ज्ञानमती माता आईं मांगीतुंगी तीर्थ में।
मानो माँ ब्राह्मी आईं पिता के समीप में।।टेक.।।
सन् उन्निस सौ छियानवे में, मांगीतुंगी आईं मात ये।
ऋषभदेव की मूर्ति प्रेरणा, दी माता ने जगी चेतना।।
उन्हीं जिनवर के निकट आई मात तीर्थ पे।
मानो माँ ब्राह्मी आईं पिता के समीप में।।ज्ञानमती.।।१।।
प्रतिमा बन अब पूर्ण हुई है, दुनिया में प्रभु जय गूंज रही है।
पहला महोत्सव उसका आया, स्वर्ग के सदृश आनंद छाया।।
उसी उत्सव के लिए आईं मात तीर्थ पे।
मानो माँ ब्राह्मी आईं पिता के समीप में।।२।।
रोम रोम पुलकित है माँ का, खुशियों की है उमड़ी सरिता।
दुनिया को वरदान मिल गया, जिनशासन उद्यान खिल गया।।
धन्य हुई ‘‘चन्दना’’ भी साथ आके तीर्थ पे।
मानो माँ ब्राह्मी आईं पिता के समीप में।।३।।
संघ सहित मंगल विहार में, संघपति हैं महाराष्ट्र के।
श्री प्रमोद जी और सुनीता, इनकी प्यारी हैं दो कन्या।।
भक्ति करके ले आए गुरुमाँ को तीर्थ पे।
मानो माँ ब्राह्मी आईं पिता के समीप में।।४।।