—चौबोल छंद—
श्री शांति कुंथु अरनाथ प्रभू ने, जन्म लिया इस धरती पर।
यह हस्तिनागपुरि इंद्रवद्य, रत्नों की वृष्टि हुई यहाँ पर।।
यहाँ जम्बूद्वीप बना सुंदर, जिनमंदिर हैं अनेक सुखप्रद।
मेरा यहाँ वर्षायोग काल, स्वाध्याय ध्यान से है सार्थक।।१।।
इस युग के चारित्र चक्री श्री, आचार्य शांतिसागर गुरुवर।
बीसवीं सदी के प्रथमसूरि, इन पट्टाचार्य वीरसागर।।
ये दीक्षा गुरुवर मेरे हैं, मुझ नाम रखा था ‘ज्ञानमती’।
इनके प्रसाद से ग्रंथों की, रचना कर हुई अन्वर्थमती।।२।।
यह अकृत्रिम चैत्यवृक्ष, संकलित शास्त्र जिन भक्तीवश।
यह रोग शोक दारिद्र्य दु:ख, संकट हरने वाला संतत।।
तब तक यह गणिनी ज्ञानमती, कृति चैत्यवृक्ष जयशील रहे।।
जब तक चौबीसों जिनवर का, जिनशासन जग में मान्य रहे।।३।।