तर्ज-देवा हो देवा…..
नम: ऋषभदेवाय, धर्मतीर्थ प्रवर्तिने।
सर्वा विद्या कलायस्मादाविर्भूता महीतले।।
जय जय ऋषभदेव, जिनवर ऋषभदेव, तुमसे बढ़कर कौन।
स्वामी तुमसे बढ़कर कौन-२
सारे जगत में मरुदेवी माता से है बढ़कर कौन
माता से है बढ़कर कौन।
जय जय ऋषभदेव……..।।१।।
सोने जैसी काया तुम्हारी, महिमा बड़ी तीर्थंकर की-२। प्रभु…
युग की आदि में जनमे, धन्य अयोध्या की धरती-२। प्रभु…..
हो……धन्य अयोध्या की धरती
आदिब्रह्मा सूर्या, केवलज्ञानी सूर्या…..
जय जय ऋषभदेव……..।।२।।
पंचकल्याणक के स्वामी हो, मेरा भी कल्याण कर दो-२। प्रभु……..
इच्छाएं पूरी करते हो सबकी, मेरा भी भण्डार भर दो-२। प्रभु………
हो……मेरा भी भण्डार भर दो…
आदिब्रह्मा सूर्या, केवलज्ञानी सूर्या……
जय जय ऋषभदेव……..।।३।।
संसार की भारी भीड़ में मैंने, मुश्किल से पाया है तुमको-२। प्रभु…..
अब ‘‘चन्दनामति’’ आशीष दे दो, छोडूँ कभी ना तुम को-२
हो……..छोड़ूँ कभी ना तुमको
आदिब्रह्मा सूर्या, केवलज्ञानी सूर्या…..
जय जय ऋषभदेव……..।।४।।
सबसे बड़ी तेरी मूर्ति प्रभुवर, ऋषभगिरि मांगीतुंगी में है-२। प्रभु……
दर्शन करो तो लगता है मानो, सारे सुख ही इसमें हैं-२। प्रभु….
हो……..मानो सब सुख इसमें हैं…..
आदिब्रह्मा सूर्या……..केवलज्ञानी सूर्या
जय जय ऋषभदेव……..।।४।।