तर्ज-सपने में………..
पारस प्रभु का मस्तकाभिषेक निराला है।
क्या सुन्दर लगती तन पर दूध की धारा है।।टेक.।।
है प्रतिमा अतिशयकारी, सांवरिया छवि मनहारी।
पद्मासन मूरति प्यारी, है सबके लिए सुखकारी।।
तीर्थंकर पारसनाथ का नाम निराला है।
क्या सुन्दर लगती तन पर दूध की धारा है।।१।।
गणिनी श्री ज्ञानमती की, प्रेरणा मिली तीरथ को।
शिरडी में ज्ञानतीर्थ की, पावन हो गई धरा वो।।
गूंजे तीरथ पर पार्श्वनाथ जयकारा है।
क्या सुन्दर लगती तन पर दूध की धारा है।।२।।
पहली ही बार यहाँ पर, हुआ पंचकल्याण महोत्सव।
नगरी में धूम मची है, दुलहन की तरह सजी है।।
‘‘चन्दनामती’’ यह तीर्थ बन गया प्यारा है।
क्या सुन्दर लगती तन पर दूध की धारा है।।३।।