तर्ज-आने से जिनके आए बहार………..
हाथों में लेकर आरती का थाल, मन में है प्रभु की भक्ति ापार।
हम सब आए हैं आरति करने।।टेक.।।
अश्वसेन राजा, वामा माता के आंगन में।
वाराणसि नगरि में, पारसनाथ जिनवर जनमे।।
दीक्षा ली, बने बालयती,
हम सब आए हैं आरति करने।।१।।
पार्श्वनाथ जिनवर, समता धैर्य के हैं प्रदाता।
संकटों का निवारण, होता जो प्रभू द्वार आता।।
सुख मिलता, दुख टलता,
हम सब आए हैं आरति करने।।२।।
ज्ञानतीर्थ शिरडी, के पारस जिनेश्वर हैं प्यारे।
‘‘चन्दनामति’’ इनकी, आरति करके आरत निवारें।।
जय पारस, जय जय पारस,
हम सब आए हैं आरति करने।।३।।