श्री गौतमस्वामी प्रणीत प्रतिक्रमण पाठ में जो ‘‘नव पदार्थ’’, ‘‘द्वादशतप’’, ‘‘बंध के कारण’’, ‘‘श्रावक के बारह व्रत’’ व पच्चीस भावनाएँ वर्णित हैं। इन्हीं के अनुसार षट्खण्डागम ग्रंथ व श्री कुंदकुंददेव द्वारा विरचित समयसार, प्रवचनसार, मूलाचार आदि ग्रंथों में समानता है। आगे के ‘‘तत्त्वार्थसूत्र’’ आदि गं्रंथों से अन्तर आया है। उसे यहाँ दिखाते हैं—