तर्ज—ए री छोरी बांगड़ वाली…………..
सबसे ऊँची ऋषभदेव की, प्रतिमा जहाँ बनाया है,
उस मांगीतुंगी तीरथ पर, अतिशय देखो छाया है……..२।।टेक.।।
इक अखण्ड पाषाण में सबसे, ऊँची प्रतिमा प्रगट हुई।
ऋषभदेव भगवान की इक सौ-अठ फुट मूरति राज रही।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमति माता ने अतिशय प्रगटाया है….२।।उस मांगीतुंंगी…।।१।।
दिव्यशक्ति सम माता ने, यह दिव्य प्रेरणा दी सबको।
भक्तों ने निज धन को लगाकर, पूर्ण किया उनके प्रण को।।
कर्मयोगी स्वामी जी ने अपना कर्तव्य निभाया है…२।।उस मांगीतुंगी…..।।२।।
महापंचकल्याणक एवं महाकुंभ उत्सव आया।
प्रथम महा मस्तकाभिषेक का पुण्य योग अवसर पाया।
हम सबने ‘‘चन्दनामती’’ अपना सौभाग्य सराहा है……२।।उस मांगीतुंगी…।।३।।