तर्ज—हे वीर तुम्हारे……
भगवान तुम्हारे दर्शन से, सम्यग्दर्शन मिल जाता है।
चरणों में तुम्हारे वंदन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।। टेक.।।
जैसे अंगार दहकता है, जल सबकी प्यास बुझाता है।
सूरज जैसे देकर प्रकाश, धरती का तिमिर भगाता है।।
वैसे ही प्रभु मुख दर्शन से, मानो सब सुख मिल जाता है।
भगवान तुम्हारे दर्शन से, सम्यग्दर्शन मिल जाता है।।१।।
दर्शन के भाव हुए जिस क्षण, उपवास का फल प्रारम्भ हुआ।
चलकर जब पहुँच गए मंदिर, लक्षोपवास फल सहज हुआ।।
प्रभु सम्मुख जा गद्गद मन से, भव भव का अघ धुल जाता है।
भगवान तुम्हारे दर्शन से, सम्यग्दर्शन मिल जाता है।।२।।
भक्ती में शक्ति अचिन्त्य कही, यह भुक्ति मुक्ति सब कुछ देती।
जिनप्रतिमा भले अचेतन हैं, फिर भी चेतन को फल देतीं।।
पौराणिक कथन ‘चंदनामति’, कलियुग में भी फलदाता है।
भगवान तुम्हारे दर्शन से, सम्यग्दर्शन मिल जाता है।।३।।