रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज—सावन का महीना…..
गौतम गणधर वाणी, है द्वादशांग का सार।
गौतम गणधर वर्ष मनाकर, बोलो जय जयकार।।टेक.।।
वीर प्रभू के शिष्य प्रथम, ये गणधर प्रमुख कहाये हैं।
नग्न दिगम्बर मुनि बनकर, मनपर्यय ज्ञान को पाये हैं।।
प्रभु की दिव्यध्वनि सुन, पा गये निजातम सार।
गौतम गणधर वर्ष मनाकर, बोलो जय जयकार।।१।।
राजगृही नगरी में विपुलाचल पर्वत था धन्य हुआ।
श्रावण कृष्णा एकम को जहाँ समवसरण जिनवर का बना।।
राजा श्रेणिक ने तब, प्रभु भक्ती करी अपार।
गौतम गणधर वर्ष मनाकर, बोलो जय जयकार।।२।।
गणिनी ज्ञानमती माताजी की सबको प्रेरणा मिली।
गणधर वाणी पढ़ने की ‘‘चंदनामती’’ देशना मिली।।
इसीलिए यह उत्सव, आया है पहली बार।
गौतम गणधर वर्ष मनाकर बोलो जय जयकार।।३।।