तर्ज-मेरे देश की धरती………
चम्पापुर नगरी वासुपूज्य के जन्म से धन्य हुई है,
चम्पापुर नगरी……..।।टेक.।।
जिनशासन के बारहवें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य स्वामी।
उनके पाँचों कल्याणक से, चम्पापुर की धरती नामी।।
वसुपूज्य पिता के साथ जयावति माता धन्य हुई है।।
चम्पापुर.।।१।।
उस चम्पापुर तीरथ का मैं, आह्वानन स्थापन कर लूँ।
सन्निधीकरण कर वासुपूज्य, प्रभु को मन में धारण कर लूँ।।
इस पूजा विधि से पूजनसामग्री भी धन्य हुई है।।
चम्पापुर.।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अष्टक (शंभु छन्द)
जीवात्मा एवं कर्मों का, सम्बन्ध अनादीकाल से है।
बस इसीलिए जीवन व मरण, हो रहा अनादीकाल से है।।
अब जन्मजरामृतिनाश हेतु, जल से प्रभु का अर्चन कर लूँ।
प्रभु वासूपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुरि का वंदन कर लूँ।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्राय जन्मजरा-मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मिथ्यादर्शन के कारण जीव, अनादी से भव भ्रमण करें।
सम्यग्दर्शन यदि मिल जावे, तब ही उसका उपशमन करे।।
भव आतप के विध्वंस हेतु, चंदन से प्रभु पूजन कर लूँ।
प्रभु वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर का वन्दन कर लूँ।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
है क्षणिक विनश्वर पद प्राप्ती, के लिए सदा अन्याय यहाँ।
आत्मा का लाभ न ले पाया, है अविनश्वर साम्राज्य जहाँ।।
अब अक्षय पद पाने हेतू, अक्षत से प्रभु पूजन कर लूँ।
प्रभु वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर का वन्दन कर लूँ।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
जिस कामदेव के वश होकर, सच्चे सुख को सब भूल रहे।
जिनराज उसी को वश में कर, आतम अमृत में डूब रहे।।
उस कामबाण के नाश हेतु, पुष्पों से प्रभु पूजन कर लूँ।
प्रभु वासुुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर का वन्दन कर लूँ।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्राय कामबाण- विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
है क्षुधावेदनी कर्म सभी के, संग अनादि से लगा हुआ।
उसके ही तीव्र उदय होने पर, नहिं अभक्ष्य का भान रहा।।
वह क्षुधारोग विध्वंस हेतु, नैवेद्य से प्रभु पूजन कर लूँ।
प्रभु वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर का वन्दन कर लूँ।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्राय क्षुधारोग- विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आठों कर्मों में मोहकर्म, सबसे बलवान कहा जाता।
उससे निजरूप न दिखे अतः, वह अंधकार माना जाता।।
अब मोहतिमिर के नाश हेतु, दीपक से प्रभु पूजन कर लूँ।
प्रभु वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर का वन्दन कर लूँ।।६।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
आठों कर्मों के नाश हेतु, जिनराज तपस्या करते हैं।
क्रमशः उनके नाशन हेतू, श्रावकजन पूजा करते हैं।।
उन कर्मों की उपशांति हेतु, पूजन में धूप दहन कर लूँ।
प्रभु वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर का वन्दन कर लूँ।।७।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
मैंने अनादि से इस जग में, ग्रैवेयक तक फल प्राप्त किया।
लेकिन सम्यक्चारित्र बिना, नहिं मुक्ति योग्य फल प्राप्त किया।।
अब मोक्षमहाफल प्राप्ति हेतु, फल से प्रभु की पूजन कर लूँ।
प्रभु वासुुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर का वन्दन कर लूँ।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
मणिमुक्ता आदि मिला करके, मैं अर्घ्य सजाकर ले आया।
‘‘चन्दनामती’’ प्रभु पूजन कर, चाहूँ तीरथ पद की छाया।।
अब पद अनर्घ्य की प्राप्ति हेतु, मैं अर्घ्य चढ़ा प्रणमन कर लूँ।
प्रभु वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर का वन्दन कर लूँ।।९।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरतीर्थक्षेत्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
गंगनदी का नीर ले, डालूँ जल की धार।
देश राष्ट्र में शांति हो, मन में यही विचार।।
शान्तये शांतिधारा
चम्पापुर उद्यान से, पुष्प सुगंधित लाय।
पुष्पांजलि अर्पण करूँ, मन में अति हरषाय।।
दिव्य पुष्पांजलि: