँगे।।३।।