-दोहा-
तीर्थंकर अरनाथ! तुम, चक्ररत्न के ईश।
ध्यान चक्र से मृत्यु को, मारा त्रिभुवन ईश।।१।।
आह्वानन विधि से यहाँ, मैं पूजूँ धर प्रीत।
रोग शोक दु:ख नाशकर, लहूँ स्वात्म नवनीत।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्री अरनाथतीर्थंकर! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्री अरनाथतीर्थंकर! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टक-अडिल्ल छंद-
सिंधुनदी को नीर, स्वर्णझारी भरूँ।
मिले भवोदधितीर, तीन धारा करूँ।।
श्री अरनाथ जिनेन्द्र, जजूँ मन लाय के।
समतारस पीयूष, चखूँ तुम पाय के।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकराय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
केशर चंदन घिसा, कटोरी में भरा।
रागदाह हरने को, चर्चंू सुखकरा।।श्री अर.।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकराय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
चंद्रकिरण सम उज्ज्वल, अक्षत ले लिये।
तुम आगे मैं पुंज, धरूँ सुख के लिए।।श्री अर.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकराय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
चंपा जुही गुलाब, पुष्प सुरभित लिये।
भव विजयी के चरणों, में अर्पण किये।।श्री अर.।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकराय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
मालपुआ रसगुल्ला, बहु मिष्टान्न ले।
क्षुधारोग हर हेतु, चढ़ाऊँ नित भले।।
श्री अरनाथ जिनेन्द्र, जजूँ मन लाय के।
समतारस पीयूष, चखूँ तुम पाय के।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकराय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृत दीपक ले करूँ, आरती नाथ की।
मोहध्वांत हर लहूँ, भारती ज्ञान की।।श्री अर.।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकराय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
अगर तगर वर धूप, अग्नि में खेवते।
कर्म दूर हो नाथ! चरण युग सेवते।।श्री अर.।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकराय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल पूग बदाम, आम केला लिये।
शिवफल हेतू तुम, पद में अर्पण किये।।श्री अर.।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकराय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल चंदन अक्षत, आदिक वसु द्रव्य ले।
अर्घ चढ़ाऊँ ‘‘ज्ञानमती’’ निधियाँ मिलें।।श्री अर.।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकराय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-सोरठा-
अर जिन चरण सरोज, शांतीधारा मैं करूँ।
चउसंघ शांती हेत, शांतीधारा जगत में।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
कमल केतकी पुष्प, सुरभित निजकर से चुने।
श्री जिनवर पदपद्म, पुष्पांजलि अर्पण करूँ।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
-सखी छंद-
फाल्गुन कृष्णा तृतिया में, प्रभु गर्भ निवास किया तें।
सुरपति ने उत्सव कीना, हम पूजें भवदुखहीना।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं फाल्गुनकृष्णातृतीयायां श्री अरनाथतीर्थंकरगर्भकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मगसिर शुक्ला चौदस के, प्रभुजन्म लिया सुर हर्षे।
मेरू पर न्हवन हुआ है, इन्द्रों ने नृत्य किया है।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं मार्गशीर्षशुक्लाचतुर्दश्यां श्री अरनाथतीर्थंकरजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मगसिर सुदी दशमी तिथि में, दीक्षा धारी प्रभु वन में।
इंद्रों से पूजा पाई, हम पूजें मन हरषाई।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं मार्गशीर्षशुक्लादशम्यां श्री अरनाथतीर्थंकरदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कार्तिक सुदि बारस तिथि में, केवल रवि प्रकटा निज में।
बारह गण को उपदेशा, हम पूजें भक्ति समेता।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं कार्तिकशुक्लाद्वादश्यां श्री अरनाथतीर्थंकरकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपमीति स्वाहा।
शुभ चैत्र अमावस्या में, मुक्तिश्री परणी प्रभु ने।
इन्द्रोें ने की प्रभु अर्चा, पूजन से निजसुख मिलता।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं चैत्रकृष्णामावस्यायां श्री अरनाथतीर्थंकरमोक्षकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य (दोहा)-
श्री अरनाथ की वंदना, करे कर्मअरि नाश।
अर्घ्य चढ़ाकर पूजते, मिले सर्वगुण राशि।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरनाथतीर्थंकरपंचकल्याणकाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।