रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज—कभी कुण्डलपुर जाना है……
प्रभू की पूजन करना है, प्रभू की भक्ति करना है,
निजातम शक्ती भरना है, मुझे मुक्तिश्री वरना है।।
प्रभु भक्ती गंगा में अवगाहन करना है।
सिद्धों के गुण की सबको, मिलकर अर्चा करना है। प्रभू की पूजा……।। टेक.।।
जनम-जनम के शुभ कर्मों का, फल यह सिद्ध अवस्था।
सिद्धशिला पर शाश्वत राजें, यही अनादि व्यवस्था-यही अनादि व्यवस्था।
उन सिद्धों की प्रतिमा, का वन्दन करना है।
जिनके दर्शन वन्दन से, भवसागर तरना है।।
प्रभू की पूजा करना है, प्रभू की भक्ती करना है,
निजातम शक्ती भरना है, मुझे मुक्तिश्री वरना है……।।१।।
कितनी सतियों ने प्रभु के, दर्शन से पाप नशाए।
तेरे अतिशय से जलती, अग्नी भी जल बन जाए। अग्नी भी……
सीता चन्दनबाला का, इतिहास बताता है।
भक्तीरस तो माँ ज्ञानमती की, जीवन गाथा है।।
प्रभू की पूजा करना है, प्रभू की भक्ती करना है,
निजातम शक्ती भरना है, मुझे मुक्तिश्री वरना है……।।२।।
जिसने सिद्ध प्रभू को, अपने हृदय कमल में ध्याया।
वीतराग परमातम पद में, लीन परम सुख पाया। लीन परम……
निज ध्यान की धारा में, अवगाहन करना है।
‘चंदनामती’ पहले तो, प्रभु भक्ती करना है।।
प्रभू की पूजा करना है, प्रभू की भक्ती करना है,
निजातम शक्ती भरना है, मुझे मुक्तिश्री वरना है……।।३।।