तर्ज—सुहानी जैनवाणी……
दिगम्बर प्राकृतिक मुद्रा, विरागी की निशानी है।
कमण्डलु पिच्छिधारी नग्न मुनिवर की कहानी है।। टेक.।।
दिशाएँ ही बनीं अम्बर न तन पर वस्त्र ये डालें।
महाव्रत पाँच समिति और गुप्ती तीन ये पालें।।
त्रयोदश विधि चरित पालन करें जिनवर की वाणी है।।
कमण्डलु……।।१।।
बिना बोले ही इनकी शान्त छवि ऐसा बताती है।
मुक्ति कन्यावरण में यह ही मुद्रा काम आती है।।
मोक्षपथ के पथिकजन को यही वाणी सुनानी है।
कमण्डलु……।।२।।
यदि मुनिव्रत न पल सकता तो श्रावक धर्म मत भूलो।
देव-गुरु-शास्त्र की श्रद्धा परम कर्तव्य मत भूलो।।
बने मति ‘चन्दना’ ऐसी यही ऋषियों की वाणी है।।
कमण्डलु……।।३।।
तर्ज—धरती का…….
सन्तों का तुम्हें नमन है, युग पुरुषों का वन्दन है।
प्रथमाचार्य शांतिसागर को, सौ सौ बार नमन है।।
सौ सौ बार नमन है-२।। टेक.।।
आदिनाथ से महावीर तक जिनचर्या बतलाई।
कुन्दकुन्द ने उसी तरह की मुनिचर्या अपनाई।।
शांतिसिन्धु भी उसी श्रृंखला के ही लघुनन्दन हैं।
सौ सौ बार नमन है………।।१।।
दक्षिण भारत वसुन्धरा का है इतिहास गवाही।
भोजग्राम माँ सत्यवती का पुत्र मुक्तिपथ राही।।
प्रथम बने आचार्यप्रवर युगप्रमुख तुम्हें वन्दन है।
सौ सौ बार नमन है………।।२।।
लुप्तप्राय यतिचर्या को जीवन्त किया था तुमने।
नग्न दिगम्बर मुद्रा को श्रुतवंत किया था तुमने।।
इसीलिए ‘‘चन्दनामती’’ जग करता तव वन्दन है।
सौ सौ बार नमन हैै………।।३।।