तर्ज—ढपली वाले! ढपली बजा…….
शिरडी वाले-पारस प्रभू, तेरे दर्शन से भक्तों के, हो…
संकट शांत हों…..।।टेक.।।
मानव का जीवन, संघर्षमय है, उनसे न विचलित होना।
आ जावें संकट, तो भी सदा ही, प्रभु नाम मन में जपना-हो हो हो
शिरडी में जाकर, प्रभु पार्श्व से तुम, सब दुख-सुखों को कहना।।
शिरडी.।।१।।
सुनते हैं पारस, पत्थर को छूकर, लोहा भी सोना बनता।
लेकिन प्रभू पारस पद को छूकर, मानव है पारस बनता-हो हो हो
बनना है पारस तो, पारस प्रभू की, भक्ती में तन्मय होना।।
शिरडी.।।२।।
सच्चे हृदय से सुमिरन करो तो, मनचाहा फल तुम पाओ।
शिरडी में जा करके ‘‘चन्दनामति’’, पारस प्रभू को मनाओ-हो हो हो
पारस हों मन में, पारस वचन में, भक्तों! यही ध्यान रखना।।
शिरडी.।।३।।