रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
ॐ जय सिद्धायतनं, स्वामी जय सिद्धायतनं।
अकृत्रिम वृक्षों पर राजें, जिनमंदिर अनुपम।।
ॐ जय.।
तीनलोक के मध्यलोक में, द्वीप असंख्य कहे। स्वामी द्वीप…..
उनमें ढाईद्वीपों में ही, मानव रहते हैं।।
ॐ जय.।।१।।
उनकी अकृत्रिम रचना में, हैं दशवृक्ष बने। स्वामी हैं…….
जम्बू-शाल्मलि आदिक, में जिनमंदिर हैं।।
ॐ जय.।।२।।
यह अकृत्रिम वृक्ष जिनालय, का विधान सुन्दर।।स्वामी है विधान….
गणिनी ज्ञानमती माताजी, की यह कृति मनहर।।
ॐ जय.।।३।।
शाश्वत तरु के जिनभवनों की, जिनप्रतिमा प्यारी। स्वामी जिनप्रतिमा……..
करो ‘‘चन्दनामति’’ प्रभु आरति, भविजन सुखकारी।।
ॐ जय.।।४।।