(श्री गौतम स्वामी प्रणीत चैत्यभक्ति से उद्धृत)
अकृतानि कृतानि चाप्रमेय—द्युतिमन्ति द्युतिमत्सु मंदिरेषु।
मनुजामरपूजितानि वंदे प्रतिबिम्बानि जगत्त्रये जिनानाम्।।१।।
द्युतिमंडल भासुरांगयष्टी:, प्रतिमा अप्रतिमा जिनोत्तमानाम्।
भुवनेषु विभूतये प्रवृत्ता, वपुषा प्राञ्जलिरस्मि वन्दमान:।२।।
विगतायुध विक्रियाविभूषा:, प्रकृतिस्था: कृतिनां जिनेश्वराणाम्।
प्रतिमा: प्रतिमागृहेषु कांत्या—प्रतिमा कल्मषशान्तयेऽभिवन्दे।।३।।
कथयन्ति कषायमुक्ति लक्ष्मीं, परया शान्ततया भवान्तकानाम्।
प्रणमाम्यभिरूपमूर्तिमन्ति, प्रतिरूपाणि विशुद्धये जिनानाम्।।४।।
—हिंदी पद्यानुवाद—चौबोलछंद—
द्युतिकर जिनगृह में अकृत्रिम, कृत्रिम अप्रमेय द्युतिमान।
नर सुर पूजित भुवनत्रय के, सब जिनिंबब नमूँ गुणखान।।१।।
द्युतिमंडल भासुर तनु शोभित, जिनवर प्रतिमा अप्रतिम हैं।
जग में वैभव हेतु उन्हें, वंदूं अंजलिकर शिर नत मैं।।२।।
आयुध विक्रिय भूषा विरहित, जिनगृह में प्रतिमा प्राकृत।
कांती से अनुपम हैं कल्मष, शांति हेतु मैं नमूँ सतत।।३।।
परम शांति से कषाय मुक्ती, को कहती मनहर अभिरूप।
भव के अंतक जिन की प्रतिमा, प्रणमूँ मन विशुद्धि के हेतु।।४।।
—अनुष्टुप्—
जंबूवृक्षादि शाखासु, परिवारद्रुमेष्वपि।
जिनालया जिनार्चाश्च, तांस्ता नौमि शिवाप्तये।।५।।
जंबू—शाल्मलि आदि दश तरु, शाखाओं पर दश मंदिर।
उन परिवार तरू पर भी, जिनगृह प्रतिमा वंदूं शिवकर।।५।।
।।अथ जिनयज्ञप्रतिज्ञापनाय मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।