(इसमें १४ अर्घ्य व ९६ मंत्र मराठी अनंत व्रत पूजा से लिये हैं)
अथ स्थापना-नरेन्द्र छंद
श्री अनंत जिनराज आपने, भव का अंत किया है।
दर्शन ज्ञान सौख्य वीरजगुण, को आनन्त्य किया है।।
अंतक का भी अंत करें हम, इसीलिए मुनि ध्याते।
आह्वानन कर पूजा करके, प्रभु तुम गुण हम गाते।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अथ अष्टक-अडिल्ल छंद
सरयूनदि को नीर कलश भर लाइये।
जिनवर पद पंकज में धार कराइये।।
भव अंतक श्री जिन अनंत पद को जजूँ।
रोग शोक भय नाश सहज निज सुख भजूँ।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयज चंदन गंध सुगंधित लाइये।
तीर्थंकर पद पंकज अग्र चढ़ाइये।।
भव अंतक श्री जिन अनंत पद को जजूँ।
रोग शोक भय नाश सहज निज सुख भजूँ।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
उज्ज्वल अक्षत मुक्ता फल सम लाइये।
जिनवर आगे पुंज चढ़ा सुख पाइये।।
भव अंतक श्री जिन अनंत पद को जजूँ।
रोग शोक भय नाश सहज निज सुख भजूँ।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
वकुल कमल बेला चंपक सुमनादि ले।
मदनजयी जिनपाद पद्म पूजूँ भले।।
भव अंतक श्री जिन अनंत पद को जजूँ।
रोग शोक भय नाश सहज निज सुख भजूँ।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
कलाकंद मोदक घृतमालपुआ लिये।
क्षुधाव्याधि क्षय हेतू आज चढ़ा दिये।।
भव अंतक श्री जिन अनंत पद को जजूँ।
रोग शोक भय नाश सहज निज सुख भजूँ।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृतदीपक की ज्योति जले जगमग करे।
तुम पूजा तत्काल मोहतम क्षय करे।।
भव अंतक श्री जिन अनंत पद को जजूँ।
रोग शोक भय नाश सहज निज सुख भजूँ।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
अगर तगर सित चंदन आदि मिलाय के।
अग्नि पात्र में खेऊँ भाव बढ़ाय के।।
भव अंतक श्री जिन अनंत पद को जजूँ।
रोग शोक भय नाश सहज निज सुख भजूँ।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अनंनास अंगूर आम आदिक लिये।
महामोक्षफल हेतु तुम्हें अर्पण किये।।
भव अंतक श्री जिन अनंत पद को जजूँ।
रोग शोक भय नाश सहज निज सुख भजूँ।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल गंधादिक अर्घ्य, लिया भर थाल में।
रत्नत्रय निधि हेतु जजूँ त्रयकाल में।।
भव अंतक श्री जिन अनंत पद को जजूँ।
रोग शोक भय नाश सहज निज सुख भजूँ।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
श्री अनंत जिनराज के, चरणों धार करंत।
चउसंघ में भी शांति हो, समकित निधि विलसंत।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
बेला कमल गुलाब ले, पुष्पांजली करंत।
मिले आत्म सुख संपदा, कटें जगत दु:ख फंद।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
-सखी छंद-
सिंहसेन अयोध्यापति थे, जयश्यामा गर्भ बसे थे।
कार्तिक वदि एकम तिथि में, प्रभु गर्भकल्याणक प्रणमें।।१।।
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णाप्रतिपदायां श्रीअनंतनाथगर्भकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तिथि ज्येष्ठ वदी बारस में, सुर मुकुट हिले जिन जन्में।
अठ एक हजार कलश से, जिन न्हवन किया सुर हरसें।।२।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाद्वादश्यां श्रीअनंतनाथजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तिथि ज्येष्ठ वदी बारस थी, उल्का गिरते प्रभु विरती।
तप लिया सहेतुक वन में, पूजत मिल जावे तप मे।।३।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाद्वादश्यां श्रीअनंतनाथदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वदि चैत अमावस्या के, पीपल तरु तल जिन तिष्ठे।
केवल रवि उगा प्रभू के, मैं जजूँ त्रिजग भी चमके।।४।।
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा अमावस्यायां श्रीअनंतनाथकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
चैत आमावसी यम नाशा, शिवनारि वरी निज भासा।
सम्मेद शिखर को जजते, निर्वाण जजत सुख प्रगटे।।५।।
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा अमावस्यायां श्रीअनंतनाथमोक्षकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
सुरनरपतिपूज्यान् बोधसंबोधितार्थान्।
त्रिगुणित – वसुसंख्यान्१ धर्मचक्राधिनाथान्।।
२वसुपरिमितभास्वत्प्रातिहार्यै: समेतान्।
यजत भजत भव्या: स्वर्घ्यदानेन भक्त्या।।
इति जिनवृषभादिचतुर्दश। परमकेवलबोधविजृंभिता:।
वरविनेयजनौघनुतास्तु ते। शिवसुखाय भवंतु मयार्चिता:।।
ॐ ह्रीं वृषभादि अनंतनाथपर्यंतचतुर्दशतीर्थंकरेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
नव सुलक्षशराहतयोजनै:। परिमितं वरलोकसुमूर्द्धजं।
परमश्रेष्ठसुसिद्धगुणा: स्थिता:। वरमहार्घ्यमहं वितरामि तान्।
इति भवोदधिपापपराश्रिता:। परमसिद्ध गणा विविधासना:।
अपरिमाणसुखालयतां गता:। मम दिशंतु शिवं सुखमर्चिता:।
ॐ ह्रीं चतुर्दशगुणपूरितसिद्धेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
वरविदेहनरोत्तमजन्मनि। प्रबलशुद्धसुक्षायिकभावत:।
नरभवं प्रतिबध्य भवंति ते। कुलकरा जगदुद्धरणे क्षमा:।
मुनिवराय सुभोजनदानत:। सकलजंतुदयाप्रविधानत:।
श्रुतिविभावितनिर्मलमानसान्ा्। सुखमवाप्य शिवं प्रतियांति ते।
ॐ ह्रीं चतुर्दशकुलकरेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
स्वतिशया: सुरनाथकृता: परा:। परमपुण्यप्रकर्षभवाश्च ते।
विमलतीर्थकरेषु लसंति तान्, जिनपतीन् प्रणमामि तदाप्तये।
प्रथमजन्मनि षोडश भावनां। परिविभाव्य सुक्षायिकदृष्टिन:।
परमवाप्य कुलं जिनसंभव। स्वतिशयान्परिप्राप्य विभांति ते।
ॐ ह्रीं चतुर्दशातिशयेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
भुवि चतुर्दश पूर्वतपोमहान्। मुनिमनोवनयोधकरान् परान्।
विपुलमुक्तिविमार्गप्रकाशकान्। जिनमुखांबुजजान् प्रयजेऽत्र तान्।
समयसारपयोनिधिपारगो। वरविनेयजनोत्करतारक:।
विगतसंख्यसुरार्चितपंकजो। जिनवरो जयतीह शिवप्रद:।
ॐ ह्रीं चतुर्दशपूर्वेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
देवेन्द्रवृंदेन समर्चिता ये। ते देवदेवा जितमोहमल्ला:।
स्वर्मुक्तिपंक्तिगुणस्थानकानां। भेदप्रभेदान् प्रवदंति संत:।
श्री शांतिनाथोऽत्र शिवं क्रियात् व:।
सभास्थितान् भव्यजनान् चिरं य:।
अर्थेन सम्यक् प्रकटीप्रकुर्वन्।
दिव्येन ध्वनिना गुणस्थानकानां।
ॐ ह्रीं चतुर्दशगुणस्थानोपदेशकेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
गतिचतुर्विधजन्मपराङ्मुखान्। विभवपंचमसद्गतिजान् वरान्।
जननमृत्युजराभयहानये। जिनपतीन् प्रयजेऽर्घ्यभरेण तान्।
इति जिनागमवर्णितमार्गणा:। परम-देवमुखाब्जविनिर्गता:।
गणधरैर्वरविस्तरिताश्च ता:। शिवसुखाय भवंतु भवान् नृणां।
ॐ ह्रीं चतुर्दशमार्गणोपदेशकेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
भुवि चतुर्दश जीवसमासका:, समभिवाप्य समं भुवने स्थिता:।
विमलबोधविलोचनसाधुभि:, समधिपश्य हितान् समताधृतान्।
श्रीमज्जिनानां चरणाब्जयुग्मं। संप्रार्चयंति प्रणमंति ये ते।
राज्यं च भुक्त्वा नरनाकलोके। कर्माणि हत्वा शिवमाप्नुवंति।
ॐ ह्रीं चतुर्दशजीवसमासरक्षकमुनिभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
भुवि चतुर्दशधा परमापगा:। परमसिद्धसुक्षेत्र-प्रतिष्ठिता:।
वसुविधोत्तमवस्तुमहार्घ्यवैâ:। परियजे शिवसंततिशर्मणे।
गंगादिसंज्ञा: सरितश्चतुर्दश। कुलाद्रिनिर्गत्य समुद्रमागता:।
मुनीन्द्रपादाब्जकरै: पवित्रिता:। अनादिसत्तीर्थजलं वहंति ता:।
ॐ ह्रीं गंगादिचतुर्दशनदीस्थितजिनबिम्बेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
त्रिभुवनमिदमुच्चैर्जैनचैत्याभिराम ।
विपुलतरमधस्तात् यावदूर्ध्वं च भास्वत्।
जलधिमपतिरज्जूनां य: सो भवेच्चक्रवर्ती।
यजति जिनपतिं य: सो भवेच्चक्रवर्ती।
श्री शीतलेशैस्त्रसनालिमानं। प्रोक्तं तदूर्वं नवमं च रज्जूं।
रज्वैकमानं समविस्तरेण। जीवास्त्रसास्तत्र वसंति सर्वे।
ॐ ह्रीं चतुर्दशरज्जुप्रमाणलोकस्थितजिनबिम्बेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
१मुनिहतयुगरत्नाधीश्वरान् नम्रपादान्।
विजितनिविडघातीन् देवदेवेन्द्रवंद्यान्।।
सलिलमलयजाद्यैर्मोक्षसंप्राप्तिहेतो:।
विमलतरमहार्घ्यै: पूजयाम्यर्हदीशान्।।
सेनापतिस्थपति हर्म्यपति द्विपार्श्व-।
स्त्री-चक्र-चर्म-मणि-काकिणिका-पुरोधा:।
छत्रासिदंडपतय: प्रणमंति यस्य।
श्रेयं जिनं तमहमत्र विधौ नमामि।।
ॐ ह्रीं चतुर्दशरत्नाधिपतिचक्रवर्ति वंदित जिनबिम्बेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
कोटीशतं द्वादशं चैव कोट्यो। लक्षाण्यशीतिस्त्र्यधिकानि चैव।
पंचाशदष्टौ च सहस्रसंख्यं। पंचाधिकं ग्रंथसमूहमर्च्चे।
अ इ उ ऋृ ऌ समाना: शब्दशास्त्रे निबद्धा:।
अपरगुरुभिरर्घ्यास्ते दश स्यु: सवर्णा:।
परमजलधि २दीर्घास्ते स्वरा सप्त ३द्विघ्ना:।
जगति सकलशास्त्रे सूत्रितास्तान् भजामि।
ॐ ह्रीं चतुर्दशस्वरप्रकाशकवृषभादिजिनेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
भुवि चतुर्दशधा तिथिदेवता:। व्रततपोमुनिदानपवित्रिता:।
जिनवरोद्भवमंगलभाविता:। प्रवियजे जिनयज्ञशताप्तये।
विमल तीर्थकरं वरपुण्यदं। यजत भव्यजना शिवसौख्यदं।
सकलकर्मविदाहनदक्षकं। अखिलजीवदयाप्रतिपालकं।।
ॐ ह्रीं धर्मकार्यप्रसिद्ध-चतुर्दशतिथिप्रतिपादकेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
श्रीमन्मुनीद्रा बलिनस्तपोभिराभ्यंतरीकोपधिभिर्विमुक्ता:।
बाह्यौपधौ मानसवृत्यभावास्तेषां पदाब्जान् सततं स्तुवेऽहम्।
समस्तोपधीभिर्विमुक्ता मुनीन्द्रा। यथाख्यात नाम्ना गुणस्थानकस्था:।
सुनिर्ग्रंथता-सत्पद-स्थाव्हयास्ते। मया संस्तुता: शर्मदा: संभवंतु।
ॐ ह्रीं चतुर्दशमलत्यक्ताहार ग्राहक मुनिभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
पुन: क्रम से १९६ गुणों का उच्चारण करते हुए पुष्प, लवंग या पीले चावल चढ़ावें।
ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ तीर्थंकराय नम:।।१।।
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ तीर्थंकराय नम:।।२।।
ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ तीर्थंकराय नम:।।३।।
ॐ ह्रीं श्री अभिनंदननाथ तीर्थंकराय नम:।।४।।
ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ तीर्थंकराय नम:।।५।।
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ तीर्थंकराय नम:।।६।।
ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथ तीर्थंकराय नम:।।७।।
ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ तीर्थंकराय नम:।।८।।
ॐ ह्रीं श्री पुष्पदंत तीर्थंकराय नम:।।९।।
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथ तीर्थंकराय नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ तीर्थंकराय नम:।।११।।
ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य तीर्थंकराय नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं श्री विमलनाथ तीर्थंकराय नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ तीर्थंकराय नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं तप: सिद्धेभ्यो नम:।।१।।
ॐ ह्रीं नयसिद्धेभ्यो नम:।।२।।
ॐ ह्रीं संयमसिद्धेभ्यो नम:।।३।।
ॐ ह्रीं चरित्रसिद्धेभ्यो नम:।।४।।
ॐ ह्रीं श्रुताभ्याससिद्धेभ्यो नम:।।५।।
ॐ ह्रीं निश्चयात्मक भावसिद्धेभ्यो नम:।।६।।
ॐ ह्रीं ज्ञानगुणसंपन्न सिद्धेभ्यो नम:।।७।।
ॐ ह्रीं सम्यक्त्वगुणसम्पन्न सिद्धेभ्यो नम:।।८।।
ॐ ह्रीं दर्शनगुणोपेत सिद्धेभ्यो नम:।।९।।
ॐ ह्रीं अनंतवीर्यसम्पन्न सिद्धेभ्यो नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं सूक्ष्मगुणोपेत सिद्धेभ्यो नम:।।११।।
ॐ ह्रीं अवगाहनगुणसमेत सिद्धेभ्यो नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं अगुरुलघुगुणगरिष्ठ सिद्धेभ्यो नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं अव्याबाधगुणसमृद्ध सिद्धेभ्यो नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं श्री प्रतिश्रुति मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।१।।
ॐ ह्रीं श्री सन्मति मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।२।।
ॐ ह्रीं श्री क्षेमंकर मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।३।।
ॐ ह्रीं श्री क्षेमंधर मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।४।।
ॐ ह्रीं श्री शीमंकर मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।५।।
ॐ ह्रीं श्री सीमंधर मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।६।।
ॐ ह्रीं श्री विमलवाहन मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।७।।
ॐ ह्रीं श्री चक्षुष्मान मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।८।।
ॐ ह्रीं श्री यशस्वी मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।९।।
ॐ ह्रीं श्री अभिचंद्र मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री चंद्राभ मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।११।।
ॐ ह्रीं श्री मरुद्देव मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं श्री प्रसन्नजित् मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं श्री नाभिराज मनुसेवितजिनेभ्यो नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं मागधी भाषातिशयाय नम:।।१।।
ॐ ह्रीं सर्वजीव मैत्रीभावातिशयाय नम:।।२।।
ॐ ह्रीं सर्वर्तु फलपुष्प प्रकाशातिशयाय नम:।।३।।
ॐ ह्रीं आदर्शतलसम मही मनोज्ञातिशयाय नम:।।४।।
ॐ ह्रीं वायुना शोधिता मही मयातिशयाय नम:।।५।।
ॐ ह्रीं विहरणे मंद-अनिलो वहति महातिशाय नम:।।६।।
ॐ ह्रीं विहरणे सर्वजीवानामानंदो भवतीति महातिशाय नम:।।७।।
ॐ ह्रीं मेघकुमारकृतगंधांबुवृष्टि मयातिशयाय नम:।।८।।
ॐ ह्रीं पादन्यासे देवा: पद्मानि कल्पते अतिशयाय नम:।।९।।
ॐ ह्रीं फलभारनम्रशालिशोभिता मही जायते अतिशयाय नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं जिनोपरिमगगनं निर्मलं भवतीति महातिशयाय नम:।।११।।
ॐ ह्रीं दिवि देवा परस्परमाव्हाननं कुर्वंति महातिशयाय नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं सर्वाण्हमस्तकोपरि धर्मचक्रं स्फुरतीति महातिशयाय नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं समीपे अष्टमंगल द्रव्यमहातिशयाय नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं श्री उत्पाद पूर्वाय नम:।।१।।
ॐ ह्रीं श्री अग्रायणीय पूर्वाय नम:।।२।।
ॐ ह्रीं श्री वीर्यानुवाद पूर्वाय नम:।।३।।
ॐ ह्रीं श्री अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्वाय नम:।।४।।
ॐ ह्रीं श्री ज्ञानप्रवाद पूर्वाय नम:।।५।।
ॐ ह्रीं श्री सत्यप्रवाद पूर्वाय नम:।।६।।
ॐ ह्रीं श्री आत्मप्रवाद पूर्वाय नम:।।७।।
ॐ ह्रीं श्री कर्मप्रवाद पूर्वाय नम:।।८।।
ॐ ह्रीं श्री प्रत्याख्यान पूर्वाय नम:।।९।।
ॐ ह्रीं श्री विद्यानुवाद पूर्वाय नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री कल्याणप्रवाद पूर्वाय नम:।।११।।
ॐ ह्रीं श्री प्राणानुवाद पूर्वाय नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं श्री क्रियाविशाल प्रवाद पूर्वाय नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं श्री त्रिलोकबिंदुसार प्रवाद पूर्वाय नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं मिथ्यात्व गुणस्थान ज्ञापकेभ्यो नम:।।१।।
ॐ ह्रीं सासादन गुणस्थान ज्ञापकेभ्यो नम:।।२।।
ॐ ह्रीं मिश्र गुणस्थान ज्ञापकेभ्यो नम:।।३।।
ॐ ह्रीं सम्यक्त्व गुणस्थान ज्ञापकेभ्यो नम:।।४।।
ॐ ह्रीं देशविरत गुणस्थान ज्ञापकेभ्यो नम:।।५।।
ॐ ह्रीं प्रमत्तगुणस्थानवर्ति मुनिभ्यो नम:।।६।।
ॐ ह्रीं अप्रमत्तगुणस्थानवर्ति योगीद्रेंभ्यो नम:।।७।।
ॐ ह्रीं अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ति मुनिभ्यो नम:।।८।।
ॐ ह्रीं अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ति योगिराजेभ्यो नम:।।९।।
ॐ ह्रीं सूक्ष्मलोभ गुणस्थानवर्ति मुनीन्द्रेभ्यो नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं उपशांतकषाय गुणस्थानवर्ति योगिनरेंद्रेभ्यो नम:।।११।।
ॐ ह्रीं क्षीणमोह गुणस्थानवर्ति मुनिसंघेभ्यो नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं सयोग गुणस्थानवर्ति केवलिभ्यो नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं अयोग गुणस्थानवर्ति केवलिभ्यो नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं गतिमार्गणा ज्ञापकेभ्यो नम:।।१।।
ॐ ह्रीं इंद्रियमार्गणा प्रकाशकेभ्यो नम:।।२।।
ॐ ह्रीं कायमार्गणा प्ररूपकेभ्यो नम:।।३।।
ॐ ह्रीं योगमार्गणा देशकेभ्यो नम:।।४।।
ॐ ह्रीं वेदमार्गणा मृग्यकेभ्यो नम:।।५।।
ॐ ह्रीं कषायमार्गणा ज्ञापकेभ्यो नम:।।६।।
ॐ ह्रीं ज्ञानमार्गणा प्रकाशकेभ्यो नम:।।७।।
ॐ ह्रीं संयममार्गणा पालकेभ्यो नम:।।८।।
ॐ ह्रीं दर्शनमार्गणा वत्तृâभ्यो नम:।।९।।
ॐ ह्रीं लेश्यामार्गणा ज्ञापकेभ्यो नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं भव्यमार्गणा ज्ञापकेभ्यो नम:।।११।।
ॐ ह्रीं सम्यक्त्वमार्गणा ज्ञापकेभ्यो नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं संज्ञिमार्गणा प्रतिबोधकेभ्यो नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं आहारमार्गणा ज्ञापकेभ्यो नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं सूक्ष्मैकेन्द्रिय पर्याप्त जीवसंख्या ज्ञापकेभ्यो नम:।।१।।
ॐ ह्रीं सूक्ष्मैकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवसंख्या ज्ञापकेभ्यो नम:।।२।।
ॐ ह्रीं बादरैकेन्द्रिय पर्याप्त जीवरक्षकेभ्यो नम:।।३।।
ॐ ह्रीं बादरैकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवरक्षकेभ्यो नम:।।४।।
ॐ ह्रीं द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीवरक्षकेभ्यो नम:।।५।।
ॐ ह्रीं द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवदया प्रतिपालकेभ्यो नम:।।६।।
ॐ ह्रीं त्रीन्द्रिय पर्याप्त जीवदयापालकेभ्यो नम:।।७।।
ॐ ह्रीं त्रीन्द्रिय अपर्याप्त जीवदयापालकेभ्यो नम:।।८।।
ॐ ह्रीं चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवरक्षकेभ्यो नम:।।९।।
ॐ ह्रीं चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त जीव प्रतिपालकेभ्यो नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवरक्षकेभ्यो नम:।।११।।
ॐ ह्रीं असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवरक्षकेभ्यो नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवदया धारकेभ्यो नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीव प्रतिपालकेभ्यो नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता गंगा महानदी सत्तीर्थाय नम:।।१।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता सिंधु महानदी सत्तीर्थाय नम:।।२।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता रोहित् महानदी सत्तीर्थाय नम:।।३।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता रोहितास्या महानदी सत्तीर्थाय नम:।।४।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता हरित् महानदी सत्तीर्थाय नम:।।५।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता हरिकांता महानदी सत्तीर्थाय नम:।।६।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता सीता महानदी सत्तीर्थाय नम:।।७।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता सीतोदा महानदी सत्तीर्थाय नम:।।८।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता नारी महानदी सत्तीर्थाय्ा नम:।।९।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता नरकांता महानदी सत्तीर्थाय नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता सुवर्णकूला महानदी सत्तीर्थाय नम:।।११।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता रूप्यकूला महानदी सत्तीर्थाय नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता रक्ता महानदी सत्तीर्थाय नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं जिनबिंबसमन्विता रक्तोदा महानदी सत्तीर्थाय नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं निगोदस्थान स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।१।।
ॐ ह्रीं सप्तमनरक स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।२।।
ॐ ह्रीं षष्ठ नरक स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।३।।
ॐ ह्रीं पंचम नरक स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।४।।
ॐ ह्रीं चतुर्थ नरक स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।५।।
ॐ ह्रीं तृतीय नरक स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।६।।
ॐ ह्रीं नरकद्वययुत भावनालय स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।७।।
ॐ ह्रीं ज्योतिष्कलोक स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।८।।
ॐ ह्रीं ब्रह्मलोक पद स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।९।।
ॐ ह्रीं स्वर्ग स्वरूप कथकेभ्यो नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं तदुपरि स्वर्गलोक स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।११।।
ॐ ह्रीं षड्युग्म स्वर्ग स्वरूप प्रकाशकेभ्यो नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं ग्रैवेयकादि मुक्तिपर्यंत स्वरूप ज्ञापकेभ्यो नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं सिद्धावगाहकेभ्यो नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं सेनापति रत्नस्वामिसेवित जिनेभ्यो नम:।।१।।
ॐ ह्रीं स्थपति रत्नस्वामिसेवित जिनेभ्यो नम:।।२।।
ॐ ह्रीं गृहपति रत्नस्वामिसेवित जिनेभ्यो नम:।।३।।
ॐ ह्रीं गज रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।४।।
ॐ ह्रीं हय रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।५।।
ॐ ह्रीं नारी रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।६।।
ॐ ह्रीं पुरोहित रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।७।।
ॐ ह्रीं चर्म रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।८।।
ॐ ह्रीं सुदर्शन रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।९।।
ॐ ह्रीं मणि रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं काकिणी रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।११।।
ॐ ह्रीं छत्र रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं खड्ग रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं दंड रत्नपतिसेवित जिनेभ्यो नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं अकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।१।।
ॐ ह्रीं आकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।२।।
ॐ ह्रीं लघु इकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।३।।
ॐ ह्रीं गुरु ईकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।४।।
ॐ ह्रीं लघु उकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।५।।
ॐ ह्रीं दीर्घ ऊकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।६।।
ॐ ह्रीं लघु ऋकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।७।।
ॐ ह्रीं गुरु ऋृकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।८।।
ॐ ह्रीं लघु ऌकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।९।।
ॐ ह्रीं दीर्घ ल¸कार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं एकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।११।।
ॐ ह्रीं ऐकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं ओकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं औकार स्वरवादिने वृषभाय नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं प्रतिपदा स्वरूप निरूपक अष्टादश दोषरहिताय जिनाय नम:।।१।।
ॐ ह्रीं द्वितीया तिथिमाश्रित्य सागारानगार धर्मनिरूपकाय नम:।।२।।
ॐ ह्रीं तृतीया तिथिमाश्रित्य दर्शनादिरत्नत्रयाय नम:।।३।।
ॐ ह्रीं चतुर्थी तिथिमाश्रित्य प्रथमानुयोगादि विद्भ्यो नम:।।४।।
ॐ ह्रीं पंचमी तिथिमुद्दिश्य पंचपरमेष्ठिभ्यो नम:।।५।।
ॐ ह्रीं षष्ठी तिथिमाश्रित्य सर्वज्ञोदितषड्द्रव्यनिरूपकेभ्यो नम:।।६।।
ॐ ह्रीं सप्तमी तिथिमुद्दिश्य सामायिकादि संयमधारकेभ्यो नम:।।७।।
ॐ ह्रीं अष्टमी तिथिमाश्रित्य सिद्धाष्टगुणेभ्यो नम:।।८।।
ॐ ह्रीं नवमी तिथिमाश्रित्य सर्वज्ञोक्त नवनयनिरूपकेभ्यो नम:।।९।।
ॐ ह्रीं दशमी तिथिमाश्रित्य दशलाक्षणिक धर्मेभ्यो नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं एकादशी तिथिमाश्रित्य एकादशांगनिरूपकेभ्यो नम:।।११।।
ॐ ह्रीं द्वादशी तिथिमुद्दिश्य द्वादशविध तपोधारकेभ्यो नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशी तिथिमाश्रित्य त्रयोदशप्रकार चारित्रेभ्यो नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं चतुर्दशी तिथिमाश्रित्य अनंत तीर्थंकराय नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं पूय मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।१।।
ॐ ह्रीं रुधिर मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।२।।
ॐ ह्रीं पल मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।३।।
ॐ ह्रीं अस्थि मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।४।।
ॐ ह्रीं चर्म मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।५।।
ॐ ह्रीं नख मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।६।।
ॐ ह्रीं कच मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।७।।
ॐ ह्रीं मृत विकलत्रिक मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।८।।
ॐ ह्रीं सूरणादि कंद त्यक्त पिंडविशुद्धये नम:।।९।।
ॐ ह्रीं मूलमलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं यव गोधूमादि बीज मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।११।।
ॐ ह्रीं बदर्यांदि फल मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं तुषकण मलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं कुंडमलरहित पिंडविशुद्धये नम:।।१४।।
-जाप्य मंत्र-
(१) ॐ ह्रीं अर्हं हं स अनंतकेवलिने नम:।
(२) ॐ नमोऽर्हते भगवते अणंताणंतसिज्झधम्मे भगवदो महाविज्जा महाविज्जा अणंताणंतकेवलिए अणंतकेवलणाणे अणंतकेवलदंसणे अणुपुज्जवासणे अणंते अणंतागमकेवली स्वाहा।
-बसंततिलका छंद-
देवाधिदेव तुम लोक शिखामणी हो।
त्रैलोक्य भव्यजन कंज विभामणी हो।।
सौ इन्द्र आप पद पंकज में नमे हैं।
साधू समूह गुण वर्णन में रमे हैं।।१।।
जो भक्त नित्य तुम पूजन को रचावें।
आनंद कंद गुणवृंद सदैव ध्यावें।।
वे शीघ्र दर्शन विशुद्धि निधान पावें।
पच्चीस दोष मल वर्जित स्वात्म ध्यावें।।२।।
नि:शंकितादि गुण आठ मिले उन्हीं को।
जो स्वप्न में भि हैं संस्मरते तुम्हीं को।।
शंका कभी नहिं करें जिनवाक्य में वो।
कांक्षें न ऐहिक सुखादिक को कभी वो।।३।।
ग्लानी मुनी तनु मलीन विषे नहीं है।
नाना चमत्कृति विलोक न मूढ़ता है।।
सम्यक्चरित्र व्रत से डिगते जनों को।
सुस्थिर करें पुनरपी उसमें उन्हीं को।।४।।
अज्ञान आदि वश दोष हुए किसी के।
अच्छी तरह ढक रहें न कहें किसी से।।
वात्सल्य भाव रखते जिनधर्मियों में।
सद्धर्म द्योतित करें रुचि से सभी में।।५।।
वे द्वादशांग श्रुत सम्यग्ज्ञान पावें।
चारित्रपूर्ण धर मनपर्यय उपावें।।
वे भक्त अंत बस केवलज्ञान पावें।
मुक्त्यंगना सह रमें शिवलोक जावें।।६।।
गणधर जयादिक पचास समोसृती में।
छ्यासठ हजार मुनि संयमलीन भी थे।।
थी सर्वश्री प्रमुख संयतिका वहाँ पे।
जो एक लाख अरु आठ हजार प्रमिते।।७।।
दो लाख श्रावक चतुर्लख श्राविकाएँ।
संख्यात तिर्यक् सुरादि असंख्य गाएँ।।
उत्तुंग देह पच्चास धनू बताया।
है तीस लाख वर्षायु मुनीश गाया।।८।।
‘‘सेही’’ सुचिन्ह तनु स्वर्णिम कांति धारें।
वंदूँ अनंत जिन को बहु भक्ति धारें।।
पूजूँ नमूँ सतत ध्यान धरूँ तुम्हारा।
संपूर्ण दु:ख हरिये भगवन्! हमारा।।९।।
हे नाथ! कीर्ति सुन के तुम पास आया।
पूरो मनोरथ सभी जो साथ लाया।।
सम्यक्त्व क्षायिक करो सुचरित्र पूरो।
वैâवल्य ‘ज्ञानमति’ दे, यम पाश चूरो।।१०।।
-दोहा-
तुम पद आश्रय जो लिया, सो पहुँचे शिवधाम।
इसीलिए तुम चरण में, करूँ अनंत प्रणाम।।११।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-सोरठा-
श्री अनंत भगवंत, नमूँ-नमूँ तुम पदकमल।
मिले भवोदधि अंत, क्रम से निजसुख संपदा।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:।।