तर्ज-यशोमती मैय्या से…………..
ज्ञानमती माताजी से पूछे जग सारा।
मांगीतुंगी नाम का ये कौन तीर्थ प्यारा।।
बोली मुस्काती माता सुनो भाई सारे।
निन्यानवे करोड़ मुनिवर मोक्ष पधारे।।
ऋषभदेव मूर्ति से अब हो……
ऋषभदेव मूर्ति से अब बन गया है न्यारा।
इसीलिए प्यारा।।ज्ञानमती….।।
उन्नीस सौ छियानवे में आईं माँ यहाँ पे।
ध्यान में देखा उनने मूर्ति है शिला में।।
उनके इन विचारों को, हो…
उनके इन विचारों को शिष्यों ने संवारा।
इसीलिए प्यारा।।ज्ञानमती….।।
दिव्यशक्ति माता जी की, सभी लोग कहते।
वरना इतनी बड़ी मूर्ति, बना नहीं सकते।।
‘‘त्रिशला’’ कहे माताजी का, हो…
त्रिशला कहे माताजी का चमत्कार सारा।
इसीलिए प्यारा।।ज्ञानमती….।।