-दोहा-
वृषभदेव से वीर तक, श्री चौबीस जिनेश।
नमूँ नमूँ उनको सदा, मिटे सकल भव क्लेश।।१।।
मूल संघ आचार्य श्री, कुंदकुंद गुरुदेव।
इनके अन्वय में हुआ, नंदिसंघ दु:ख छेव।।२।।
बलात्कार गण भारती, गच्छ प्रसिद्ध महान।
इसमें सूरीश्वर हुए शांतिसिंधु गुणखान।।३।।
वीरसागराचार्य थे, उनके पट्टाधीश।
आर्यिका दीक्षा दिया, किया कृतार्थ मुनीश।।४।।
ik,शांति कुंथु अरनाथ की, जन्म भूमि जगतीर्थ।
कुरुजांगल शुभ देश में, हस्तिनागपुर तीर्थ।।५।।
पच्चीस सौ चालिस कहा, वीर अब्द शुभ मान।
माघ शुक्ल पंचमि तिथी, रचना पूरण जान।।६।।
जो भव्य नित पूजा करें, पढ़ें सुनें एकाग्र।
इंद्र चक्रि सुख भोग के, वे पहुँचे लोकाग्र।।७।।
यावत् जग में मेरु हैं, महावीर जिनधर्म।
तावत् गणिनी ज्ञानमती, कृति देवे शिववर्त्म।।८।।
।इति श्रीमहावीरस्वामिविधानं संपूर्णम्।
।।इति शं भूयात्।।