‘‘सूर्योदय से तीन घड़ी बाद और सूर्यास्त होने के तीन घड़ी पहले तक आहार का समय है। ‘‘आहार काल में भी आहार का समय उत्कृष्ट एक मुहूर्त (४८ मिनट) मध्यम दो मुहूर्त और जघन्य तीन मुहूर्त प्रमाण तक है३।’’ मध्यान्ह काल में दो घड़ी बाकी रहने पर प्रयत्नपूर्वक स्वाध्याय समाप्त कर, देववंदना करके वे मुनि भिक्षा का समय जानकर पिच्छी, कमण्डलु लेकर शरीर की स्थिति हेतु आहारार्थ अपने आश्रम से निकलते हैं। मार्ग में संसार, शरीर, भोगों से विरक्ति का चिंतन करते हुए ईर्यापथ शुद्धि से धीरे-धीरे गमन करते हैंं। वे किसी से बात न करते हुए मौनपूर्वक चलते हैं। श्रावक द्वारा पड़गाहन हो जाने पर वे खड़े हो जाते हैं तब श्रावक उन्हें अपने घर ले जाकर नवधाभक्ति करता है। अनंतर मुनि अपने पैरों में चार अंगुल का अंतर रखकर खड़े होकर अपने दोनों करपात्रों को छिद्र रहित बना लेते हैं। अनंतर सिद्धभक्ति करके क्षुधा वेदना को दूर करने के लिए वे प्रासुक आहार ग्रहण करते हैं।