तर्ज—शायद प्रभु की पूजा का खयाल …………..
पंचमकाल में पहला स्वर्णिम अवसर आया है,
विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा हमने पाया है।।टेक.।।
इक सौ आठ है फुट की प्रभुवर ऋषभदेव की प्रतिमा।
है आश्चर्य इस धरती का, अनुपम है इसकी गरिमा।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माताजी ने बताया है।
विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा हमने पाया है।।१।।
कर्मठता की मूरत हैं, स्वामी रवीन्द्रकीर्ती जी।
जन जन के संग करते हैं, माता की इच्छा पूर्ती।
हर जैनी ने इस निर्माण में द्रव्य लगाया है।
विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा हमने पाया है।।२।।
हम सबके धन धन्य नयन हैं, इस निर्माण को लखकर।
धन्य धरा अम्बर भी धन्य जिनधर्म ध्वजा फहराकर।।
चलो ‘‘चंदनामती’’ प्रभू ने सबको बुलाया है।
विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा हमने पाया है।।३।।