—रोला छंद—
छह महिने ही पूर्व, धनद रतन बरसाये।
गर्भ बसे प्रभु आप, सब जन मन हर्षाये।।
इंद्र सुरासुर संघ, उत्सव करते भारी।
हम वंदें धर प्रीति, जिनवर पद सुखकारी।।१।।
पूरब पुष्करद्वीप, सीता नदि उत्तर में।
देवनंदि पितु मात-सती रेणुका गृह में।।
चंद्रबाहु जिन जन्म, त्रिभुवन मंगलकारी।
इंद्र किया अभिषेक, मैं वंदूँ सुखकारी।।२।।
पद्म चिन्ह धर नाथ, विरतमना सब जग से।
लौकान्तिक सुर आय, बहु स्तवन उचरते।।
इंद्र सपरिकर आय, तपकल्याणक करते।
हम वंदें नत माथ, सब दुख संकट हरते।।३।।
केवलज्ञान विकास, प्राप्त किया प्रभु तप से।
समवसरण में नाथ, राजें अधर कमल पे।।
इंद्र करें बहु भक्ति, बारह सभा बनी है।
सभी भव्य जन आय, सुनते दिव्यध्वनी हैं।।४।।
पायेंगे निर्वाण, कर्म अघाति नशा के।
आत्यन्तिक सुख शांति, काल अनंतानंते।।
विहरमाण हैं आज, फिर भी शिव पायेंगे।
नमत मोक्षकल्याण, हम भी शिव जायेंगे।।५।।