-दोहा-
तीर्थंकर चक्री मदन, त्रयपद धारी ईश।
शांतिनाथ भगवान को, नमूँ-नमूँ नत शीश।।१।।
कुंथुनाथ-अरनाथ प्रभु, तीन-तीन पद नाथ।
इनके श्री चरणाब्ज को, नमूँ नमाकर माथ।।२।।
वर्तमान में वीर प्रभु, शासनपति भगवान।
इनके शासन में हुये, बहु आचार्य महान।।३।।
मूल-संघ में कुंदकुंद गुरु, अन्वय सरस्वति गच्छ।
बलात्कार गण में हुए , सूरि नमूँ मन स्वच्छ।।४।।
सदी बीसवीं के प्रथम, गुरू दिगंबराचार्य।
चरित चक्रवर्ती श्री, शांतिसागराचार्य।।५।।
इनके शिष्योत्तम श्री, वीरसागराचार्य।
पहले पट्टाचार्य गुरु, नमूँ भक्ति उर धार्य।।६।।
मैंने गणिनी ज्ञानमती, किया विधान प्रपूर्ण।
सुपार्श्वनाथ विधान यह, भरे सौख्य संपूर्ण।।७।।
जब तक जम्बूद्वीप की, कीर्ति जगत में व्याप्त।
तब तक ‘‘ज्ञानमती’’ कृती, रहे विश्व विख्यात।।८।।
इति शं भूयात्।