एड्स —बेल का सेवन करने से लाभ होता है। बेल का सेवन किसी भी रूप में कर सकते हैं।
खून रोकना —किसी भी अंग से खून बहता हो अंग सड़ गया हो तो फिटकरी का चूर्ण बुरकने से वह ठीक हो जाता है। दुर्बलता चेचक में तेज बुखार के कारण होने वाली दुर्बलता एवं सन्निपात के दौरे में २५० मि.ग्रा. कपूर और उतनी ही हींग की गोली देने से लाभ होता है। चाकू छुरी से कटने पर यदि खून बहता हो तो थोडी सी रुई में कैरोसिन तेल या तारपीन तेल में भिगोकर रख दें ऊपर से कपड़ा बांध दें, रक्त बन्द एवं दर्द में भी आराम मिलता है।
बालतोड़ दूध को फिटकरी से फाड़कर कपड़े में रखकर बालतोड़ पर बांधें। मच्छर भगाने के लिए लौंग का तेल पाटे, चटाई या बिस्तर पर छिटक लेने से मच्छर नहीं आते।
पाचन एवं दर्द – केले के ऊपर इलायची खाने से केला सरलता से पच जाता है। यदि शरीर के भीतरी भाग में चोट लग जाए तो २०० ग्राम उबलते दूध में आधा चम्मच हल्दी डालकर उबालें, कुछ देर बाद ठंडा करके पी लें, सूजन व दर्द ठीक होता है।
उपवास में मुख में पानी आना —जब कभी कोई आठ या दस उपवास करता है तो मुख में पानी भरने लगता है ,उपवास में पेट में कुछ दिया नहीं जा सकता अत: सोंठ और सरसों का तेल मिलाकर शरीर की मालिश करना चाहिए। आधा घंटा में ही रोगी स्वस्थ हो जाता है या घी में सोंठ मिलाकर लगाना चाहिये।
रोगप्रतिरोध —यदि गंदा पानी हो तो पानी में नींबू निचोड़कर पियें इससे रोगों से बचाव होगा।
मोटापा घटाना—सदाबहार के पौधे हर जगह मिल जाते हैं उसमें चार पत्ती के सफेद एवं गुलाबी दो रंग के फूल होते हैं जो सफेद फूल होते हैं, उन फूलों को सुबह खाली पेट ७ फूल तोड़कर खूब चबाकर खाना चाहिये इसको ७ दिन खाना, फिर छोड़ देना चाहिये। फिर १० दिन बाद इसी तरह दोहराना इस तरह करीब २ महीने तक फूलों को लेने से मोटा व्यक्ति दुबला हो जाता है एवं कमजोर भी नहीं होता। एपेन्डीसाईटिस जिसे अन्त्रपुच्छ कहते हैं- जंगल की एक बूटी बनतुलसा इसे पीसकर लुगदी बना लें फिर लोहे की कलछी पर गरम करके (भूनना नहीं), उस पर थोड़ा सा नमक छिड़ककर दर्द के स्थान पर लुगदी की टिकिया बनाकर ४८ घंटे में तीन बार बदल कर बाँधें, इस बीच रोगी को आराम करने दें, इस ४८ घंटे के उपचार के बाद यह रोग हमेशा के लिये चला जायेगा।
मकड़ी विष —नींबू के रस में चूना पीसकर लगा दें।
हरनिया की गांठ —इमली के पत्तों को मिट्टी के बर्तन में गाय के मूत्र में सिजाकर एरन्डी के पत्ते के ऊपर रखकर सेक कर उस लुगदी को बांधकर लंगोट पहनना, रात भर बंधा रहने देना, यह प्रयोग ७ दिन करने से हरनिया की गांठ ठीक होती है।
साधारण गांठ— यदि साधारण गांठ कही भी दिखाई दे गले में, स्तन में, कहीं हाथ आदि में होने पर नीम की पत्ती पीसकर बांधने से ठीक होती है।
सर्प काटने की पहचान —यदि सर्प के काटने की आशंका हो तो उसकी पहचान हेतु काटे हुए स्थान पर नींबू का रस लगा दें, यदि वह स्थान काला सांवला पड़ जाय तो यह समझ लें सर्प ने काटा है, अन्यथा नहीं।
बिच्छू के डंक मारने पर—इमली का बीज घिसकर बिच्छू डंशीत स्थान पर चिपका दें जहर फौरन उतर जायेगा और जिस जगह बिच्छू ने डंक मारा हो उसके विपरीत वाले कान में नमक का पानी २—२ बूंद डालें जहर उतर जायेगा।
आदमी के काटने पर —गोभी का पत्ता पानी में पीसकर काटे हुये जगह पर लगायें, आदमी के पांव का विष फौरन उतर जायेगा।
कट जाने पर या चोट से —कपूर पीसकर लगाएं तुरन्त खून बंद होगा।
लू लग जाने पर— थोडी सी इमली को पानी में भिगो दें फिर मसलकर हाथ पर मुख आदि में लगा दें घंटे भर बाद धो लें, तुरन्त लू उतर जाये, लू का बुखार उतर जायेगा।
कुत्ता काटने पर —लाल मिर्च पानी के साथ पीसकर काटे हुये जगह पर लेप कर दें, जहर उतर जायेगा।
सांप के काटने पर—जिसको सांप ने काटा हो उसे १ गांठ लहसुन १ पाव गाय के दूध में पीसकर पिला दें, सांप का काट विष खत्म हो जायेगा। जहाँ काटा हो वहाँ चाकू से चीरकर खून बह जाने दें और उसे २—४ घंटे सोने न देवें। निश्चय ही व्यक्ति बच जायेगा।
सिगरेट पान मसाला की आदत छुड़ाने के लिए —अमरूद के तीन—तीन पत्ते नित्य तीन बार चबाकर रस चूस जायें और पत्तों का चूरा थूक दें, आदत छूट जायेगी। चोट —५० ग्राम अजवाइन को कपड़े में डालकर तवे पर रखकर सुहाता हुआ गरम चोटग्रस्त भाग पर सेक करने से बहुत लाभ होता है।
पिन खाने पर —यदि बच्चा अज्ञानवश पिन आदि निगल जाये तो तत्काल केले को खिलाना चाहिए।
बाल खाने पर —बाल खाने के साथ अन्य कारण से बाल पेट में चला जाय, पके अनानास को छीलकर फांक पर काली मिर्च सेंधा नमक लगातार खिलाने से बाल ही नहीं कांटा—काच आदि भी पेट में गलकर बाहर आ जाते हैं।
कांटा चुभना —यरि हाथ पैर में कांटा चुभ जाय, न निकलता हो तो मशक्कत ना करें थोड़े से गुड़ में अजवाइन मिलाकर बांधने से कांटा स्वयं निकल जायेगा। जल जाने पर —शरीर का कोई अंग जल जाये तो नारियल का तेल व चूना लगायें, न तो जलन होगी न फफोला बनेगा। मोच —मोच आने पर तेजपात को पीसकर बाँधने से आराम होता है।
प्लेग—प्लेग की गिल्टी पर पापड़ाक्षार को पानी में पीसकर रुई का फाहा भरकर गिल्टी पर रख देना चाहिये। इस पर भिलावा का लेप या उसका तेल लगाने से अल्प समय में व्याधि नष्ट हो जाती है। प्लेग की गिल्टी को चीरकर उसका दूषित रक्त निकलवाकर उस पर नीम की पत्तियों की टिकिया बाँधने से लाभ होता है। सौ बार धोये हुये मक्खन को कपड़े में लगाकर गिल्टी पर रख देने से आशातीत लाभ होता है। प्लेग के रोगी को लवंग और नागरमोथायुक्त जल पिलाना और संजीवनी बटी की १—१ गोली सुबह—शाम खिलाना, प्लेग नहीं होने के लिए पहले ही उपाय करें। भिलावा को कंडे की अग्नि में जलाकर निर्धूम होने पर उसे फोड़कर भीतर की सफेदाभिंगी निकालकर रख लें। जिसे चौथाई भाग पान में रखकर रोज दो बार खायें तो प्लेग नहीं होगा। या शुद्ध कुचला एक रत्ती से दो रत्ती पान में खायें, दोनों समय प्लेग से रक्षा होगी।
हैजा —शतपुष्पा अर्क, सतावर का स्वरस १०० ग्राम, दानेदार खांड आधा सेर, नींबू का रस आधा सेर, गुडूचीसत्व १ तोला, शुद्ध अफीम डेढ़ तोला, पोदीना सत्व, अजवायन सत्व आधा तोला। एक बर्तन में सतावर सत्, अर्क पुष्पा सत्व और खांड मिलाकर गरम करें जब आधा पानी जल जाय तो नींबू रस गुडूचीसत्व मिर्च चूर्ण डाल दे और थोड़ा पानी डालकर चासनी बना लें। उसमें ठंडा होने पर अजवाइन सत पोदीना सत्व मिला दें। छोटे बच्चों को ५ बूंद और बड़ों को १०—२० बूंद दें, दो बार दिन में देने से उल्टी, दस्त, हैजा ठीक हो जाता है। लाल मिर्च के बीज हटाकर उसे खूब महीन पीसकर शक्कर के साथ घोंटकर गोलियां बनाकर छाया में सुखा दें, हैजे के रोगी को दिन में दो चार बार यूँ ही निगलवा दें दो—दो गोलियां। रोगी भी ठीक हो जायेगा।
धूम्रपान—बीड़ी सिगरेट, जर्दे के सेवन की आदत हो तो इनका सेवन करना बंद कर दें तथा जब इनको सेवन करने की इच्छा हो तो नींबू चूसें। कुछ बूँदे नींबू के रस की जीभ पर डालकर स्वाद खट्टा कर लें। इससे इसके सेवन की इच्छा तुरन्त समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार जब भी इच्छा उत्पन्न हो, नींबू का सेवन करें। यदि आप सिगरेट बीड़ी पीना छोड़ना चाहते हैं तो सौंफ को घी में सेंककर शीशी में भर लें। जब भी सिगरेट पीने की इच्छा हो तो इसी सौंफ को आधा—आधा चम्मच चबाते रहें। इससे सिगरेट पीने की इच्छा समाप्त हो जाएगी। मन पर भी संयम रखें। सूखा रोग —तीन बादाम भिगोकर पीसकर दूध में मिलाकर पिलाने से सूखा रोग में लाभ होता है।
पैर के तलुओं में जलन—दो गिलास गर्म पानी में एक चच्चम सरसों का तेल मिलाकर प्रतिदिन दोनों पैर इस पानी में रखें और पाँच मिनट बाद धोएँ या खुरदुरी चीज से रगड़कर ठंडे पानी से धोयें। इससे पैर साफ रहेंगे। इनकी गर्मी निकल जाएगी। लौकी या घीया को काटकर इसका गूदा पैर के तलुवों पर मलने से गर्मी जलन—भभका दूर हो जाएगा। पैरो में जलन होने पर करेले के पत्तों के रस की मालिश करने से लाभ होता है। करेले के पत्ते पीस कर लेप करने से भी लाभ होता है। तलुवों हाथ पैरों में जलन हो तो घी मलने से मिट जाती है”
काँटा चुभना —जहाँ काँटा चुभा हो, उसे सुई से कुरेदकर निकालने का प्रयास करें। यदि काँटा नहीं निकले तो तिल के तेल में नमक मिलाकर रुई भिगोकर काँटे पर रखकर पट्टी बाँधने से काँटा निकल जाता है। काँटा चुभ जाए, बाहर न निकले तो जहाँ चुभा हो, उसे सूई से कुरेद कर गुड़ और अजवायन गर्म करके बाँधने से काँटा बाहर निकल जाता है। काँटा चुभने पर हींग का घोल उस स्थान पर भर देने से कुछ समय बाद वह स्वयं बाहर आ जाता है।
चोट—क्षति —किसी भी प्रकार की चोट सूजन, पुरानी चोट हो, नित्य दो बार स्नान के बाद मिट्टी का तेल लगाएं इन सब कष्टों में लाभ होगा। चोट लगकर रक्त बह रहा हो तो बर्फ के पानी की पट्टी व बर्फ का टुकड़ा रखें लाभ होगा। आंतरिक चोट लगने पर चार ग्राम फिटकरी को पीसकर आधा गिलास दूध में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। चोट लगने पर एक चम्मच हल्दी गर्म दूध के साथ पीने से दर्द, सूजन दूर होती है। चोट लगे स्थान पर हल्दी को पानी में गूँथ कर लेप करें। आँख में चोट लगने पर भी हल्दी का सेवन लाभदायक है। कहीं भी चोट लगी हो, चोट से सूजन हो तो दो भाग पिसी हुई हल्दी, एक भाग चूना मिलाकर लेप करें। लाभ होगा। तिल की खली को पानी में पकाकर मोच पर गर्म—गर्म बाँधने से मोच में आराम मिलता है। कभी—कभी चोट लगने पर नील पड़ जाती है नील पड़ी जगह पर कच्चा आलू पीसकर लगायें।
गर्मी से बचाव —जौ का सत्तू शरीर में ठंडक देता है। चावल की प्रकृति शीतल है। गर्मी के दिनों में नित्य चावल खाने से ठंडक मिलती है। गर्मी के कारण हाथ पैरों में दर्द और जी घबराने में शीतल जल की पट्टी बड़ी लाभदायक होती है। चेहरा, पेट पर ठंडे पानी में कपड़ा भिगोकर रखें। गर्मी की तपन से घुटन महसूस होने पर नींबू की शिकंजी पीने से लाभ होता है। यह मष्तिष्क को तरोताजा करता है। खीरा खाने से गर्मी में लाभ होता है।
पसीना —यदि पसीने में दुर्गन्ध आती हो तो भी नमक कम से कम खाएं। यदि पैरों में पसीना अधिक आता हो तो पहले पैरों को गर्म पानी में रखें, फिर ठंडे पानी में रखें और दोनों पैरों को आपस में रगड़ें। फिर बाहर निकालकर पोंछ लें। एक सप्ताह तक करने से लाभ होता है। पिसी हुई फिटकरी एक चम्मच दो गिलास ठंडे पानी में घोलकर हाथ—पाँव धोयें। पसीना नहीं आएगा।
लू आतपघात —धूप से बचने के लिए घर से निकलने से पहले इलायची मुँह में रखकर निकलें। बीमार व्यक्ति के कपड़े उतारकर हवा करें। उसके शरीर को ठंडक पहुँचायें। बर्फ के पानी में चादर भिगोकर लपेट दें। ऐसा १०२ डिग्री ज्वर आने तक करें। पकी हुई इमली के गूदे हाथ और पैरों के तलवे में रगड़ने से लाभ होता है। इमली के पानी में गुड़ मिलाकर पीना लाभदायक होता है।
जलवायु परिवर्तन —देश—देश में भ्रमण करने वाले यदि लाल मिर्च को घी में तलकर खायें तो उनको कहीं का भी पानी नुकसान नहीं करेगा। बिजली गिरना—बिजली गिरने से या तार की बिजली से व्यक्ति बेहोश हो गया हो तो सिर तथा चेहरे पर तुलसी का रस मलने से होश में आ जाता है।
सर्पदंश—सर्प काटने पर लाल मिर्च खाने पर कड़वी नहीं लगती। साँप काटते ही रोगी के कपड़े उतारकर उसे केले के पत्तों पर लिटा दें। जिससे केले का रस उसके चर्म, छेदों से शरीर में पहुँचता रहे। इसके साथ ही केले के तने का रस २० ग्राम निकालकर छानकर उसमें १२ कालीमिर्च मिलाएं। रोगी के बेहोश होने पर एक एक चम्मच रस उसके मुँह में डालते रहें। होश में आने पर आधा—आधा गिलास केले का रस २०—२० मिनट के बाद पिलाते रहें। इससे रोगी के शरीर में साँप का विष प्रभावहीन हो जाता है और रोगी मरने से बच जाता है। जब तक रोगी को आशातीत लाभ न हो तो थोड़ी देर में रस पिलाते रहें। रस निकालने से बचा हुआ गूदा, छिलका सर्प दंश पर बाँध दें। केले के तने का रस शरीर पर भी गल सकता है। लाभ होगा। इससे सर्प विष नष्ट हो जाता है। जिस घर में लहसुन की गाँठे रहती हैं वहाँ साँप नहीं आता। अगर कहीं साँप के रहने का डर हो तो वहाँ लहसुन की एक गांठ रख दें। साँप नहीं आएगा।
कुत्ता काटना—गेहूँ के आटे को गूंथकर उसकी कच्ची रोटी बनाकर कुत्ता काटे स्थान पर बाँध दें। १५ मिनट बाद खोलकर किसी अन्य कुत्ते के पास खाने के लिए डाल दें। यदि कुत्ता उस रोटी को नहीं खाए तो समझें कि पागल कुत्ते ने काटा है और अगर रोटी को खा ले तो पागल कुत्ते ने नहीं काटा है। ग्वारपाठे को एक ओर छीलकर गूदे पर पिसा हुआ सेंधा नमक डालें। फिर इसे कुत्ते द्वारा काटे स्थान पर पट्टी लगाकर बाँध दें। यह नित्य चार दिन तक करें। पागल कुत्ते के काटने पर लाल मिर्च पीसकर लेप करने से लाभ होता है। इस लेप से पसीना बहुत आता है। जिससे कुत्ते की विषैली लार बह जाती है। दो चम्मच जीरा और २० काली मिर्च पानी में डालकर पीसकर कुत्ते द्वारा काटे स्थान पर लगाएं, विष नष्ट हो जाएगा।
मक्खी मच्छर काटना— नारंगी के छिलकों को जलते हुए कोयले पर डाल दें। इसका धुँआ चमकदार और सुगन्धित होगा जिससे मक्खी मच्छर नहीं आएंगे। नारंगी के छिलके जहाँ—वहाँ रख दें तो खटमल नहीं आएंगे। अजवाइन पीसकर समान भाग सरसों के तेल में मिलाकर उसमें गत्ते के टुकड़ों को तर करके चारों ओर लेप करके कमरे में चारों कोनों में लटका दें। मच्छर नहीं आएंगे। पसीने की दुर्गन्ध, जो नहाने से भी ठीक नहीं होती, तो बेलपत्र के ७—८ पत्ते पानी से धोकर स्नान के पहले चबा चबा कर खा लें। इस प्रयोग से १०—१५ दिन में ठीक हो जाता है” १०० वर्ष पुराने घी को दिखाते ही भूत बाधा नष्ट हो जाती है।
घर में रखने योग्य दवायें— तेजपात चूर्ण — मधुमेह की शर्तिया दवा हृदय रोग में — मोतीपिष्टी, प्रवालपिष्टी अर्जुन चूर्ण वातारिवटी — सभी वातरोग, जोड़ों के दर्द, कमर दर्द के लिए कुमार कल्याण घूटी — बालकों के सभी रोगों के लिए गृहणी रिपू खाना नहीं पचना — पेट गुड़ गुड़ शब्द करता, बार बाद दस्त, भूख कम आदि। आंवनिरूसारक वटी — निम्बादि मलहम — चर्मरोगनाशक कदन्जादि वटी — मलेरिया के लिए उत्तम धन्वन्तरि सुधा — दूध पलटने में उपयोगी सरलभेदी वटी — अजीर्ण, पेटदर्द, हैजा, दस्त, गर्मी दस्त, बच्चों के हरे पीले दस्त में उपयोगी। धन्वन्तरि शूलहर टेबलेट — सिरदर्द, पेटदर्द, कान दर्द, शरीर के किसी अंग दर्द में उपयोगी। मनोरम चूर्ण — स्वाद एवं शीतल, हर रोग के लिए उत्तम। कुमार कल्याण घूटी — हरे पीले दस्त, पेट में आफरा, पेट में कीड़े, पसली चलना, दस्त साफ न होना, सोते—सोते चौंकना, दांत निकलते समय हर बच्चों के रोग में उपयोगी। लक्ष्मीविलास रस — खासी, सर्दी, जुकाम, एलर्जी एलादिवटी — सूखी खांसी के लिए महामृत्युंजय रस — बुखार, इन्फ्लुएन्जा आदि। गेंहू के पौधे में रोगनाशक अपूर्व गुण —गेहूँ के ज्वारे या पौधे का रस प्रकृति के गर्भ में छिपी औषधियों के अक्षय भंडार में से मानव को प्राप्त एक भेंट है। गेहूूँ के छोटे—छोटे पौधों का रस कठिन से कठिन रोग ठीक करते हैं। इसके रस से रक्तशुद्धि होती है क्योंकि इसमें प्रदूषणनिरोधी तत्व पाये जाते हैं, इसके सेवन से कैंसर जैसे असाध्य रोग जिन्हें डाक्टरों ने मृतप्राय समझकर अस्पताल से निकाल दिया। वे भी इसके सेवन से ठीक हो गये।
रस बनाने की विधि—गेहूँ के पौधे ८ इंच से ज्यादा बडे न होने पायें, इन्हें काम में लेना है। ८ या १२ गमले रखकर बारी बारी से प्रतिदिन एक गमले में आपको गेहूँ बोना है। ७ दिन में यह पौधे तैयार होते हैं इन्हें जड़ से उखाड़कर जड़ों को काटकर अलग कर दें और पीसकर इसका रस निकालें। रस निकालकर ज्यादा देर नहीं रखना चाहिये। १ घंटे, २ घंटे छोड़ने पर उसकी शक्ति घट जाती है। ३—४ घंटे में तो यह बिल्कुल फेंकने लायक हो जाता है। मात्रा —गेहूँ के पौधे का रस एक बार में एक व्यक्ति को ३० मिली. घूंट—घूंट करके पीना है। सुबह शाम लें तो और अच्छा अन्यथा एक बार तो अवश्य लेवें। असाध्य रोगों में रस धीरे—धीरे बढ़ाकर ३०० मिली. तक ले सकते हैं। इसके रस में अन्य कोई रस ना मिलाया जाय। इसमें किसी भी तरह के मसाले या नमक नींबू ना मिलाया जाय। इस रस को कम से कम ४० दिन तक तो पीना है और आगे बढ़ाकर लम्बे समय तक पी सकते हैं कोई हानि नहीं होती।
लाभ—इस रस के पीने से आँखें, दांत और बालों को बहुत फायदा होता है और कब्ज भी नहीं रहती। इस रस के सेवन से कोई हानि नहीं होती। इसका सेवन करते समय ज्यादा भोजन ही लेना चाहिए। १. सम्भव हो तो गेहूँ घास रस का एनीमा भी लें। इससे पेट में यदि कीड़े हों तो बाहर निकल आते हैं। पेट साफ रहता है तथा पेट से उठने वाली अन्य बीमारियों में भी लाभप्रद है। जैसे कब्ज, गैस ट्रबल, अल्सर आदि। २. खूब भूख लगती है तथा शारीरिक शक्ति में अत्यधिक वृद्धि होती है व हीमोग्लोबिन बढ़कर शुद्ध रक्त का संचार होता है। चेहरा सुन्दर तथा लावण्यमय हो जाता है। ३. मूत्राशय व गुर्दे संबंधी रोग दूर होते हैं। पथरी भी दूर होती है। दांत मजबूत होते हैं तथा बालों को भी लाभ होता है। आँखों की ज्योति बढ़ती है तथा चर्मरोग नहीं होते। ४. विद्यार्थियों का शारीरिक मानसिक विकास खूब होता है, स्मरण शक्ति बढ़ती है। नशे की आदत छूट जाती है। ५. रक्तचाप, हृदय रोग, लकवा व पोलियो की सम्भावना नहीं रहती। ६. व्हीट ग्रास (गेहूँ के कोमल पौधे) रस में १०३ तत्व, आवश्यक विटामिनों की पूरी श्रेणी, खनिज असीनों, अम्ल पाचक रेशे और जिसकी अत्यन्त आवश्यकता होती है ऐसे एक्सोजीनल, एन्जाइम्स प्रोटेस, साइट्रोजीनस, सुपर आक्साइड डिस्म्यूटेज आदि मिलते हैं। ७. गेहूँ के पौधे के रस के रक्त साफ होता है, हर प्रकार के चर्म रोग में यह रस पियें तथा रस से रोगग्रस्त चर्म को धोयें, बराबर रस ही लगायें लाभ होगा। मोच —शरीर के किसी भी अंग में मोच आ गई हो तो गर्म घी में नमक मिलाकर उस अंग पर लेप करें, तुरन्त राहत मिल जायेगी।
छाती का दर्द—अजवाइन एक चम्मच को दो कप पानी में उबालें, शेष चौथाई रहने पर छानकर रात को सोते समय गरम—गरम पीकर ओढ़कर सो जायें दिन में दो बार, पसली चलना भी बंद हो जायेगा। दिल के समस्त रोगों में —सूखे आंवलों को पीसकर उसके बराबर मिश्री मिलाकर रोज सबेरे खाली पेट १ चम्मच भर पानी के साथ फांकने पर हृदय के सारे रोग दूर हो जाते हैं। खूब अनुभूत प्रयोग है। उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल के लिए —तरबूज के बीज की गिरी और सफेद खसखस अलग अलग पीसकर बराबर मिलाकर १ चम्मच रोज सुबह शाम खायें, इससे रक्तचाप कम, अच्छी नींद, कोलेस्ट्रोल पिघलकर पतला होता है। पीलिया —१ गिलास छाछ में १ चुटकी काली मिर्च मिलाकर एक सप्ताह लगातार लेने से पीलिया नष्ट होता है।
अम्लपित्त —भोजन के बाद दोनों समय एक एक लौंग चूसने से अम्लपित्त ठीक होता है। बिवाई —गेंदे के पत्तों का रस वैसलीन में मिलाकर लगाने से हाथ की खुश्की एवं बिवाई फटना ठीक होता है। कान के कीड़े —गर्मी के कारण कान में कीड़े पड़ जाते हैं तो ग्वारपाठा को पानी में पीसकर कान में दो तीन बूंद डालने पर आराम होता है। उन्माद —नींबू के रस को मस्तिष्क के ऊपर लेप करने से पागलपन ठीक होता है एवं पिलाने से किसी के द्वारा खिलाई हुई वस्तु का प्रभाव खत्म होता है। तुतलाना एवं हकलाना १. एक ताजा हरा आंवला रोज कुछ दिन चबाए जायें। २. दो काली मिर्च मुंह में रखकर चबायें चूसें लम्बे समय तक तो काफी ताकत लगाकर हकलाने वाले बच्चे भी ठीक हो जाते हैं।
काली खांसी —भुनी हुई फिटकरी दो ग्राम और चीनी दो ग्राम मिलाकर दिन में दो बार खाना बिना पानी के। ज्वर कैसा भी सात तुलसी पत्र, सात काली मिर्च और सात बताशे तीन कप पानी में डालकर उबालें, १ कप रह जाये तो गरम गरम पीकर ओढ़कर सो जायें। बुखार, फ्लू, मलेरिया, सर्दी, जुकाम, हरारत सब ठीक। क्रोध शांत —दो पके मीठे सेब बिना छीले प्रात: खाली पेट चबाकर खाने से गुस्सा शांत होता है। नींद अधिक आने पर —पान में एक लौंग डालकर चबा लेना चाहिए या नींबू को बिना दूध की चाय में डालकर पीना। फेफड़ों की सूजन या पानी भरने पर —तुलसी के पत्तों का रस १५ ग्राम से तीस ग्राम तक धीरे—धीरे बढ़ाते हुये तीन दिन में दो बार खाली पेट लेने से आठ—दस दिन में सारी बीमारी मिट जाती है। मधुमेह या इन्सुलिन छुड़ाने के लिए —गेहूँ के आटे को लाल या भूरा रंग होने तक भून लेना फिर इस आटे की रोटी खाने से सारी बीमारी दूर हो जायेगी। पीलिया —पीपल के पत्तों का शरबत बनाकर छानकर पीना। गला बैठने पर —कच्चा सुहागा आधा ग्राम मटर के बराबर टुकड़ा मुख में रखकर चूसने से स्वर भंग में लाभ। ==खाने के बाद तुरन्त पाखाना जाने में== १०० सूखे धनिया में २५ ग्राम काला नमक मिलाकर पीस लें भोजन के बाद आधा चम्मच पानी में, आदत छूट जायेगी अथवा भुनी सौंफ और जीरा लेकर गरम पानी पीने से भी यह ठीक होता है। कठिन वमन —चूने का पानी एक चम्मच, दूध १२५ ग्राम में मिलाकर दिन में दो बार पियें। हिचकी— चार छोटी इलायची छिलका सहित पीसकर उसे आधा किलो पानी में उबालें, पाव पानी शेष रहने पर छानकर रोगी को गुनगुना पिला दें।
अधिक प्यास में— २५ ग्राम सौंफ को २५० ग्राम पानी में भिगो दें, १ घंटे बाद उस पानी को घूंट—घूंट करके पीने से तीव्र प्यास मिटती है। साधारण दमा —सुहागा का फूला और मुलहटी का अलग—अलग चूर्ण बनाकर मिलाकर शीशी में भर लो। बस आधा चम्मच दूध या चासनी से लेना श्वांस, खांसी, जुकाम ठीक, दमा ठीक। बिना दवा के दमा का इलाज—स्वर चिकित्सा —जब दमा का दौरा उठे उस समय जो स्वर तेज चल रहा हो उसे बन्द करके दूसरा स्वर चलाया जाये तो दमा का दौरा कुछ क्षणों में ठीक हो जाता है। खूनी बवासीर —कागजी नींबू काटकर ५ ग्राम कत्था पीसकर नींबू में लगाकर रात को रखो और सुबह दोनों टुकड़े चूस लो खून बन्द करने के लिए बढ़िया दवा है। ५ दिन इस्तेमाल करना।
मिरगी के लिए —अकरकरा १० ग्राम बारीक करके २० ग्राम बीज निकालें मुनक्का में खूब रगड़ कर मिला लें और उसमें से दो ग्राम १५—२० दिन दूध के साथ सेवन करें। यह दो कौड़ी की दवा कितना काम करेगी। सिर चकराना —पेट में गैस की वजह से सिर चकराता हो तो एक प्याली गर्म पानी में नींबू निचोड़ कर चार दिन पिलायें जल्दी ठीक हो जायेगा। मुँह की बदबू —गुलाबजल ५० ग्राम में आधा नीबू निचोड़कर कुल्ला करने से मुँह की बदबू दूर हो मसूड़ों के जख्म ठीक होकर मसूड़े मजबूत होते हैं।
कब्ज —नींबू का पतला छिलका उतार लीजिये, अन्दर की सफेदी छिलके के साथ न जाये यह ध्यान रखें। अब नींबू के छिलके और रस को बीज सहित गिलास में रखकर ठण्डा पानी भरकर रात को ओस में रख दीजिये सुबह अच्छी तरह हिलाकर छानकर पी लीजिये कब्ज जरूर दूर होगा। कान में पीव —सरसों का तेल १० ग्राम गर्म करके ५ ग्राम बोरिक पाउडर मिलाकर चार बार दिन में डालें। नकसीर का दर्द —एक पका केला शक्कर मिले दूध में आठ दिन तक चबाकर खायें। कैसा ही कान का दर्द हो दो रत्ती खाने का सोडा कान में डालकर ऊपर से नींबू का रस १०—१२ बूंद टपका दें दर्द बन्द हो जायेगा। मरोड़युक्त दस्त में— एक चम्मच चाय की पत्ती और पाँच चम्मच खाने का नमक मिलाकर पीस लें यह चूर्ण सुबह दोपहर शाम गुनगुने गरम पानी के साथ लेने से मरोड़ के दस्त बन्द हो जाते हैं।
गले में खरास, टांसिल्स की सूजन, हलका बुखार हो तो— काली मिर्च के ५—६ दाने, मुलहटी ५ ग्राम, तुलसी के १५—२० पत्ते, २—५ लौंग सबको मोटा कूटकर १ क1प पानी में डालकर उबाल कर सोते समय गर्म—गर्म पीने से आराम। दमा—सांस खांसी के लिए —केले के छिलके को सुखाकर जलाइये और उसे पीसकर शीशी में भर लें गुनगुने पानी से रात को सोते वक्त ५ ग्राम प्रतिदिन लेवें। सीने की जलन— २५० ग्राम ठण्डे जल में नींबू निचोड़कर पीने से सीने की जलन, घबराने में आराम होता है। सफेद दागों में लगातार नीम का तेल लगाने से आशातीत सफलता मिलती है। अमृतधारा के विविध प्रयोग —जैसे बदहजमी, हैजा और सरदर्द, पसली दर्द, मच्छर, कीड़े, बिच्छू काटने पर थोड़े से पानी में तीन चार बूंद अमृतधारा डालकर पिलाने से यह सारी बीमारी ठीक होती है। आँख की गुहेरी —इमली के बीज की गिरी को पत्थर पर चन्दन की तरह घिस कर गुहेरी पर लेप करने से तत्काल ठंडक और कुछ घंटों बाद रोग का नामोनिशान न होगा। पुरानी नकसीर —दस ग्राम मुल्तानी मिट्टी को कूटकर रात में मिट्टी के बर्तन में आधा किलो पानी में भिगों दे। सुबह पानी निथार कर छानकर पिला दें वर्षों पुराना रोग सदा के लिए नष्ट। दो तीन दिन पिलाना।
गला बैठने पर —कच्चा सुहागा आधा ग्राम मुँह में रखकर चूस कर पूरा गल जाने पर स्वर में आराम, गायक, भाषण वालों को बहु उपयोगी। पेट के कीड़े —अजवाइन और गुड़ को समान लेकर गोली बनाकर दिन में तीन बार खिलाने से रोग मिटता है। दस्त बंद के लिए— आम के भीतर की गुठली का पाउडर या गीली पानी में घिसकर १ चम्मच पीने से दस्त बंद होते हैं। नाभि टलने पर —२० ग्राम सौंफ और गुड़ समभाग मिलाकर प्रात: खाली पेट खायें नाभि ठीक हो जायेगी।