तर्ज—हे वीर तुम्हारे………
हे प्रभुवर! तेरी प्रतिमा ही तेरा अन्तर दर्शाती है।
यह नग्न दिगम्बर मुद्रा ही प्राकृतिक रूप दर्शाती है।। टेक.।।
बिन बोले ही इस काया से मुक्ती का पथ बतलाते हो।
निज मन्द मन्द मुस्कानों से मानो खुशियाँ झलकाते हो।।
तव मूर्ति अचेतन होकर भी चेतन को पथ दर्शाती है।
यह नग्न दिगम्बर मुद्रा ही प्राकृतिक रूप दर्शाती है।।१।।
इस प्रतिमा के सम्मुख ध्याता जब ध्यानमग्न हो जाता है।
जग के संकल्प विकल्पों से तब मुक्त स्वयं हो जाता है।।
अनिमिष दृग से देखो इसको तो परमशांति बरसाती है।
यह नग्न दिगम्बर मुद्रा ही प्राकृतिक रूप दर्शाती है।।२।।
देखीं हैं बहुत कलाएँ पर, यह वीतराग छवि निंह देखी।
प्रभु ऋषभदेव जीवन जैसी, सचमुच इसकी भी छवि देखी।।
नख से शिख तक इसका दर्शन, कृतकृत्य भाव दर्शाती है।
यह नग्न दिगम्बर मुद्रा ही प्राकृतिक रूप दर्शाती है।।३।।
इस कारण ही यहाँ ऋषभदेव, प्रभु की खड्गासन प्रतिमा है।
सब नर-नारी बिन भेदभाव, इनकी गाते गुणगरिमा हैं।।
‘चंदनामती’ हम सबको यह, पावन सन्देश सुनाती है।
यह नग्न दिगम्बर मुद्रा ही प्राकृतिक रूप दर्शाती है।।५।।