श्री के. के. शर्मा पुत्र श्री आर. एल. शर्मा भारतीय रिजर्व बैंक मैनेजर के अधिकारी पद पर कार्यरत हैं गत १० वर्षों से एक्यूप्रेशर से कई असाध्य रोगों का भी इलाज किया है। मानव प्रारम्भ से ही खोजी प्रवृत्ति का रहा है। जब से मानव सभ्यता का विकास हुआ, तभी से वह प्रयासरत है कि वह स्वस्थ तथा रोगमुक्त जीवन कैसे जी सकता है अत: उसने स्वस्थ रहने के लिए विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को अपनाया, यथा ऐलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथी, योग चिकित्सा आदि। वर्तमान में एलोपैथी मानव जीवन में प्रमुख चिकित्सा पद्धति मानी जाती है लेकिन इसके साथ ही गत वर्षों में जिन चिकित्सा पद्धतियों का प्रचलन बढ़ा है उनमें होम्योपैथी, आयुर्वेदिक, एक्यूप्रेशर तथा रेकी चिकित्सा पद्धतियाँ प्रमुख है। वर्तमान में जनसाधारण ऐलोपैथी—चिकित्सा पद्धति पर मुख्य रूप से निर्भर है। मानव स्वभाव है कि वह अस्वस्थ नहीं रहना चाहता, वरन् हमेशा स्वस्थ तथा बीमार होने पर तुरन्त स्वस्थ होना चाहता है। यही कारण है कि वह सिरदर्द होने पर एक गोली खाकर सरदर्द तुरन्त दूर करना चाहता है। वह इस बात से परेशान नहीं होता कि गोली खाने के पश्चात् उसकी बीमारी समाप्त हुई या नहीं। लगातार गोलियाँ खाने के पश्चात् जब उसकी बीमारी समाप्त नहीं होती है तो वह चिकित्सक के पास जाता है। जहाँ उसे कई प्रकार की शारीरिक जाँच के लिए निर्देश मिलते हैं। जाँच कराने के पश्चात् ही उसे दवा दी जाती है। यदि उसका सरदर्द दवाओं के लेने के पश्चात् भी समाप्त नहीं होता तो वह परेशान होकर अन्य चिकित्सा पद्धतियों की शरण में जाता है।
पद्धति एक्यूप्रेशर
वर्तमान में जिस चिकित्सा पद्धति का शीघ्रता से प्रसार हो रहा है वह एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति है। एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति एक ऐसी पद्धति है जिसमें सरल औषधि का प्रयोग नहीं होता है। यह एक सरल, सुलभ एवं सस्ती होने के साथ- साथ शारीरिक दुष्प्रभावों से मुक्त चिकित्सा पद्धति है। प्रतिदिन हम संचार माध्यमों द्वारा ऐलोपैथी—दवाओं के दुष्प्रभावों के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं। आश्चर्य का विषय है कि जिस चिकित्सा पद्धति में दवाइयों के दुष्प्रभावों, महंगी पद्धति तथा चिकित्सक की अनजाने में हुई लापरवाही अस्वस्थ व्यक्ति के लिए घातक हो वह पद्धति हमारी मुख्य चिकित्सा पद्धति है। इसके विपरीत सस्ती, सरल, सुलभ तथा शारीरिक दुष्प्रभावों से मुक्त अन्य चिकित्सा पद्धतियाँ चाहे वह आयुर्वेदिक हो या होम्योपैथी या एक्यूप्रेशर हो वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति मानी जाती है। एक्यूप्रेशर को हमारे देश में मान्यता ही नहीं है। जापान तथा चीन ने इस पद्धति को अपनाया है तथा निरन्तर इसमें शोध हो रहा है। वस्तुत: मानव शरीर एक अद्भुत इलेक्ट्रॉनिक यन्त्र है। जैसे हम घर पर कोई कम्प्यूटर या टीवी लाते हैं तो बच्चों को समझाते रहते हैं कि इसे अनावश्यक बार—बार मत छेड़ो यह खराब हो जायेगा। फिर भी हम प्रकृति के नियमों के विरुद्ध चलते हुए इस मानव शरीर रूपी यन्त्र से खिलवाड़ करते रहते हैं। परिणाम अनेक शारीरिक व्याधियाँ जन्म के रूप में सामने आती हैं। हमारा मानव शरीर इस प्रकार बना है कि वह अपने साथ कोई भी गलत बात सहन नहीं कर सकता। यदि हमें बुखार हो जाए या पेट दर्द जो जाए तो हमें उस समय कोई भी अच्छा खाना, संगीत या किसी से हॉस—परिहास भी अच्छा नहीं लगता। हमारा ध्यान केवल पुन: स्वस्थ होने पर केन्द्रित रहता है। यह एक सत्य है कि मानव शरीर में स्वयं को स्वस्थ रखने की अद्भुत क्षमता है। मानव शरीर के इस गुण को हमारे प्राचीन विद्वानों ने समझा तथा उन्होंने अपने आपको स्वस्थ रखने के शरीर के विभिन्न दाब बिन्दुओं काे पहचाना। इन्होंने इस एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का कर्म के साथ समन्वय स्थापित किया। भजन सत्संग करते हुए ताली बजाकर एवं किसी धार्मिक स्थल की पैदल पदयात्रा जाना इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
एक्यूप्रेशर का अभिप्राय है दबाव डालना अर्थात् हाथों, पैरों, चेहरे तथा शरीर के कुछ खास केन्द्रों पर दबाव डालकर शरीर के रोग दूर करना। इन केन्द्रों को प्रतिबिम्ब केन्द्रों के नाम से जाना जाता है” इस पद्धति के द्वारा शरीर को रोगमुक्त ही नहीं किया जाता वरन् अनेक रोगों से दूर भी रखा जाता है। इस पद्धति के द्वारा रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि की जाती है। यह पद्धति काफी चमत्कारी है। इस पद्धति में प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर दबाव देने पर अस्वस्थ व्यक्ति को तुरन्त आराम आने लगता है। जिस तरह स्विच ऑन करने पर बिजली तुरन्त प्रकाश देती है उसी प्रकार प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर दबाव देकर दर्द, ब्लडप्रेशर आदि में तुरन्त आराम आता है। वस्तुत: हमारे शरीर तथा उसके सभी अंगों को चलाने वाली मूल शक्ति प्राणशक्ति है। प्राणशक्ति हमारे शरीर की रीढ है तथा आत्मा की चेतना का पर्याय है। जब प्राणशक्ति अस्त व्यस्त होती है तो हम शारीरिक तथा भावनात्मक तनावों से घिर जाते हैं। यदि शरीर के किसी अंग में प्राणशक्ति की कमी होती है तो वह अंग सामान्य रूप से प्राण ही कर पाता है। मानव शरीर में असंख्य चेहरा केन्द्र होते हैं तथापि कुछ स्थान ऐसे होते हैं जहाँ चेतयत दूसरे स्थानों की अपेक्षा अधिक सघन होती है। इन्हीं चेतना केन्द्रों को प्रतिबिम्ब केन्द्र या एक्यूप्रेशर बिन्दु कहा जाता है। इसी चेतना केन्द्रों पर दबाव देकर अनेक असाध्य रोगों का बिना दवा तथा बिना शल्य चिकित्सक के इलाज किया जा सकता है, इसके चमत्कारी प्रभावों को देखते हुए अन्य चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों ने इसमें रुचि लेना प्रारम्भ किया है। स्वाभाविक रूप से मनुष्य का सिर आकाश की ओर रहता है अत: दोनों हाथ तथा दोनों पैर—शरीर के दायें तथा बायें शरीर का प्रतिनिधित्व करते हैं। हाथ तथा पैर का अंगूठा सिर का प्रतिनिधित्व करता है। प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर हल्का पर गहरा दबाव होना चाहिए। जिन केन्द्रों पर तीव्र दर्द का अहसास हो उन्हें ही दबाना चाहिए। प्रेशर देने से हाथ तथा पैर में स्थित बिन्दु सक्रिय हो जाते हैं तथा शरीर में ऊर्जा का संचार होने लगता है। जैसे जैसे रोग दूर होता जाता है दबावबिन्दु पर दर्द भी कम हो जाता है।
यह रोग की अवस्था तथा व्यक्ति के रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करता है कि रोग ठीक होने में कितना समय लगेगा तथा प्रत्येक केन्द्र पर ७—१० सेकण्ड तक प्रेशर दे सकते हैं। यद्यपि यह एक विस्तृत विषय है लेकिन मैं पाठकों की जानकारी हेतु दिन—प्रतिदिन में होने वाली सामान्य बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए हाथों तथा पैरों पर कहाँ—कहाँ दबाव देना चाहिए इसका नीचे वर्णन करूंगा। सिरदर्द तथा माइग्रेन — सिरदर्द तथा माइग्रेन हेतु हाथ तथा पैर के अंगूठे के ऊपर नख वाले भाग पर प्रेशर देना होता है। यदि ललाट में दर्द हो तो अंगूठों के नख वाले भाग के विपरीत प्रेशर देना चाहिए। सायनस — खोपड़ी के अंगों वाले भाग को खाली जगह जहाँ हवा रहती है। सायनस कहते हैं। ये नाक के ऊपर—साइड में होते हैं। नाक में संक्रमण होने पर सायनस प्रभावित होती है। सायनस के उपचार हेतु हथेलियों, पैर की अंगुलियों के ऊपर के भाग में प्रेशर देना चाहिए। सरवाइकल स्पोंडलाइटिस- कंधे का दर्द — कंधे का प्रतिबिम्ब केन्द्र हाथ तथा पैरों की छोटी अंगुलियों के नीचे किनारे पर होता है इस क्षेत्र पर प्रेशर देने से कंधे का दर्द, जकड़न, गर्दन दर्द तथा हाथ दर्द का उपचार होता है। गैस का दर्द हमें किसी चाबी या हाथ से दबाव देना चाहिए। यदि इस प्रक्रिया को दोनों हाथों में आठ से दस बार—दोहराया जाए तो गैस दर्द में तुरन्त आराम मिलता है। कमर दर्द — यदि हम पैरों के अन्दर वाले टखने के नीचे दबाव दें तथा दोनों हाथों के अंगूठों में बिन्दु पर दबाव दें तो कमर दर्द में तुरन्त आराम मिलेगा। एसिडिटी — वर्तमान में खाने के पश्चात् पेट में तथा सीने में जलन महसूस होना सामान्य सा विषय हो गया है। इसे दूर करने हेतु पैर में दिखाये बिन्दु पर ५—७ सैकण्ड तक प्रेशर देना चाहिए। एसिडिटी में इससे आश्चर्यजनक रूप से आराम का अनुभव होता है। यह बिन्दु पेट में अधिक अम्लता होने पर उल्टी तथा पतले दस्तों को रोकने में भी सहायक होता है। पेट में दर्द का अनुभव होने पर चित्र में दिखाये अनेक बिन्दु पर प्रेशर देना चाहिए। ऊपर मैंने सामान्य जीवन में होने वाली बीमारियों का वर्णन किया है लेकिन यह एक सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। इस पद्धति द्वारा अस्थमा,बवासीर, माइग्रेन, कमरदर्द, स्लिप डिस्क, सरवाइकल स्पोंडलाइटिस आदि असाध्य बीमारियों की सफलतापूर्वक चिकित्सा संभव है। सभी चिकित्सा पद्धतियाँ स्वयं पूर्णता को प्राप्त होती हैं, अपूर्णता तो केवल मानव में है। यही कारण है कि वह प्रत्येक चिकित्सा पद्धति में निरन्तर शोध करता रहता है”
के. के. शर्मा. ५० / ४१३, रजतपथ, मानसरोवर, जयपुर फोन : २७८४८७९