तर्ज—जिंदगी प्यार का गीत है……
ये तो जिनवर का दरबार है,
यहाँ भक्ती ही करना पड़ेगा।
प्रभु के पद में ही शिवद्वार है,
उस पे क्रम से ही चलना पड़ेगा।।टेक.।।
देवपूजा गुरूपास्ति कर, फिर है स्वाध्याय संयम व तप।
दान ये मिलके षट्कार्य हैं,
इन्हें श्रावक को करना पड़ेगा।।१।।
देशव्रत अरु महाव्रत को भी, शक्ति अनुसार पालो सभी।
इनसे ही मिलता शिवद्वार है,
इनका पालन तो करना पड़ेगा।।२।।
ध्यान की साधना भी करो, आत्म आराधना भी करो।
मिलता पद इससे परमात्म है,
किन्तु निज में तो रमना पड़ेगा।।३।।
‘‘चन्दनामति’’ यही साधना, पूर्ण कर देगी हर भावना।
ज्ञान स्वाध्याय के बाद भी,
आचरण शुद्ध करना पड़ेगा।।४।।