श्री शांति कुंथु अरनाथ प्रभू ने, जन्म लिया इस धरती पर।
यह हस्तिनागपुरि इंद्रवंद्य, रत्नों की वृष्टि हुई यहाँ पर।।
यहाँ जंबूद्वीप बना सुंदर, जिनमंदिर हैं अनेक सुखप्रद।
मेरा यहाँ वर्षायोग काल, स्वाध्याय ध्यान से है सार्थक।।१।।
श्री नेमिनाथ का यह विधान, रचना तीर्थंकर भक्तीवश।
यह रोग शोक दारिद्र्य, दु:ख संकट हरने वाला संतत।।
वीराब्द पचीस सौ उनतालिस, आश्विन शुक्ला प्रतिपद् तिथि में।
यह विधान रचना की मैंने, होवे मंगलकर सब जग में।।२।।
इस युग के चारित्र चक्री श्री, आचार्य शांतिसागर गुरुवर।
बीसवीं सदी के प्रथमसूरि, इन पट्टाचार्य वीरसागर।।
ये दीक्षा गुरुवर मेरे हैं, मुझ नाम रखा था ‘ज्ञानमती’।
इनके प्रसाद से ग्रंथों की, रचना कर हुई अन्वर्थमती।।३।।
श्री नेमिनाथ निर्वाणभूमि, गिरनार क्षेत्र पर टोंक बनें।
पाँचवी टोंक पर नेमिनाथ के, चरण इंद्र कृत हैं माने।।
सुरपति ने प्रभु के चरण वहाँ, उत्कीर्ण किये थे भक्ती से।
यह कथन आज भी है प्रसिद्ध, ग्रंथों में लिखा आचार्यों ने ।।४।।
उन चरणों की पूजा-भक्ती, जिनधर्मी नितप्रति किया करें।
नेमीप्रभु शासन यक्ष-यक्षिणी, नित प्रति रक्षा किया करें।।
जब तक निर्वाणभूमि गिरनार, क्षेत्र जग में जिनतीर्थ रहे।
तब तक यह गणिनी ज्ञानमती, कृति श्री विधान जयशील रहे।।५।।