-आर्यिका चंदनामती
तर्ज—तन डोले……
ॐकार बोलो, फिर आँखें खोलो, सब कार्य सिद्ध हो जाएँगे,
नर जन्म सफल हो जाएगा।। टेक.।।
प्रात:काल उषा बेला में बोलो मंगल वाणी।
हर घर में खुशियाँ छाएँगी, होगी नई दिवाली।। हे भाई……
प्रभु नाम बोलो, निजधाम खोलो, सब स्वार्थ सिद्ध हो जाएँगे।
नर जन्म सफल हो जाएगा।। ॐकार……।।१।।
परमब्रह्म परमेश्वर की शक्ती यह मंत्र बताता।
णमोकार के उच्चारण से अन्तर्मन जग जाता।। हे भाई……
नौ बार बोलो, सौ बार बोलो, सब स्वार्थ सिद्ध हो जाएँगे,
नर जनम सफल हो जाएगा।। ॐकार……।।२।।
ॐ शब्द का ध्यान ‘चंदना’ मन को स्वस्थ बनाता।
इसके ध्यान से मानव इक दिन परमेष्ठी पद पाता।। हे भाई……
ॐकार बोलो, शिवद्वार खोलो, सब स्वार्थ सिद्ध हो जाएँगे।
नर जन्म सफल हो जाएगा।। ॐकार……।।३।।
-आर्यिका चंदनामती
तर्ज—मन मंदिर में……
आतम में ध्यान लगाना है, परमातम मिलेगा।
अपने प्रभू को पाना है, शुद्धातम मिलेगा।। टेक.।।
मन में जो माया व ममता भरी है।
उससे सदा बेचैनी रही है।
चैन की बंसी बजाना है, परमातम मिलेगा।
अपने प्रभू को……।।१।।
वचनों में कटुता कषाय भरी है।
अच्छे वचन वह कहती नहीं है।।
वाणी को सुन्दर बनाना है, परमातम मिलेगा।
अपने प्रभू को……।।२।।
काया है नश्वर आत्मा अनश्वर।
आत्मा को ध्याने से होता संवर।।
उसके ही गुण हमें गाना है, परमातम मिलेगा।
अपने प्रभू को……।।३।।
आत्मा को ध्याओ, आत्मा में आओ।
कुछ देर तल्लीन, उसमें हो जाओ।।
‘‘चन्दना” उसे ही सजाना है, परमातम मिलेगा।।
अपने प्रभू को……।।४।।
-आर्यिका चंदनामती
तर्ज-क्या खूब……..
निज ध्यान करने से, आतमनिधि मिलती है।
तन मन की मुरझाई, कलियाँ खिलती हैं,
अन्तर के कोने में इक ज्योती जलती है।।निज.।।टेक.।।
संसार भयानक वन है-हाँ वन है,
तो भी वहाँ पर इक खिला धर्म उपवन है।
हमें पाना है उसकी छाया-हाँ छाया,
बस इसीलिए यह आतम ध्यान लगाया।
सुख शांती की प्राप्ति सदा इससे ही मिलती है,
अंतर के कोने में इक ज्योती जलती है।।निज.।।१।।
मेरा मन मंदिर निर्मल-हाँ हाँ निर्मल,
इसके अंदर इक कमल की वेदी सुन्दर।
जहाँ शांत विराजे भगवन्-हाँ हाँ भगवन्,
उस भगवन का ही करना है मुझे दर्शन।।
उस दर्शन से सच्ची दृष्टी हमको मिलती है,
अंतर के कोने में इक ज्योती जलती है।।निज.।।२।।
मैं ही ब्रह्मा मैं विष्णू-हाँ विष्णू,
मैं कष्टों को सहने में बनूँ सहिष्णू।
मैं अविचल अडिग सुमेरू-हाँ हाँ मेरू,
मैं निज मन को नहिं आकुलता से घेरूँ।
यही ‘चंदनामती’ शक्ति प्रभु पद से मिलती है,
अंतर के कोने में इक ज्योती जलती है।।निज.।।३।।
-आर्यिका चंदनामती
तर्ज—कभी राम बनके……
निज ध्यान करने, गुणगान करने,
चले आना आतम में चले आना।। टेक.।।
बड़ा चंचल है मन इसको बांधो।
बड़ा नश्वर है तन इसको साधो।।
शुद्धात्म भजने, परमात्म भजने,
चले आना आतम में चले आना।।१।।
कभी ॐकार में मन रमाओ।
कभी मन में प्रभू को बसाओ।।
मंत्र जाप करने, मन को साफ करने,
चले आना आतम में चले आना।।२।।
मन के मंदिर में वेदी बनाओ।
उसपे आतम प्रभू को बिठाओ।।
पूजा पाठ करने, मन एकाग्र करने,
चले आना आतम में चले आना।।३।।
भावों का छत्र प्रभु पे लगाओ।
‘‘चन्दना” श्रद्धा चंवर ढुराओ।।
प्रभु को प्राप्त करने, आतम लाभ वरने,
चले आना आतम में चले आना।।४।।