तर्ज-आ जाओ पंचपरमेष्ठी मेरे मकान में……..
मांगीतुंगी में ऋषभगिरि, पर्वत महान है।
जहाँ सबसे ऊँचे ऋषभदेव, प्रगटे भगवान हैं।।टेक.।।
प्रभु की जयकारा सुनकर, स्वर्ग से इन्द्र आ गये…हाँ इन्द्र आ गये।
चारों प्रकार के देव-देवियाँ मिलकर आ गये..हाँ मिलकर आ गये।।
सौ इन्द्रों से वन्दित ये प्रभु, मेरे भगवान हैं।
जहाँ सबसे ऊँचे ऋषभदेव, प्रगटे भगवान हैं।। मांगीतुंगी…..।।१।।
प्रभु की जय सुन दिल्ली हरियाणा के, भक्त आ गये..हाँ भक्त आ गये।
उत्तराखण्ड हरिद्वार से सौधर्म इन्द्र आ गये…..हाँ इन्द्र आ गये।।
बुन्देलखंड और छत्तिसगढ़ करता प्रणाम है।
जहाँ सबसे ऊँचे ऋषभदेव, प्रगटे भगवान हैं।। मांगीतुंगी…..।।२।।
प्रभु की जय सुन एम.पी. व मालवा के भक्त आ गये..हाँ भक्त आ गए।
राजस्थान व मेवाड़ के भी, भक्त आ गये…हाँ इन्द्र आ गये।।
गुजरात उड़ीसा महाराष्ट्र करता प्रणाम है।
जहाँ सबसे ऊँचे ऋषभदेव, प्रगटे भगवान हैं।। मांगीतुंगी…..।।३।।
प्रभु की जय सुन कर्नाटक के, सब भक्त आ गये..हाँ भक्त आ गए।
तमिलनाडु-केरल से भी, सब भक्त आ गये..हाँ इन्द्र आ गये।।
तेलंगाना-आसाम व आन्ध्रा का प्रणाम है।
जहाँ सबसे ऊँचे ऋषभदेव, प्रगटे भगवान हैं।। मांगीतुंगी…..।।४।।
प्रभु जय सुन उत्तरप्रदेश अवध के, भक्त आ गये..हाँ भक्त आ गये।
बंगाल, बिहार व झारखंड के, भक्त आ गये..हाँ इन्द्र आ गये।।
अमरीका आदि देश सभी करते प्रणाम हैं।
जहाँ सबसे ऊँचे ऋषभदेव, प्रगटे भगवान हैं।। मांगीतुंगी…..।।५।।
प्रभु की जय सुन साक्षात ज्ञानमति, माता आ गईं….हाँ माता आ गईं।
अपना सपना साकार देख, रोमांचित हो गईं..रोमांचित हो गईं।।
इस मूर्ति प्रेरिका की खुशियों का नहीं बखान है।
जहाँ सबसे ऊँचे ऋषभदेव, प्रगटे भगवान हैं।। मांगीतुंगी…..।।६।।
प्रभु की जय सुन कितने ही, साधु-साध्वी आ गये..साधु-साध्वी आ गये।
प्रभु की जय सुन भट्टारक, पीठाधीश भी आ गये..पीठाधीश आ गये।।
सामाजिक सभी संगठन भी, करते प्रणाम हैं।
जहाँ सबसे ऊँचे ऋषभदेव, प्रगटे भगवान हैं।। मांगीतुंगी…..।।७।।
मांगीतुंगी में ऋषभगिरि पर, अतिशय छाया है…हाँ अतिशय छाया है।
सब जैन दिगम्बर भक्तों ने यहाँ, द्रव्य लगाया है..हाँ द्रव्य लगाया है।।
स्वीकारो प्रभु ‘चन्दनामती’ का भी प्रणाम है।
जहाँ सबसे ऊँचे ऋषभदेव, प्रगटे भगवान हैं।। मांगीतुंगी…..।।८।।