तत्तो चउत्थउववणभूमीए असोयसत्तवण्णवणं ।
चंपयचूदवणाणं पुव्वादिदिसासु राजंति।।८०३।।
विविहवणसंडमंडणविविहणईपुलिणकीडणगिरीहिं।
विविहवरवाविआहिं उववणभूमीउ रम्माओ।।८०४।।
एक्केक्काए उववणखिदिए तरवो यसोयसत्तदला।
चंपयचूदा सुंदरभूदा चत्तारि-चत्तारि।।८०५।।
चामरपहुदिजुदाणं चेत्ततरूणं हवंति उच्छेहा।
णियणियजिणउदएहिं बारसगुणिदेहिं सारिच्छा।।८०६।।
६०००।५४००।४८००।४२००।३६००।३०००।२४००।१८००।१२००।१०८०। ९६०। ८४०। ७२०।
६००। ५४०। ४८०। ४२०। ३६०। ३००। २४०। १८०। १२०। २७ । २१।
मणिमयजिणपडिमाओ अट्ठमहापाडिहेरसंजुत्ता।
एक्केक्कस्ंिस चेत्तद्दुमम्मि चत्तारि चत्तारि।।८०७।।
उववणवाविजलेणं सित्ता पेच्छंति एक्कभवजाइं।
तस्स णिरिक्खणमेत्ते सत्तभवातीदभाविजादीओ।।८०८।।
सालत्तयपरिअरिया पीढत्तयउवरि माणथंभा य।
चत्तारो चत्तारो एक्केक्के चेत्तरुक्खम्मि।।८०९।।
चत्तारो चत्तारो पुव्वादिसु महा णमेरुमंदारा।
संताणपारिजादा सिद्धत्था कप्पभूमीसुं।।८३३।।
सव्वे सिद्धत्थतरू तिप्पायारा तिमेहलसिरत्था।
एक्केक्कस्स य तरुणो मूले चत्तारि चत्तारि।।८३४।।
सिद्धाणं पडिमाओ विचित्तपीढाओ रयणमइयाओ।
वंदणमेत्तणिवारियदुरंतसंसारभीदीओ ।।८३५।।
सालत्तयपरिवेढियतिपीढउवरम्मि माणथंभा य।
चत्तारो चत्तारो सिद्धत्थतरुम्मि एक्केक्के।।८३६।।
कल्पतरू सिद्धत्था कीडणसालाओ तासु पासादा।
णियणियजिणउदयेहिं बारसगुणिदेहिं समउदया।।८३७।।
६०००। ५४००। ४८००। ४२००। ३६००। ३०००। २४००। १८००। १२००। १०८०।
९६०। ८४०। ७२०। ६००। ५४०। ४८०। ४२०। ३६०। ३००। २४०।
१८०। १२०। २७। २१।
इसके आगे चौथी उपवन भूमि होती है, जिसमें पूर्वादिक दिशाओं के क्रम से अशोकवन, सप्तपर्णवन, चम्पकवन और आम्रवन ये चार वन शोभायमान होते हैं।।८०३।। ये उपवनभूमियाँ विविध प्रकार के वनसमूहों से मण्डित, विविध नदियों के पुलिन और क्रीडापर्वतों से तथा अनेक प्रकार की उत्तम वापिकाओं से रमणीय होती हैं।।८०४।। एक-एक उपवनभूमि में अशोक, सप्तच्छद, चम्पक और आम्र ये चार-चार सुन्दर वृक्ष होते हैं।।८०५।। चामरादि (चँवर) से सहित चैत्यवृक्षों की ऊँचाई बारह से गुणित अपने-अपने तीर्थंकरों की ऊँचाई के सदृश होती है।।८०६।।
एक-एक चैत्यवृक्ष के आश्रित आठ महाप्रातिहार्यों से संयुक्त चार-चार मणिमय जिनप्रतिमाएँ होती हैं।।८०७।। उपवन की वापिकाओं के जल से अभिषिक्त जनसमूह एक भवजाति को देखते हैं और उसके निरीक्षण मात्र के होने पर अर्थात् वापी के जल में निरीक्षण करने पर सात अतीत व अनागत भवजातियों को देखते हैं।।८०८।। एक-एक चैत्यवृक्ष के आश्रित तीन कोटों से वेष्टित व तीन पीठों के ऊपर चार-चार मानस्तम्भ होते हैं।।८०९।। कल्पभूमियों के भीतर पूर्वादिक दिशाओं में नमेरु, मंदार, संतानक और पारिजात, ये चार-चार महान् सिद्धार्थ वृक्ष होते हैं।। ८३३।। ये सब सिद्धार्थ वृक्ष तीन कोटों से युक्त और तीन मेखलाओं के ऊपर स्थित होते हैं। इनमें से प्रत्येक वृक्ष के मूल भाग में विचित्र पीठों से संयुक्त और वन्दना करने मात्र से ही दुरन्त संसार के भय को नष्ट करने वाली ऐसी रत्नमय चार—चार सिद्धों की प्रतिमाएँ होती हैं।। ८३४-८३५।। एक-एक सिद्धार्थवृक्ष के आश्रित, तीन कोटों से वेष्टित पीठत्रय के ऊपर चार-चार मानस्तम्भ होते हैं।।८३६।। कल्पभूमियों में स्थित सिद्धार्थ कल्पवृक्ष, क्रीडनशालाएँ और प्रासाद बारह से गुणित अपने-अपने जिनेन्द्र की ऊँचाई के समान ऊँचाई वाले होते हैं।। ८३७।।