—दोहा—
समवसरण में भक्तियुत, तीर्थंकर के पास।
यक्ष यक्षिणी नित रहे, उन्हें बुलाऊँ आज।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
—चाल शेर—
श्री आदिनाथ के निकट जो भक्ति से रहें।
‘गोवदन’ यक्ष नाम जिनका सूरिवर कहें।।
जिन नाथ के शासन के देव आइये यहाँ।
निज यज्ञ भाग लीजिये सुख कीजिये यहाँ।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवस्य शासनदेव गोमुखयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
श्री अजितनाथ के निकट जो नित्य ही रहे।
शासनसुदेव ‘महायक्ष’ नाम श्रुत कहे।।जिन.।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथस्य शासनदेव महायक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
सम्भव जिनेश के समोसरण में नित रहे।
जिनपाद कमल भक्त ‘त्रिमुख’ नाम यक्ष है।।जिन.।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीसम्भवनाथस्य शासनदेव त्रिमुखयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
तीर्थेश अभीनंदन के पास में सदा।
प्रभुपाद कमलभक्ति ‘यक्षेश्वर’ करे मुदा।।
जिन नाथ के शासन के देव आइये वहाँ।
निज यज्ञ भाग लीजिये सुख कीजिये यहाँ।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथस्य शासनदेव यक्षेश्वरयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
तीर्थेश सुमतिनाथ समवसरण में सदा।
नित पास रहे ‘तुंबुरव’ सुभक्त शर्मदा।।जिन.।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथस्य शासनदेव तुंबुरवयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
श्रीपद्मनाथ पास भक्तिभाव से रहे।
‘कुसुम’ यक्षनाथ भक्त के विघन दहे।।जिन.।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीपद्मनाथस्य शासनदेव कुसुमयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
सुपार्श्वनाथ वरनंदि यक्ष नित नमें।
ये नाथ भक्त भव्य का रक्षक सदा बनें।।।जिन.।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथस्य शासनदेव वरनंदियक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
चंद्राप्रभू के पास ‘विजय’ यक्ष नित्य है।
जिन भक्तगणों के सभी विघ्नों को हरत है।।।।जिन.।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीचंद्रप्रभनाथस्य शासनदेव विजययक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
श्री पुष्पदंत भक्तिलीन ‘अजितयक्ष’ है।
प्रभु भक्त के समस्त कष्ट हरण दक्ष है।।जिन.।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तनाथस्य शासनदेव अजितयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
शीतल जिनेश समवसरण में इसदा रहे।
वो नाथ भक्ति लीन ‘ब्रह्मेश्वर’ सुयक्ष है।।
जिन नाथ के शासन के देव आइये वहाँ।
निज यज्ञ भाग लीजिये सुख कीजिये यहाँ।।१०।।
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथस्य शासनदेव ब्रह्मेश्वरयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
श्रेयांसनाथ पास में ‘कुमार यक्ष’ है।
तीर्थेश भक्त विपद् दूर करन दक्ष है।।जिन.।।११।।
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथस्य शासनदेव कुमारयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
श्रीवासुपूज्य पास में ‘षण्मुख’ सुयक्ष है।
जिन पूजकों के विघ्न दूर करन दक्ष है।।जिन.।।१२।।
ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्य्नााथस्य शासनदेव षण्मुखयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
—दोहा—
सतत यक्ष ‘पाताल’ है, विमलनाथ के पास।
यज्ञ भाग उनके लिये, अर्पूं रुचि से आज।।१३।।
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथस्य शासनदेव पातालयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
श्री अनंत जिन पास में, ‘किन्नर’ यक्ष वसंत।
यज्ञ भाग उनके लिए, अर्पण करूँ तुरंत।।१४।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथस्य शासनदेव किन्नरयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
धर्मनाथ का ‘िंकपुरुष’, शासन देव प्रसिद्ध।
जिन भक्तों के कार्य सब, करे शीघ्र ही सिद्ध।।१५।।
ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथस्य शासनदेव िंकपुरुषयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
शांतिनाथ के पास में, ‘गरुड़’ यक्ष निवसंत।
जिन भक्तों का भक्त है, करे विघन घन अंत।।१६।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथस्य शासनदेव गरुड़यक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
कुंथुनाथ के पास में, यक्ष रहे ‘गंधर्व’।
जिन भक्तों के प्रेम से पूरे वांछित सर्व।।१७।।
ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथस्य शासनदेव गंधर्वयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
अरहनाथ के निकट में, रहे ‘महेन्द्र’ सुयक्ष।
जिन पूजा के विघ्न को दूर करन में दक्ष।।१८।।
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथस्य शासनदेव महेन्द्रयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
मल्लिनाथ के पास में, ‘कुबेर’ यक्ष निवसंत।
निज पूजक के प्रेम से, करें उपद्रव शांत।।१९।।
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथस्य शासनदेव कुबेरयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
मुनिसुव्रत के पास में, ‘वरुण’ नाम के यक्ष।
जिनपद भक्तों के सतत, इष्ट सिद्धि में यक्ष।।२०।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथस्य शासनदेव वरुणयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
नमि जिनके सानिध्य में, विद्युत्प्रभ यक्षेन्द्र।
जिन शासन का भक्त ये, हरे भव्यजन खेद।।२१।।
ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथस्य शासनदेव विद्युत्प्रभयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
नेमिनाथ के पास में, ‘सर्वाण्हयक्ष।
भक्तों को सुख शांति दे, हरे परस्पर द्वंद।।२२।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथस्य शासनदेव सर्वाण्हयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
समवसरण में पार्श्व के यक्ष सदा निवसंत।
तिनहिं नाम ‘धरणेन्द्र’ है, रहे भक्त के संग।।२३।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेव धरणेन्द्रयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
महावीर जिन पास में, ‘गुह्यक’ यक्ष वसंत।
द्वितिय नाम ‘मातंग’ भी अर्घ चढ़ा पूजंत।।२४।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरस्वामिन: शासनदेव मातंगयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ, इदं जलादि अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
—पूर्णार्घ्य-गीता छंद—
तीर्थंकरों के पास रहते, सदा जिनवर भक्त हैं।
गोमुख१ प्रमुख ये यक्ष चौबिस, धर्म के अनुरक्त हैं।।
ये जैन शासन की सतत, रक्षा करें वृद्धी करें।
सम्यक्त्व धारी हैं स्वयं, सब भव्य संकट परिहरें।।
—दोहा—
महाकल्पतरु यज्ञ में, आवो शासनदेव।
यज्ञ भाग तुम अर्पिहूँ, करो सहाय सदैव।।१।।
ॐ ह्रीं चतुा\वशतितीर्थंकरशासनदेवगोमुखप्रमुखसर्वयक्षा अत्र आगच्छत! आगच्छत! इदं जलं गंधं अक्षतं पुष्पं चरुं दीपं धूपं फलं अर्घ्यं स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां इति स्वाहा।