-नरेन्द्र छंद-
प्रभु मध्यम ग्रैवेयक तजकर, वाराणसि में आये।
सुप्रतिष्ठ पितु माता पृथ्वी-षेणा गर्भ में आये।।
भादों सुदि छठ तिथी श्रेष्ठ में, इन्द्र महोत्सव कीना।
गर्भकल्याणक पूजा करते, हमने समकित लीना।।१।।
ॐ ह्रीं भाद्रपदशुक्लाषष्ठ्यां श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकरगर्भकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ज्येष्ठ सुदी बारस में जन्मे, सुरपति आसन कंपे।
देवगृहों में सबविध बाजे, स्वयं स्वयं बज उठते।।
जन्म न्हवन उत्सव विधिपूर्वक, किया इन्द्र सुरगण ने।
जन्मकल्याणक पूजा करते, परमानंद हो क्षण में।।२।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लाद्वादश्यां श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकरजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋतु परिवर्तन देख विरक्ती, ज्येष्ठ सुदी बारस में।
मनोगती पालकि सुर लाये, प्रभु बैठे उस क्षण में।।
इन्द्र सहेतुक वन में पहुँचे, प्रभु ने केश उखाड़े।
नमः सिद्ध कह दीक्षा धारी, पूजत कर्म पछाड़े।।३।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लाद्वादश्यां श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकरदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
फाल्गुन वदि छठ सायं प्रभु ने, घाति विनाश किया था।
बाग सहेतुक तरु शिरीष तल, केवलज्ञान हुआ था।।
इन्द्र सातविध सुरसेना सह, आये समवसरण में।
ज्ञान कल्याणक पूजा करते, ज्ञान ज्योति हो क्षण में।।४।।
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णाषष्ठ्यां श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकरकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
फाल्गुन वदि सप्तमी प्रभाते, गिरि सम्मेद शिखर से।
मुक्तिनगर में वास किया था, एक हजार मुनी ले।।
काल अनंतानंत वहीं पे, सुस्थिर हो तिष्ठेंगे।
जिनसुपार्श्व की पूजा करते, कर्ममेघ विघटेंगे।।५।।
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णासप्तम्यां श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकरमोक्षकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य (दोहा)-
श्री सुपार्श्व तीर्थेश के, चरण कमल जगवंद्य।
पूर्ण अर्घ्य से नित जजूँ, सुख हो परमानंद।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकरपंचकल्याणकाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि: