नमोऽस्तु प्रत्याख्यानप्रतिष्ठापनक्रियायां……सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं।
(२५ उच्छ्वास में ९ बार महामंत्र का जाप्य)
यदि अगले दिन का उपवास लेना है तो-
नमोऽस्तु उपवासप्रतिष्ठापनक्रियायां……सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं।
(९ जाप्य)
पुन: ‘‘तवसिद्धे णयसिद्धे’’ इत्यादि लघु सिद्धभक्ति पढ़ें।
(पुनः ‘‘अरहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु पंचगुरु साक्षी से मेरा अगले दिन आहार ग्रहण करने तक चतुर्विध आहार का त्याग है।’’ ऐसा संकल्प करें।)
‘‘प्रत्याख्यान प्रतिष्ठापन’’ का अर्थ है कि मैं अब चतुर्विध आहार के प्रत्याख्यान- त्याग को प्रतिष्ठापित-स्वीकार करता हूँ-ग्रहण करता हूँ।
पुनः श्रावक के घर से निकलकर साधु अपनी वसतिका में आकर आचार्य के समीप गवासन से बैठकर प्रत्याख्यान ग्रहण करें। सो ही कहा है-
‘‘सूरौ-आचार्यसमीपे पुनर्ग्राह्यं प्रतिष्ठाप्यं साधुना। किं तत् ? प्रत्याख्या—नादि। कया? लघ्व्या सिद्धभक्त्या……….लघु योगिभक्त्यधिकया तथा वंद्यः साधुना? स सूरिः। कया? सूरिभक्त्या। किं विशिष्टया? लघ्व्या।’’
पुनःआचार्य के पास में बैठकर साधु लघु सिद्धभक्ति और लघु योगिभक्ति पढ़कर प्रत्याख्यान या उपवास ग्रहण करें अनंतर लघु आचार्यभक्ति पढ़कर आचार्य की वंदना करें।
इसके प्रयोग की विधि निम्न प्रकार है-